Jatak Kathayen in Hindi | 5 बेहतरीन जातक कहानियां हिंदी में

Published On:
jataka stories in hindi

Jatak Kathayen in Hindi – जातक कथाएँ या जातक कहानियां, हिंदी साहित्य की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण कहानियों में से एक हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली कहानियाँ होती हैं। इन कथाओं का उद्देश्य नैतिक शिक्षा देना और जीवन की सच्चाइयों को सरल व आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करना होता है। यह कहानियाँ आमतौर पर प्राचीन काल की होती हैं, जिनमें देवी-देवता, राजा-महाराजाओं, लोकनायकों, और कभी-कभी जानवरों के पात्रों के माध्यम से गहरी जीवन शिक्षा दी जाती है। आम तौर पर, पंचतंत्र की कथाएँ जानवरों की दुनिया में मानवीय गुणों और अवगुणों को दिखाकर हमें अच्छाई और बुराई के अंतर को समझाती हैं। ये कथाएँ हमेशा एक नीतिगत संदेश के साथ समाप्त होती हैं, जो जीवन के नैतिक और सामाजिक नियमों की ओर इशारा करती हैं।

जातक कथाएँ न केवल बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का हिस्सा हैं, बल्कि ये जीवन के महत्वपूर्ण नैतिक सिद्धांतों को भी सिखाती हैं। इन कथाओं से हमें यह सीखने को मिलता है कि अगर हम अपने कर्मों में ईमानदार, समझदार, और धैर्यवान रहें, तो हम अपने जीवन में सफलता और सुख पा सकते हैं

जातक कथाएँ ( Jatak Kathayen in Hindi ) न केवल बच्चों को शिक्षा देती हैं, बल्कि समाज में अच्छे आचरण, सहनशीलता, ईमानदारी और धैर्य जैसे गुणों को बढ़ावा देती हैं। इनका प्रयोग पारिवारिक और सामाजिक परिवेश में बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण के लिए किया जाता है। इन कथाओं में काल्पनिक घटनाएँ, अद्भुत पात्र और रोमांचक मोड़ होते हैं, जो श्रोता या पाठक को आकर्षित करते हैं और साथ ही साथ जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाते हैं। इन कहानियों का एक और महत्व है कि ये हमारी संस्कृति, परंपरा, और इतिहास को बचाए रखने में मदद करती हैं।

                                                                          जातक कथा - बुद्धिमान् वानर
Jataka Katha - Buddhiman Vaanar


हज़ारों साल पहले एक घने वन में एक बुद्धिमान बंदर रहता था, जो उस वन का राजा था और हज़ारों बंदरों का नेतृत्व करता था।

एक दिन वह और उसके साथी कूदते-फांदते एक नयी जगह पहुँच गए, जो पानी से बिल्कुल ही खाली थी। इस नए स्थान में प्यास से तड़पते नन्हे बंदरों और उनकी माताओं को देख, बंदरराज ने तुरंत अपने अनुचरों को पानी के स्रोत की तलाश करने का आदेश दिया।

कुछ समय बाद, बंदरों ने एक जलाशय ढूंढ निकाला। जलाशय में कूदने के लिए उत्सुक प्यासे बंदरों को देख, बंदरराज ने उन्हें रुकने की चेतावनी दी, क्योंकि वह इस नए स्थान से पूरी तरह अनजान था। उसने अपने अनुचरों के साथ जलाशय और उसके आस-पास का सूक्ष्म निरीक्षण किया। जल्द ही उसने कुछ अजीब पैरों के निशान देखे, जो जलाशय की ओर तो जा रहे थे, लेकिन बाहर वापस नहीं लौटे थे। बुद्धिमान बंदर ने तुरंत समझ लिया कि इस जलाशय में कोई खतरनाक प्राणी, जैसे दैत्य, रह सकता है।

यह जानकर सारे बंदर हताश हो गए, लेकिन बंदरराज ने उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि वे दैत्य से डरकर पानी पीने से मना न करें। उसने सुझाव दिया कि वे जलाशय के चारों ओर उगे बेंत के झाड़ियों को तोड़कर उनकी नली से पानी पी सकते हैं।

सारे बंदरों ने बंदरराज की बात मानी और बेंत की नलियों से पानी पीने लगे। दैत्य जलाशय से उन बंदरों को देखता रहा, लेकिन उसकी शक्ति केवल जलाशय तक ही सीमित थी, इसलिए वह बंदरों को कुछ नहीं कर सका।

प्यास बुझाकर, सारे बंदर फिर से अपने घर लौट आए, और बुद्धिमान बंदर का नेतृत्व और विवेक सभी के लिए एक आदर्श बन गया।
Jatak Kathayen in HindiDownload Image
Jatak Kathayen in Hindi
                                                                          जातक कथा - सँपेरा और बंदर
Jataka Katha - Sampera Aur Bandar



हज़ारों साल पहले वाराणसी में एक सँपेरा रहता था, जिसके पास एक साँप और एक बंदर था। वह अपना गुजर-बसर लोगों के सामने उनके करतब दिखा कर करता था और जो पैसे मिलते, उसी से अपना जीवन चलाता था। उसी दौरान वाराणसी में सात दिनों का एक बड़ा उत्सव मनाया जा रहा था, जिससे शहर में खुशी का माहौल था। सँपेरा भी उस उत्सव में भाग लेना चाहता था, तो उसने अपने बंदर को एक मित्र के पास छोड़ दिया, जो मक्के के एक बड़े खेत का मालिक था। वह मित्र बंदर का ध्यान अच्छे से रखता था और समय-समय पर उसे भोजन भी देता था।

सात दिनों बाद जब सँपेरा उत्सव में भाग लेकर वापस लौटा, तो उसका मन अभी भी मद और मदिरा के उन्माद में था। जैसे ही वह खेत से बंदर को लेकर घर लौटने लगा, उसने बिना किसी कारण के बंदर को एक मोटे बाँस से तीन बार मारा, जैसे वह कोई ढोल हो। घर लौटने पर उसने बंदर को पास के पेड़ से बांध दिया और खुद मदिरा के नशे में बेसुध खाट पर सो गया।

बंदर का बंधन ढीला था। उसने थोड़े ही प्रयास में रस्सी से खुद को मुक्त कर लिया और पास के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया।

जब सँपेरा की नींद टूटी और उसने देखा कि बंदर वहां नहीं है, तो उसने उसे पुचकारते हुए बुलाया, "आ जा ओ अच्छे बंदर! आ जा, मेरा महान बंदर!!"

बंदर ने उसे उत्तर दिया, "ओ सँपेरे! तुम्हारा यह गुणगान व्यर्थ है, क्योंकि बंदर कभी महान नहीं होते।" फिर वह तुरंत कूदते हुए वहाँ से दूर चला गया और सँपेरा वहीं खड़ा रह गया, हाथ मलते हुए।
                                                                                  जातक कथा - मूर्ख बुद्धिमान
Jataka Katha - Moorakh Buddhiman


वाराणसी के एक राज-बगीचे में एक दयालु माली रहता था, जो बंदरों के लिए भी शरणदाता था। बगीचे के बंदर उसके आभारी और कृतज्ञ थे, क्योंकि माली उन्हें अच्छे से देखभाल करता था।

एक दिन वाराणसी में एक धार्मिक उत्सव का आयोजन हो रहा था। माली ने भी इस आयोजन में भाग लेने की इच्छा जताई और वह सात दिनों के लिए बगीचे से बाहर जाने वाला था। इससे पहले, उसने बंदरों के राजा को बुलाकर उनसे अनुरोध किया कि उसकी अनुपस्थिति में बगीचे के पौधों को पानी देते रहें। बंदरों के राजा ने खुशी से यह जिम्मेदारी स्वीकार कर ली।

जब माली बगीचे से चला गया, तो बंदरों के राजा ने अपने सभी साथी बंदरों को इकट्ठा किया और उन्हें पौधों को पानी देने का निर्देश दिया। साथ ही, उसने उन्हें यह भी समझाया कि माली ने बहुत मेहनत से पानी जमा किया है, इसलिए वे पानी का सदुपयोग करें। उसने सलाह दी कि बंदर पौधों की जड़ों की गहराई मापकर ही पानी डालें, ताकि ज्यादा पानी की बर्बादी न हो।

परंतु, बंदरों ने इसका उल्टा किया। उन्होंने अपने हिसाब से पानी डाला, और इस प्रक्रिया में पौधों का पूरा बगीचा ही उजाड़ दिया। तभी एक बुद्धिमान राहगीर वहाँ से गुजरते हुए यह दृश्य देखा। उसने बंदरों को बर्बादी करते देखा और उन्हें समझाया, “पौधों को नष्ट मत करो, तुम्हारा उद्देश्य अच्छाई था, लेकिन मूर्खता ने इसे बुराई में बदल दिया।”

फिर वह बुदबुदाता हुआ चला गया, “जो अच्छाई करना चाहता है, वह मूर्खता से बुराई कर बैठता है।”
                                                                   जातक कथा - संत भैंसा और नटखट बंदर
Jataka Katha - Sant Bhainsa Aur Natkhat Bandar


हिमवंत के घने वन में एक जंगली भैंसा निवास करता था। वह कीचड़ से सना, काला और बदबूदार था, लेकिन उसके आचार-विचार बहुत ही शीलपूर्ण थे। उसी वन में एक नटखट बंदर भी रहता था, जिसे शरारत करने में अत्यधिक आनंद आता था। लेकिन उसकी असली खुशी दूसरों को चिढ़ाने और तंग करने में थी। इस कारण वह भैंसा को भी लगातार परेशान करता रहता था।

कभी वह सोते हुए भैंसा के ऊपर कूद पड़ता, कभी उसके घास चरने में विघ्न डालता, तो कभी भैंसा के सींगों को पकड़कर कूदता हुआ नीचे उतर जाता। कभी-कभी तो वह भैंसा पर यमराज की तरह एक छड़ी लेकर सवारी भी करने का प्रयास करता। भारतीय मिथकों में यमराज की सवारी भैंसा पर बताई जाती है, और बंदर इस मिथक का मजाक उड़ाने की कोशिश करता था। इस प्रकार, बंदर का स्वभाव हमेशा भैंसा को तंग करने और अपनी शरारतों से आनंद लेने का था।
उसी वन में एक वृक्ष के ऊपर एक यक्ष निवास करता था, जिसे बंदर की शरारतें और छेड़खानी बिल्कुल भी पसंद नहीं थीं। उसने कई बार भैंसा को यह प्रेरणा दी कि वह बंदर को दंडित करे, क्योंकि भैंसा ताकतवर और मजबूत था। लेकिन भैंसा का मानना था कि किसी भी जीव को चोट पहुँचाना शील के विपरीत है। वह यह भी मानता था कि दूसरों को तकलीफ देना सच्चे सुख की प्राप्ति में विघ्न डालता है।

भैंसा यह समझता था कि हर प्राणी को अपने कर्मों का फल जरूर मिलता है। इसलिए उसने यक्ष की बातों को नजरअंदाज करते हुए यह निर्णय लिया कि बंदर को अपने कर्मों का फल एक दिन जरूर मिलेगा। भैंसा का मानना था कि कोई भी जीव अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता।
एक दिन भैंसा घास चरने के लिए किसी दूरवर्ती वन में चला गया, और उस दिन संयोगवश वही स्थान एक दूसरे भैंसे ने घेर लिया, जो पहले भैंसा के स्थान पर चरने आया।
संयोगवश उसी दिन एक दूसरा भैंसा पहले भैंसा के स्थान पर आकर चरने लगा। तभी उछलता कूदता बंदर भी उधर आ पहुँचा। बंदर ने आव देखी न ताव। पूर्ववत् वह दूसरे भैंसा के ऊपर चढ़ने की वैसी ही धृष्टता कर बैठा। किंतु दूसरे भैंसा ने बंदर की शरारत को सहन नहीं किया और उसी तत्काल जमीन पर पटक कर उसकी छाती में सींग घुसेड़ दिये और पैरों से उसे रौंद डाला । क्षण मात्र में ही बंदर के प्राण पखेरु उड़ गये।
Jatak KathayenDownload Image
jataka stories in hindi
                                                                           जातक कथा - चमड़े की धोती
Jataka Katha
- Chamde Ki Dhoti


एक बार एक घमंडी साधु को किसी ने चमड़े की धोती दान में दी। वह धोती पहनकर साधु अपने आपको अन्य साधुओं से श्रेष्ठ समझने लगा और गर्व करने लगा।

एक दिन वह उसी धोती को पहनकर भिक्षाटन के लिए चल पड़ा। रास्ते में उसे एक जंगली भेड़ दिखाई दी। भेड़ ने पीछे मुड़कर अपना सिर झटकते हुए नीचे करने की कोशिश की। साधु ने इसे अपनी श्रेष्ठता का सम्मान समझा और सोचा कि भेड़ निश्चय ही उसे प्रणाम करना चाहती है क्योंकि वह एक श्रेष्ठ साधु है, जो चमड़े की धोती पहने हुए है।

तभी, दूर से एक व्यापारी ने साधु को आगाह किया, "हे ब्राह्मण! किसी जानवर पर विश्वास मत करो। वे तुम्हारे पतन का कारण बन सकते हैं। तुम देखो, वह पीछे मुड़कर तुम पर हमला कर सकता है।"

व्यापारी की बात सुनते ही, जंगली भेड़ ने नुकीले सींग से साधु पर हमला किया। साधु गिर पड़ा, और उसकी धोती फट गई। जल्द ही, उसका पेट फटने से वह जीवन से हाथ धो बैठा।

इस प्रकार, घमंड और अज्ञान के कारण साधु की जान चली गई।

निष्कर्ष –

” जातक कथाओं ” ( Jatak Kathayen in Hindi ) का मुख्य उद्देश्य हमें नैतिकता, सहनशीलता, और करुणा का पाठ पढ़ाना है। यह दिखाती हैं कि सही कार्यों, दया, और त्याग से हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। इन कहानियों के माध्यम से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि हमारी साधारण सी क्रियाएं भी बड़े परिवर्तन का कारण बन सकती हैं।

अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें। और ऐसी और बेहतरीन कहानियों का आनंद लेने के लिए ShaleelBlog से जुड़ें, ताकि आप भविष्य में और भी शानदार कहानियों का अनुभव कर सकें।

Leave a Comment