Shekh Chilli ki Kahani – शेख चिल्ली की कहानी एक हास्यपूर्ण और शिक्षाप्रद कहानी है, जो शेख चिल्ली नामक एक काल्पनिक पात्र के इर्द-गिर्द घूमती है। शेख चिल्ली एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अपनी ख्याली दुनिया में खोया रहता है और बिना सोचे-समझे फैसले लेता है। उसकी बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ और मूर्खताएँ अक्सर उसे अजीब और हास्यास्पद परिस्थितियों में फंसा देती हैं।
शेख चिल्ली ( Sheikh Chilli ) एक प्रसिद्ध पात्र हैं, जो अपनी ख्याली दुनिया और मूर्खतापूर्ण निर्णयों के लिए जाने जाते हैं। उनकी कहानियाँ आमतौर पर हास्यपूर्ण होती हैं, जिसमें वह बिना सोचे-समझे किसी कार्य को करते हैं और अजीब परिस्थितियों में फंस जाते हैं। शेख चिल्ली का व्यक्तित्व मासूम, बेवकूफ और कल्पनाशील होता है, जो अक्सर अपनी बड़ी योजनाओं में खुद ही उलझ जाता है। उनकी कहानियाँ बच्चों और वयस्कों दोनों के बीच काफी लोकप्रिय हैं, और यह सिखाती हैं कि किसी भी कार्य को करने से पहले सोच-विचार करना चाहिए। शेख चिल्ली की लोकप्रियता का कारण उसकी सरलता, हंसी और वास्तविक जीवन की परेशानियों के प्रति उसकी मासूमियत और मूर्खताएँ हैं।
इन कहानियों का उद्देश्य केवल हंसी-मजाक ही नहीं, बल्कि यह यह सिखाना है कि किसी भी कार्य को करने से पहले सोच-विचार करना बहुत जरूरी होता है। अब आपको इस पोस्ट में शेख चिल्ली की कई मजेदार और हंसी से भरपूर कहानियाँ ( Shekh Chilli ki Kahani ) पढ़ने को मिलेंगी।
शेख चिल्ली की कहानी - सिपाही और शेख कुआंं में
शेख चिल्ली अपने पैरों को बहुत ध्यान से देख रहा था कि अचानक वह सीधे एक पेड़ से टकरा गया!
"उफ!" उसने अपनी नाक को रगड़ते हुए चिल्लाया, "यह पेड़ सड़क के बीच में क्या कर रहा है?"
अम्मी ने उसे कहा था, "दर्जी के पास जाकर काम खत्म करो, और रास्ते में ध्यान से चलना। तुम्हारी आदत है इधर-उधर देखने की, पर अगर तुमने ऐसा किया तो तुम कभी अपने मकसद तक नहीं पहुंच पाओगे। ध्यान रखना, अपनी नजर सिर्फ सड़क पर रखना।"
अम्मी ने यह तो नहीं कहा था कि पेड़ से टकरा जाना! तो फिर शेख पेड़ से क्यों टकराया? क्योंकि वह उस समय एक खेत के बीच था, और सड़क तो बहुत दूर कहीं नदारद थी। उसके पैर एक दिशा में चल रहे थे, जबकि सड़क कहीं दूसरी ओर थी। शेख ने गुस्से में अपनी जांघों को देखा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
"अच्छा, जब पेड़ सामने है, तो क्यों न उस पर चढ़कर देखूं कि कहीं नदारद सड़क दिख जाए?" उसने सोचा। पेड़ की निचली टहनी पकड़ते हुए शेख ने कूदने की तैयारी की, लेकिन तभी उसने नीचे कुएं का पानी देखा। वह झिलमिलाता पानी बहुत सुंदर लग रहा था।
शेख टहनी से झूलते हुए अपनी आँखें बंद कर चुपचाप सोचने लगा कि वह हवा में अपनी पसंदीदा पतंग पर बैठकर उड़ रहा है।
"ढुक! धड़ाक! ढुक! धड़ाक!"
उसने कल्पना की कि उसका पालतू हाथी पगडंडियों पर दौड़ रहा है, और उसकी अम्मी लाल साटन की साड़ी पहनकर उसकी पीठ पर बैठी हैं।
"ढुक! धड़ाक! ढुक! धड़ाक!"
जब शेख ने आंखें खोलीं तो उसने देखा कि वह अब भी कुएं के ऊपर लटका हुआ था, और न ही कोई हाथी दिखा। लेकिन पास ही एक घोड़े पर सवार सिपाही आ रहा था।
"घबराओ मत!" सिपाही चिल्लाया, "मैं तुम्हें बचा लूंगा! बस घबराओ मत!"
शेख ने घोड़े से उतरते सिपाही को बहुत ध्यान से देखा। उसके पास बहुत सुंदर मूंछें थीं, और उसका पूरा शरीर घूल से सना हुआ था।
"शांत रहो," घुड़सवार ने कहा, "और मेरी बात ध्यान से सुनो। मेरा घोड़ा कुएं के उस पार छलांग लगाएगा। जैसे ही तुम नीचे आओगे, मैं तुम्हारे पैरों को पकड़ लूंगा। तुम बस टहनी छोड़ देना। फिर तुम मेरे साथ घोड़े पर सुरक्षित रहोगे। समझे?"
शेख ने सिर हिलाकर हामी भरी। सिपाही ने फिर अपने घोड़े पर चढ़ाई की। घोड़ा कुछ कदम पीछे हटकर फिर कुएं की ओर तेजी से दौड़ा और कुएं के किनारे पर छलांग लगा दी।
जैसे ही शेख नीचे गिरने लगा, सिपाही ने उसके पैरों को पकड़ लिया। लेकिन शेख ने टहनी नहीं छोड़ी, और वह झूलता रहा! घोड़ा तो कुएं के दूसरे पार पहुंच गया, लेकिन सिपाही शेख के पैरों से लटका हुआ रह गया।
"तुमने टहनी क्यों नहीं छोड़ी?" सिपाही ने हैरान होकर पूछा।
शेख ने थोड़ी देर सोचकर जवाब दिया, "मुझे भी नहीं पता! शायद मैं भूल गया।" उसने हाथ पसारे और फिर दोनों कुएं में गिर पड़े।
"धड़ाम!"
घोड़ा डर कर भाग गया। पास के खेतों में काम कर रहे किसानों ने घोड़े को वापस लाकर, शेख और गुस्से में आए सिपाही को कुएं से बाहर निकाला।
शेख बहुत खुशकिस्मत था कि जब वह गीला और मिट्टी से सना हुआ होकर बिना किसी संदेश के घर लौटा, तो अम्मी ने उसे डांटा नहीं।
"अच्छा ही हुआ कि तुम दर्जी के पास नहीं गए," अम्मी ने कहा, "क्योंकि वो तो मुझे रास्ते में ही मिल गया था। पर उसके घर के पास तो कोई कुआं है नहीं, फिर तुम कैसे...?"
शेख को यह सब याद आया, लेकिन वह सोचा, "कुआं, पेड़, घोड़ा और सिपाही, क्या रोमांचक अनुभव था!"
शेख मुस्कराया और फिर अपनी पतंग को उठाया।
"अम्मीजान!" उसने छत की ओर दौड़ते हुए कहा, "जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तो अपनी मूंछें इतनी लंबी कर लूंगा कि आप उन्हें देखकर हैरान रह जाएंगी!"
Download Imageशेख चिल्ली की कहानी - तरबूज और चोर
शेख चिल्ली को रात भर नींद नहीं आई। उस दिन शाम को फातिमा बीबी ने शेख को एक तरबूज दिया था, जो वह घर लाना भूल गई थीं। बस शेख उसी तरबूज के बारे में सोचता रहा।
पिछले हफ्ते से अम्मी रोजाना फातिमा बीबी के घर जातीं थीं, क्योंकि उनकी बड़ी लड़की की शादी की तैयारियाँ चल रही थीं। हर शाम अम्मी शेख के लिए वहां से कुछ न कुछ लाती थीं। पहले दिन गुलाब जामुन, फिर खीर, और आज एक बड़ा तरबूज मिला था।
शेख के मुंह में पानी आ रहा था, सिर्फ तरबूज के बारे में सोचकर ही। अम्मी को तरबूज का वजन बहुत भारी लगा था, इसलिए उन्होंने उसे फातिमा बीबी के आंगन में छोड़ दिया।
शेख के मन में विचार आया कि वह सुबह जाकर तरबूज ले आएगा, लेकिन उसे अभी तरबूज चाहिए था, अभी! उसका पेट मचल रहा था।
चुपचाप उसने अपनी अम्मी को गहरी नींद में सोते हुए देखा और रात के अंधेरे में फातिमा बीबी के घर की ओर चल पड़ा।
जब वह आंगन में पहुंचा, तो उसने देखा कि तरबूज एक कोयले के ढेर पर रखा हुआ था। शेख ने सोचा, "बस अब इस तरबूज को उठाकर घर चलता हूँ!" लेकिन तभी उसे घर के अंदर से कुछ आवाजें सुनाई दीं।
शेख चौंका। "यह कौन हो सकता है?" उसने सोचा। घर तो खाली था, क्योंकि पूरा परिवार पास के गांव में रिश्तेदारी में गया था। फिर यह आवाजें कहाँ से आ रही थीं?
तभी वह आहट फिर से आई। शेख ने ध्यान से सुनी। यह लल्लन की आवाज थी।
"मैं उस शेख चिल्ली को नहीं छोड़ूंगा!" लल्लन कराहते हुए बोला, "उसकी वजह से ही मेरे पिताजी ने मुझे इतनी बुरी तरह मारा कि मेरी हड्डी-हड्डी दुख रही है! और अब खिड़की से घुसते हुए टूटी कांच की वजह से मेरा हाथ भी कट गया!"
शेख डर के बजाय और भी चुपके से सुनता रहा। तभी एक और आवाज आई। यह आवाज किसी अजनबी की थी, जिसे शेख ने बाजार में देखा था।
"अब कराहना बंद करो!" अजनबी ने कहा।
जैसे ही दोनों लोग सामने आए, शेख कोयले के बोरों के पीछे छिप गया। उसने झिरी से देखा। लल्लन के साथ एक अजनबी था और वह किसी चोरी के सामान की थैली ले कर जा रहा था।
"जल्दी करो!" अजनबी ने लल्लन से कहा, "हम फटाफट माल बांट लेते हैं।"
लल्लन थैली से गहनों को निकाल कर जमीन पर उंडेलने लगा। शेख को यह देखकर बहुत हैरानी हुई। यह गहने फातिमा बीबी ने अपनी लड़की की शादी के लिए इकट्ठा किए थे, और ये दोनों उन्हीं को चुरा रहे थे!
"तुमने आधे से ज्यादा हिस्सा ले लिया है!" लल्लन ने विरोध करते हुए कहा।
"गनीमत है कि तुमने इतना भी लिया!" अजनबी ने उसे डांटते हुए कहा, "मेरे बिना तुम चोरी की हिम्मत भी नहीं करते!"
"यह घर भुतहा है," लल्लन डरते हुए बोला, "कुछ लोग इसे भुतहा मानते हैं।"
"तो चलो, इससे पहले कि भूत हमें पकड़ ले, हम यहाँ से भागते हैं!" अजनबी हंसा। उसकी हंसी में चालाकी थी। "अगर तुम और कुछ चाहते हो तो यह तरबूज भी ले जाओ!"
अजनबी ने बाकी सोने और चांदी के गहनों को अपनी जेबों में भर लिया। लल्लन ने जल्दी से तरबूज को उठाने की कोशिश की, लेकिन शेख ने उसे पूरी ताकत से पकड़ रखा था।
जब लल्लन की उंगलियां तरबूज से टकराईं, तो वह घबराया और चिल्लाया, "भूत! भूत!"
शेख भी डरते हुए चीख पड़ा, "भूत! चोर! भूत!"
इसी बीच कोयले के दो बोरे लल्लन और अजनबी पर गिर पड़े।
"भूत!" लल्लन चीखा।
शेख भी डरते हुए बोला, "भूत! चोर!"
दोनों चोर भागने की कोशिश करते इससे पहले ही वहां भीड़ जमा हो गई। पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया और कोतवाली ले गई।
लल्लन बड़बड़ाते हुए कह रहा था, "भूत! भूत!"
फातिमा बीबी के परिवार के लौटने तक, एक पड़ोसी ने चोरी हुए गहनों की पहरेदारी की।
वहीं, शेख को उसके प्यारे तरबूज के साथ घर वापस भेजा गया। लोग उसे हीरो की तरह सम्मानित कर रहे थे, और शेख मुस्कराते हुए घर पहुंचा।
शेख चिल्ली की कहानी - काला धागा
शेख चिल्ली की नौकरी अभी हाल ही में छूट गई थी, और वह दूसरी नौकरी की तलाश में था। इसी बीच, उसने सोचा कि जंगल में जाकर लकड़ी काटने से कुछ पैसे कमा सकता है।
एक खूबसूरत दिन, शेख चिल्ली अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल में उसने एक बड़ा पेड़ देखा और उस पर चढ़कर एक मजबूत डाल को काटने लगा।
उस डाल पर ढेर सारी चींटियां इधर-उधर जा रही थीं। शेख ने उन्हें ध्यान से देखा, उनकी व्यस्तता को महसूस किया। वह सोचने लगा, "ये चींटियां कहां जा रही हैं?"
चींटियां लगातार पेड़ की शाखाओं पर चढ़ रही थीं, और शेख भी पेड़ की डाल काटते हुए उन्हें देखता रहा। कभी-कभी वह चींटियों को रास्ते से हटाता, ताकि डाल कटने में कोई रुकावट न आए।
"शायद ये सारी चींटियां अपने सुलतान से मिलने जा रही हैं," शेख ने सोचा। "वो मुझे देखकर धन्यवाद कहेंगे, और फिर सुलतान खुद मुझसे मिलने के लिए आएगा। उसके सिर पर एक छोटी सुनहरी पगड़ी होगी, जिसे देखकर मैं उसे पहचान लूंगा। और फिर वह मेरी मदद करेगा!"
इसी सोच में गुम, शेख अचानक नीचे से किसी आवाज़ को सुनता है।
"सावधान! तुम गिरने वाले हो!" एक राहगीर चिल्लाया।
"कर्र..." की एक तेज आवाज आई और जिस डाल को शेख काट रहा था, वह टूटकर नीचे गिर गई। शेख भी उस डाल के साथ नीचे गिर पड़ा!
राहगीर ने शेख को उठाते हुए पूछा, "तुम्हें चोट तो नहीं आई?"
"नहीं," शेख ने कहा। वह भाग्यशाली था क्योंकि वह पत्तियों के एक ढेर पर गिरा था।
"यह बताओ, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं गिरने वाला था? क्या तुम कोई ज्योतिषी हो?" शेख ने सवाल किया।
राहगीर ने मुस्कराते हुए कहा, "नहीं, मैं ज्योतिषी नहीं हूं, लेकिन मैं इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था। अगर तुम मुझे एक रुपया दोगे, तो मैं तुम्हारा पूरा भविष्य बता सकता हूं।"
"मेरे पास तो सिर्फ एक आना है," शेख ने कहा, और वह एक सिक्का राहगीर को दे दिया। "कम से कम यह तो बताओ, मैं कब तक जिंदा रहूंगा?"
राहगीर ने शेख की हथेली को ध्यान से देखा और बड़े गंभीरता से कहा, "तुम्हारी मौत तुम्हारे पीछे आ रही है!"
"हाय अल्लाह!" शेख डरते हुए चिल्लाया।
"लेकिन इस काले धागे से तुम्हारी रक्षा होगी," राहगीर ने अपनी जेब से एक काला धागा निकाला, कुछ मंत्र पढ़े और वह धागा शेख के गले में बांध दिया। "जब तक यह धागा टूटेगा नहीं, तब तक तुम सुरक्षित रहोगे।"
शेख ने उसका धन्यवाद किया और लकड़ी इकट्ठा करता हुआ घर लौटने लगा।
घर पहुंचकर उसकी बीवी फौजिया ने देखा कि शेख कुछ गहरे सोच में डूबा हुआ था। वह कपड़े पर कढ़ाई कर रही थी, और शेख के चेहरे की उदासी देखकर तुरंत ठंडा पानी लाकर उसे पिलाया।
गले में काले धागे को सहलाते हुए, शेख ने फौजिया को अपनी पूरी कहानी सुनाई।
फौजिया ने सुना और फिर अचानक काले धागे को खींचकर तोड़ दिया। "अब तुम इस सारी बकवास को भूल जाओ!" उसने कहा।
शेख हैरान होकर बोला, "क्या तुमने यह क्यों किया? अब तो मैं मर गया!"
"क्या हुआ?" फौजिया ने चौंकते हुए पूछा।
"तुमने धागा तोड़ दिया है, अब मैं मर गया!" शेख ने कहा, आँखें बंद करके लेटते हुए।
फौजिया ने यह देखकर शेख की बेवकूफी पर हंसी रोकने की कोशिश की, और शेख की अम्मी घर में घुसीं।
"हाय अल्लाह!" वह रोने लगीं, "मेरे बेटे को क्या हो गया?"
"अम्मी," फौजिया ने कहा, "शेख चिल्ली समझ रहा है कि वह मर चुका है।" फिर उसने पूरी कहानी अम्मी को बताई।
अब बारी थी शेख की बेवकूफी पर हंसने की! अम्मी और फौजिया ने शेख को समझाया कि वह मरा नहीं है, बल्कि पूरी तरह से जिंदा है। लेकिन शेख किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था।
फिर दोनों औरतें अपने-अपने काम में लग गईं, और शेख जमीन पर सीधा लेटा रहा।
कुछ देर बाद शेख ने अपनी आंखें खोलीं और चारों ओर देखा। जैसे ही फौजिया ने उसकी तरफ देखा, शेख ने जल्दी से अपनी आंखें बंद कर लीं!
फौजिया समझदार थी। "अम्मीजी," उसने कहा, "अब तो यह मातम का घर बन गया है। इस समय कोई मिठाई खाने के बारे में कैसे सोच सकता है?"
फौजिया ने गुलाब जामुन की बात की, जो शेख की पसंदीदा मिठाई थी।
"गुलाब जामुन?" शेख की आंखें तुरंत खुल गईं। वह तुरंत उठते हुए बोला, "नहीं! नहीं! कृपया उन्हें मत फेंको, मैं अब जिंदा हो गया हूं!"
अब शेख को अपनी मौत की पूरी बात भूल चुकी थी, और मिठाई की खुशबू ने उसे पूरी तरह से जीवित कर दिया!
शेख चिल्ली की कहानी - बेगम के पैर
यह कहानी उन दिनों की है जब झज्जर महेन्द्रगढ़ का एक हिस्सा हुआ करता था, और भारत के उत्तर-पश्चिमी इलाके में विदेशियों के हमले हो रहे थे। पानीपत, रोहतक और दिल्ली जैसे शहरों पर खतरा मंडरा रहा था। उस समय झज्जर के नवाब बुआवाल तालाब की मरम्मत करवा रहे थे ताकि मुसीबत के समय रेवाड़ी के लोगों को पानी की कोई किल्लत न हो। अचानक एक खबर आई कि अफगान आक्रमणकारी, दुर्रानी, ने हमला कर दिया है और उसकी सेना रेवाड़ी के पास पहुंचने वाली है।
यह सुनते ही नवाब ने अपने जांबाज सिपाहियों और वजीरों के साथ बैठक की। बैठक का मुख्य मुद्दा था कि अगर दुर्रानी की सेना झज्जर पर हमला करती है तो उसे कैसे रोका जाए और यदि रोहतक या रेवाड़ी मदद के लिए आते हैं, तो उस पर क्या प्रतिक्रिया दी जाए। बैठक में यह तय किया गया कि सभी रियासतों को हमले की जानकारी दी जाएगी और युद्ध के लिए पूरी तैयारी की जाएगी। साथ ही यह भी तय हुआ कि अगर हमला हुआ तो महिलाएं, बच्चे और बीमार लोग जंगल में छिप जाएंगे और जवान सैनिकों का साथ देंगे।
यह घोषणा शेखचिल्ली ने भी सुनी, और वह थोड़ा चिंतित हो गया। उसकी बीवी थोड़ी मोटी थी, और शेखचिल्ली को यह चिंता सताने लगी कि अगर हमला हुआ तो उसकी बीवी जंगल तक कैसे पहुंचेगी। उसके मन में अजीब-अजीब ख्याल आने लगे। फिर उसने खुद से कहा, "क्या बेकार की बातें सोच रहा हूं? मगर इस बार तो बड़ी मुसीबत आन पड़ी है, मैं अपनी जन्नत को इस तरह कुर्बान नहीं होने दे सकता।"
शेखचिल्ली के मन में अचानक ख्याल आया कि अगर कहीं से एक उड़ने वाला कालीन मिल जाए तो वह अपनी बीवी को सुरक्षित जगह पर ले जा सकता है। फिर उसने सोचा, "नवाब साहब ने तो मुझे घोड़ा दिया था, उसी घोड़े की मदद से मैं अपनी बीवी को बचा सकता हूं।" मगर फिर उसे ख्याल आया, "क्या घोड़ा बीवी का बोझ उठा पाएगा? क्या अगर वह रास्ते में मर गया, तो क्या होगा? और अगर उस वक्त बीवी दुश्मनों के हाथ लग गई, तो उसका क्या होगा?"
इसके बाद शेखचिल्ली ने सोचा, "अगर बीवी को तलवार चलानी आती, तो वह अपनी रक्षा कर सकती थी। लेकिन वह तलवार चलाना तो जानती नहीं, और तलवार आएगी कहां से? क्या अल्लाह मियां आसमान से कोई तलवार टपका देंगे, ताकि बीवी दुर्रानी की गर्दन काट सके?" फिर उसने सोचा कि अगर ऐसा होता भी है, तो शायद दुर्रानी की सेना खौफ के मारे भाग जाएगी। नवाब चौंककर पूछेंगे, "यह चमत्कार किसने किया?" और उन्हें बताया जाएगा कि एक मोटी औरत ने दुर्रानी की गर्दन काट दी थी, और वह ही कारण थी कि सब बच पाए। नवाब बहुत खुश होंगे और उसे दरबार में सम्मान देंगे।
शेखचिल्ली ने यह भी सोचा कि नवाब खुद बीवी को खोजने के लिए निकल सकते हैं, जैसे बादशाह अकबर वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए नंगे पांव निकले थे। नवाब अपनी बीवी को दरबार में लाकर उसकी पूजा करेंगे, और शायद मैं भी उस सम्मान में शामिल हो जाऊं। मगर शेखचिल्ली ने सोचा, "क्या मैं अपनी बीवी के पैरों को चूम सकता हूं? नहीं, मैं साफ मना कर दूंगा!"
इसी उधेड़बुन में शेखचिल्ली अचानक अपने चारपाई से लुढ़कते हुए गिर पड़ा और सीधे अपनी बीवी के पैरों में जा गिरा। उसकी बीवी, जो सब्जी काट रही थी, चिल्लाई, "अच्छा हुआ कि तुम किनारे गिर गए, वरना तुम्हारी गर्दन शरीर से अलग हो जाती!"
शेखचिल्ली ने माथा पकड़ लिया और सोचा, "अब दुर्रानी के हमले से ज्यादा मुझे बीवी के पैरों को चूमने का डर लगने लगा है। क्या अगर सच में ऐसा करना पड़ा?"
Download Imageशेख चिल्ली की कहानी - मियां शेख चिल्ली चले लकड़ीयां काटनें
एक बार मियां शेख चिल्ली अपने दोस्त के साथ जंगल में लकड़ियाँ काटने गए। वहाँ उन्होंने एक बड़ा सा पेड़ देखा और दोनों दोस्त उस पर चढ़कर लकड़ियाँ काटने लगे। लकड़ियाँ काटते हुए मियां शेख चिल्ली के मन में खयालों का तूफान आ गया। वह सोचने लगे, *“अगर मैं इस जंगल से ढेर सारी लकड़ियाँ काट लूँ और उन्हें अच्छे दामों पर बेच दूँ, तो मुझे बहुत फायदा होगा। इस काम से मैं जल्दी ही अमीर बन जाऊँगा।”*
मियां शेख चिल्ली ने सोचा, *“जब मैं अमीर हो जाऊँगा, तो लकड़ियाँ काटने के लिए बहुत सारे नौकर रख लूंगा। फिर मैं इन लकड़ियों से फर्नीचर का कारोबार शुरू करूंगा। कुछ ही दिनों में मैं इतना समृद्ध व्यापारी बन जाऊँगा कि नगर का राजा खुद मुझे अपनी राजकुमारी से शादी के लिए कहेगा।”*
शेख चिल्ली खयालों में खोकर सोचते-सोचते यह भी सोचने लगे, *"शादी के बाद हम एक सुंदर बागीचे में घूमेंगे और राजकुमारी अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाएगी..."* और इतने में उन्होंने सचमुच हाथ आगे बढ़ा दिया, जैसे राजकुमारी का हाथ पकड़ने के लिए।
लेकिन तभी अचानक उनका संतुलन बिगड़ गया और वह सीधे पेड़ से गिर पड़े। ऊंचाई से गिरने पर मियां शेख चिल्ली का पैर टूट गया। और साथ ही उनके ख्याली सपने भी चूर-चूर हो गए।
शेख चिल्ली की कहानी - मियां शेख चिल्ली चले चोरों के संग “चोरी करने”
एक अंधेरी रात में मियां शेख चिल्ली अपने घर की ओर जा रहे थे। तभी अचानक चार चोर उनके पास से गुज़रे, जो चुपचाप दबे पाँव आगे बढ़ रहे थे। मियां शेख चिल्ली ने चोरों को देखकर उनसे पूछा, "आप सब इस वक्त कहाँ जा रहे हो?"
चोरों ने सोचा कि मियां शेख चिल्ली भी शायद उनका साथी है और उन्होंने साफ-साफ बता दिया, "हम चोर हैं और चोरी करने जा रहे हैं।"
मियां शेख चिल्ली ने सोचा, *"यह तो नया मौका है, कुछ नया सीखने को मिलेगा।"*
फिर उन्होंने चोरों से कहा, "मुझे भी अपने साथ ले चलो।"
पहले तो चोरों ने मियां शेख चिल्ली को मना किया, लेकिन वह बार-बार मिन्नतें करते रहे, तो अंत में चोर उन्हें भी साथ ले गए। चोरों ने एक बड़े और आलिशान मकान को निशाना बनाया, जिसमें एक अकेली बुज़ुर्ग महिला रहती थी। चारों चोर घर के अंदर घुसे और मियां शेख चिल्ली भी उनके पीछे-पीछे चले गए।
चोरों ने मियां शेख चिल्ली को हिदायत दी, "जो हम कहें, वही करना और हमेशा छुप कर रहना।"
घर के अंदर आते ही चारों चोर पैसों, गहनों और कीमती सामान की खोज में जुट गए। मियां शेख चिल्ली की यह पहली चोरी थी, और वह उत्साहित थे। उन्होंने सोचा, *"चलो, मैं भी कुछ कीमती सामान ढूंढता हूँ और चोरों का हाथ बटाता हूँ।"*
खोजते-खोजते वह रसोईघर में पहुंच गए, जहाँ से खीर पकने की खुशबू आ रही थी। मियां शेख चिल्ली के मुंह में पानी आ गया, और उन्होंने सोचा कि अब चोरी का ख्याल पूरी तरह से उनके दिमाग से निकल चुका था। अब वह किसी भी कीमत पर वह खीर खाना चाहते थे!
वह चुपचाप चूल्हे के पास गए और देखा कि वहाँ एक बुज़ुर्ग महिला कुर्सी पर बैठी सो रही थी, शायद खीर पकाते-पकाते ही सो गई थी।
मियां शेख चिल्ली खीर के ख्यालों में खोकर भूल गए कि वह एक चोर हैं। उन्होंने तुरंत एक प्लेट में खीर निकाली और मजे से खाने लगे।
इतने में, सो रही बुज़ुर्ग महिला का हाथ अचानक झूलता हुआ बाहर की ओर बढ़ गया। मियां शेख चिल्ली ने सोचा कि शायद महिला भूखी है और खीर मांग रही है। यह सोचकर उन्होंने पतीले से खीर का प्याला निकालकर महिला के हाथ में दे दिया।
खीर का गर्म प्याला महिला के हाथ में लगते ही वह तिलमिला उठी और जोर से "चोर-चोर!" चिल्लाने लगी। उसकी आवाज सुनकर आस-पास के लोग इकट्ठा हो गए।
मियां शेख चिल्ली और चोर घर में छिप गए क्योंकि बाहर भागने का कोई रास्ता नहीं था। जल्द ही एक चोर पकड़ा गया, और लोग उसे मारते हुए सवाल-जवाब करने लगे।
"तू यहाँ क्यों आया था?"
"ऊपर वाला जाने!"
"क्या-क्या चुराया?"
"ऊपर वाला जाने!"
लोगों ने सोचा, *"चोर है, लेकिन हर बात में अल्लाह का नाम तो ले रहा है!"*
फिर अचानक एक ज़ोर की आवाज आई! मियां शेख चिल्ली, जो घर की छत पर छुपे हुए थे, नीचे कूद पड़े और चोर को थप्पड़ मारते हुए बोले, "सारा काम तुमने और तुम्हारे तीन साथियों ने किया है, लेकिन हर बार तुम मेरा नाम ले रहे हो! 'ऊपर वाला जाने!'... भाई, मैं तो बस इनके साथ हो लिया था!"
यह सुनकर लोग और हैरान हो गए। फिर उन्होंने बाकी तीनों चोरों को भी ढूंढ लिया और उनकी धुनाई शुरू कर दी।
मियां शेख चिल्ली ने मौके का फायदा उठाया और चुपचाप वहां से निकल गए।
निष्कर्ष –
शेख चिल्ली की कहानी ( Shekh Chilli ki Kahani ) का निष्कर्ष यह है कि इन कहानियों के माध्यम से यह सिखने को मिलता है कि जीवन में केवल ख्याली पुलाव पकाने से या बिना सोचे-समझे फैसले लेने से सफलता नहीं मिलती। शेख चिल्ली अक्सर अपनी कल्पनाओं और बिना विचार किए किए गए निर्णयों के कारण मुसीबत में फंस जाता है, जिससे हास्यपूर्ण और अजीब स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। इन कहानियों से यह संदेश मिलता है कि किसी भी कार्य को करने से पहले सोच-विचार करना आवश्यक है, ताकि हम किसी परेशानी में न फंसें। इसके अलावा, शेख चिल्ली की कहानियाँ यह भी सिखाती हैं कि हमें अपने फैसलों में समझदारी और परिपक्वता दिखानी चाहिए। ( Shekh Chilli ki Kahani )
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें। और ऐसी और बेहतरीन कहानियों का आनंद लेने के लिए ShaleelBlog से जुड़ें, ताकि आप भविष्य में और भी शानदार कहानियों का अनुभव कर सकें।














