Akbar Birbal Story in Hindi – अकबर और बीरबल की कहानियाँ भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं, जो समय-समय पर सुनाई जाती हैं। इन कहानियों में अकबर के दरबार के ज्ञानी मंत्री बीरबल की चतुराई, समझदारी और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता को प्रमुखता से दर्शाया गया है। हालांकि, इन कथाओं की सच्चाई पर कोई स्पष्टता नहीं है, क्योंकि इनमें से कुछ घटनाएँ वास्तविक हो सकती हैं, जबकि कुछ पूरी तरह से काल्पनिक भी हो सकती हैं। हम यह नहीं कह सकते कि इनमें से कौन सी कहानी सच्ची है और कौन सी बनी हुई है, लेकिन यह निश्चित है कि इनसे मिलने वाली शिक्षा अनमोल और महत्वपूर्ण है।
बीरबल की चतुराई और उनकी तेज-तर्रार बुद्धि के बारे में इन कहानियों से हमें काफी कुछ सिखने को मिलता है। उनके द्वारा दी गईं त्वरित और सटीक प्रतिक्रियाएँ अकबर को भी चकित कर देती थीं। इन घटनाओं में कई जीवन के महत्वपूर्ण पाठ छुपे हुए हैं, जैसे कि समझदारी, न्याय, धैर्य और कार्यों में चतुराई की भूमिका। (Akbar and Birbal Stories in Hindi)
आज भी इन कहानियों ( Akbar Birbal Story in Hindi ) का महत्व समाप्त नहीं हुआ है, क्योंकि ये समय की कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती हैं। चाहे वह शिक्षा, समाज या अन्य किसी संदर्भ में हो, इनका प्रभाव हमेशा रहेगा। इन कहानियों से हमें सही मार्ग पर चलने और हर स्थिति में समझदारी से निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है।
1) अकबर-बीरबल की कहानी – ऊँट की गर्दन
Akbar-Birbal Story – Oont kee Gardan▪
अकबर बीरबल की चतुराई और हाज़िर जवाबी के बहुत बड़े प्रशंसक थे। एक दिन दरबार में खुशी-खुशी उन्होंने बीरबल को कुछ पुरस्कार देने की घोषणा की, लेकिन काफी समय बीत जाने के बावजूद बीरबल को कोई पुरस्कार नहीं मिला। बीरबल सोच में पड़ गए कि वह महाराज को कैसे याद दिलाएं।
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एक दिन अकबर यमुना नदी के किनारे शाम की सैर पर निकले, और बीरबल भी उनके साथ था। तभी अकबर ने पास में एक ऊँट को देखा और बीरबल से पूछा, “बीरबल, यह ऊँट की गर्दन क्यों मुड़ी हुई है?”
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बीरबल ने सोचा कि यह समय है जब वह महाराज को अपना वादा याद दिला सकते हैं। उन्होंने जवाब दिया, “महाराज, यह ऊँट किसी से किया हुआ वादा भूल गया है, और इसी वजह से उसकी गर्दन मुड़ गई है। कहते हैं कि जो कोई भी अपना वादा भूल जाता है, भगवान उसकी गर्दन को ऊँट की तरह मोड़ देते हैं। यह एक तरह की सजा है।”
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अकबर को अचानक याद आया कि उन्होंने भी बीरबल से किया हुआ वादा भूल लिया है। वह तुरंत बोले, “बीरबल, जल्दी से महल चलो।” महल पहुँचते ही, अकबर ने सबसे पहले बीरबल को उसका वादा किया हुआ पुरस्कार दे दिया और कहा, “मेरी गर्दन ऊँट की तरह नहीं मुड़ेगी, बीरबल!” और यह कहकर अकबर मुस्कुरा पड़े।
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इस तरह बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना कुछ कहे ही अकबर से अपना पुरस्कार प्राप्त किया।
2) अकबर-बीरबल की कहानी – बादशाह का सपना
Akbar-Birbal ki Story – Badashah ka Sapana▪
एक रात सोते समय बादशाह अकबर ने एक अजीब सपना देखा कि उनके सारे दांत गिर गए, सिर्फ एक दांत बचा था।
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अगले दिन, अकबर ने अपने दरबार में देश भर के प्रसिद्ध ज्योतिषियों और नुजूमियों को बुलाया और उन्हें अपना सपना बताया, साथ ही उसका अर्थ जानना चाहा।
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सभी ज्योतिषियों ने आपस में विचार किया और एक मत होकर बादशाह से कहा, “जहांपनाह, इसका अर्थ है कि आपके सारे नाते-रिश्तेदार आपसे पहले मर जाएंगे।”
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यह सुनकर अकबर को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने सभी ज्योतिषियों को दरबार से जाने का आदेश दे दिया। फिर बादशाह ने बीरबल से अपने सपने का मतलब बताने को कहा।
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बीरबल कुछ देर तक सोच में डूबे रहे और फिर कहा, “हुजूर, आपके सपने का अर्थ बहुत शुभ है। इसका मतलब है कि आपके नाते-रिश्तेदारों में आप ही सबसे अधिक समय तक जीवित रहेंगे।”
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बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत खुश हुए। बीरबल ने वही बात कही थी जो ज्योतिषियों ने, लेकिन उन्होंने इसे बहुत समझदारी से और सकारात्मक तरीके से पेश किया। बादशाह ने बीरबल को ईनाम दिया और उसे सम्मानित किया।
3) अकबर-बीरबल की कहानी – अकबर का साला
Akbar-Birbal Story in hindi – Akabar ka Sala▪
अकबर का साला हमेशा बीरबल की जगह लेने की कोशिश करता था। लेकिन अकबर को पता था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान आदमी इस दुनिया में कोई नहीं है। फिर भी, वह अपने साले को सीधे “नहीं” नहीं कह सकते थे क्योंकि उन्हें अपनी पत्नी की नाराजगी का डर था। इसलिए, उन्होंने अपने साले को एक कोयले से भरी बोरी दी और कहा, “जाओ, इसे हमारे राज्य के सबसे चालाक और लालची सेठ, सेठ दमड़ीलाल को बेच कर आओ। अगर तुम यह काम कर पाओ, तो मैं तुम्हें बीरबल की जगह वज़ीर बना दूंगा।”
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अकबर की यह शर्त सुनकर साला चौंक गया, लेकिन उसने सोचा कि सेठ दमड़ीलाल से कोयला बेचना आसान नहीं होगा। सेठ किसी की बातों में नहीं आने वाला था, और वह उल्टा उसे धोखा भी दे सकता था। और वैसा ही हुआ। सेठ दमड़ीलाल ने कोयले की बोरी के बदले एक भी पैसा देने से मना कर दिया। साला बिना कुछ हासिल किए महल वापस लौट आया और अपनी हार स्वीकार कर ली।
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अब अकबर ने वही काम बीरबल से करवाने का आदेश दिया। बीरबल ने एक पल सोचा और फिर कहा, “सेठ दमड़ीलाल जैसे चालाक सेठ को कोयले की बोरी क्या, मैं तो एक कोयले के टुकड़े को दस हज़ार रूपये में बेच कर आऊंगा।” यह कहकर बीरबल वहां से चल पड़ा।
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सबसे पहले उसने एक दरज़ी से महंगे मखमली कुर्ते की सिलाई करवाई, हीरे-मोती वाली माला पहनी, महंगे जूते खरीदे और कोयले को बारीक पिसवा लिया, जैसे सुरमा पिसता है। फिर वह पिसे हुए कोयले को एक छोटी, चमकदार सुरमे की डिब्बी में भरकर तैयार हुआ। बीरबल ने अपना रूप बदल लिया और एक मेहमानघर में रुककर इश्तिहार दिया कि बगदाद से एक बड़ा शेख आया है, जो चमत्कारी सुरमा बेचता है, जिसे आँखों में लगाने से मरे हुए पूर्वज दिखते हैं और गड़े हुए धन का पता चलता है। यह खबर पूरे शहर में फैल गई।
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सेठ दमड़ीलाल को भी यह खबर मिली और उसने सोचा कि शायद उसके पूर्वजों ने कहीं धन गाड़ा होगा। उसने शेख से संपर्क किया और सुरमे की डिब्बी खरीदने का प्रस्ताव रखा। शेख ने इसके लिए 20 हज़ार रुपये मांगे, लेकिन मोल-भाव करके 10 हज़ार में बात तय हुई।
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सेठ ने कहा, “मैं अभी यह सुरमा आँखों में लगाकर देखूंगा, अगर मुझे अपने पूर्वज नहीं दिखे तो मैं पैसे वापस ले लूंगा।” बीरबल ने जवाब दिया, “बिल्कुल, आप ऐसा कर सकते हैं। चलिए, शहर के चौराहे पर चलते हैं और वहां इसे आजमाते हैं।”
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चौराहे पर लोग इकठ्ठा हो गए, और बीरबल ने ऊँची आवाज में कहा, “यह सेठ अब यह चमत्कारी सुरमा लगाएंगे। अगर वे अपने असली पूर्वजों की औलाद हैं, तो उन्हें अपने पूर्वज दिखाई देंगे और गड़े हुए धन का पता मिलेगा। लेकिन अगर उनके माँ-बाप में से किसी ने भी बेईमानी की है, तो उन्हें कुछ भी नहीं दिखेगा।” यह कहकर बीरबल ने सेठ की आँखों में सुरमा लगा दिया।
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सेठ ने आँखें खोलीं, लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था। अब सेठ क्या करता! अपनी इज्जत बचाने के लिए उसने झूठ बोलते हुए बीरबल को दस हज़ार रुपये दे दिए और गुस्से में वहां से चला गया।
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बीरबल महल पहुंचे और अकबर को पूरी कहानी सुनाते हुए रुपये थमा दिए। अकबर मुस्कराए, और फिर अकबर का साला बिना कुछ कहे घर लौट गया। इसके बाद कभी उसने बीरबल की जगह लेने की कोशिश नहीं की।
4) अकबर-बीरबल की कहानी – कवि और धनवान आदमी
Akbar-Birbal Story – Kavi aur Dhanavan Aadamee▪
एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, “तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।”
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‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, “सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।”
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कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, “अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।”
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कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, “भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?”
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“खाना, कैसा खाना ?” बीरबल ने पूछा।
धनवान को अब गुस्सा आ गया, “क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?”
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खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।” जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, “यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया है।”
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अब बीरबल हंसता हुआ बोला, “यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो…। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।”
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धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली।
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वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसा भरी नजरों से देखने लगे।
5) अकबर-बीरबल की कहानी – बादशाह की पहेलियाँ
Akbar-Birbal Kahani – Badashah kee Paheliyan▪
बादशाह अकबर को पहेलियाँ सुनने और सुनाने का बड़ा शौक था। वह न केवल दूसरों से पहेलियाँ सुनते थे, बल्कि समय-समय पर अपनी पहेलियाँ भी दरबारियों को सुनाया करते थे। एक दिन अकबर ने बीरबल को एक नई पहेली सुनाई, जो कुछ इस प्रकार थी: “ऊपर ढक्कन, नीचे ढक्कन, मध्य-मध्य खरबूजा। मौं छुरी से काटे आपहिं, अर्थ तासु नाहिं दूजा।”
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बीरबल को यह पहेली पहली बार सुनने को मिली थी, और वह इसे समझने में चकरा गए। इसका अर्थ उनके मन में नहीं आ रहा था। इसलिए, उन्होंने विनम्रता से बादशाह से कहा, “जहांपनाह, अगर मुझे कुछ दिनों का समय मिल सके, तो मैं इसका सही अर्थ समझकर आपको बता सकूँगा।” बादशाह ने उनकी बात मान ली और उन्हें समय दे दिया।
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बीरबल अर्थ समझने के लिए एक गाँव में पहुंचे। गर्मी और थकान से परेशान होकर वह एक घर में घुस गए, जहाँ एक लड़की भोजन बना रही थी। बीरबल ने उससे पूछा, “बेटी, क्या कर रही हो?”
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लड़की ने उत्तर दिया, “आप नहीं देख रहे? मैं बेटी को पकाती और माँ को जलाती हूँ।”
बीरबल ने हैरान होकर पूछा, “अच्छा, और तुम्हारा बाप क्या कर रहा है, कहाँ है?”
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लड़की ने जवाब दिया, “वह मिट्टी में मिट्टी मिला रहा है।”
बीरबल फिर चौंकते हुए पूछा, “तुम्हारी माँ क्या कर रही है?”
लड़की ने सरलता से कहा, “एक को दो कर रही है।”
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लड़की का जवाब सुनकर बीरबल दंग रह गए। वह इतनी चतुर निकली कि उसकी बातों ने बीरबल को हैरान कर दिया। तभी लड़की के माता-पिता घर लौट आए। बीरबल ने उनसे सारी बातचीत सुनाई। लड़की के पिता ने कहा, “मेरी बेटी ने आपको सही जवाब दिया है। अरहर की दाल अरहर की सूखी लकड़ी से पक रही है, जबकि मैं अपने बिरादरी के एक मुर्दे को जलाने गया था, और मेरी पत्नी पड़ोस में मसूर की दाल दल रही थी।”
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बीरबल लड़की के जवाबों से बहुत प्रभावित हुआ। उसने सोचा, शायद यहाँ से बादशाह की पहेली का अर्थ भी मिल जाए। इसलिए, वह लड़की के पिता से पूछा, “क्या आप मुझे बादशाह की पहेली का अर्थ समझा सकते हैं?”
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लड़की के पिता मुस्कराते हुए बोले, “यह बहुत सरल पहेली है। इसका अर्थ है – धरती और आकाश दो ढक्कन हैं, और उनके बीच में रहने वाला मनुष्य खरबूजा है। जैसे गर्मी से मोम पिघल जाता है, वैसे ही मृत्यु आने पर मनुष्य मर जाता है।”
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बीरबल इस गहरे उत्तर को सुनकर बहुत खुश हुआ। उसने लड़की के पिता को सम्मानित किया और दिल्ली वापस लौटने का निर्णय लिया। दिल्ली पहुँचकर, बीरबल ने बादशाह के सामने पहेली का अर्थ बताया। बादशाह अकबर इस उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए और बीरबल को ढेर सारे इनाम दिए।
6) अकबर-बीरबल की कहानी – किसका नौकर कौन
Akbar and Birbal Story – Kisaka Naukar Kaun▪
जब भी दरबार में अकबर और बीरबल अकेले होते, तो किसी न किसी बात पर बहस शुरू हो जाती थी। एक दिन अकबर बादशाह बैंगन की सब्जी की बहुत तारीफ कर रहे थे।
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बीरबल भी उनकी बातों में हामी भरते हुए बैंगन की खूबियाँ बढ़ा रहे थे और अपनी तरफ से भी इसके फायदे बताते जा रहे थे।
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तभी अचानक अकबर के मन में यह ख्याल आया कि क्यों न बीरबल को एक छोटे से परीक्षण में डाला जाए। सो उन्होंने बैंगन की बुराई करनी शुरू कर दी। बीरबल भी बिना किसी झिझक के उनकी बातों का समर्थन करते हुए कहने लगे कि बैंगन खाने से कई शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
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यह देख अकबर हैरान रह गए और बोले, “बीरबल! तुम्हारी बातों का तो विश्वास ही नहीं किया जा सकता। जब मैंने बैंगन की तारीफ की, तुम भी इसकी तारीफ करने लगे और अब जब मैंने इसकी बुराई की तो तुम भी वही कर रहे हो। आखिर ऐसा क्यों?”
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बीरबल मुस्कुराते हुए जवाब दिए, “बादशाह सलामत! मैं तो आपका नौकर हूं, बैंगन का नहीं।”
7) अकबर-बीरबल की कहानी – हरा घोड़ा
Akbar-Birbal Story – Hara Ghoda▪
एक दिन बादशाह अकबर घोड़े पर सवार होकर शाही बाग में सैर करने गए, और उनके साथ बीरबल भी था। चारों ओर हरे-भरे पेड़-पौधे और घास देख अकबर बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें लगा कि बगीचे में घुमा करने के लिए घोड़ा भी हरे रंग का होना चाहिए।
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अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल, मुझे हरे रंग का घोड़ा चाहिए। तुम मुझे सात दिनों के अंदर हरा घोड़ा लाकर दो। अगर तुम ऐसा नहीं कर सके तो अपनी शक्ल हमें नहीं दिखाना।” यह बात अकबर और बीरबल दोनों को पता थी कि हरा रंग का घोड़ा तो होता ही नहीं, लेकिन अकबर बीरबल की परीक्षा लेना चाहते थे।
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दरअसल, अकबर चाहते थे कि बीरबल हार मानकर कहे कि “जहांपनाह, मैं हार गया,” लेकिन बीरबल भी अपने जैसे ही थे। वह हर सवाल का जवाब इतनी चतुराई से देते थे कि अकबर को अक्सर मुंह की खानी पड़ती थी।
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बीरबल ने सात दिनों तक हरे रंग का घोड़ा ढूंढने का बहाना किया और आठवें दिन दरबार में हाजिर हुए। वे अकबर से बोले, “जहांपनाह! मुझे हरे रंग का घोड़ा मिल गया है।”
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अकबर को हैरानी हुई और उन्होंने पूछा, “क्या सच में? तो वह घोड़ा कहां है?”
बीरबल ने कहा, “जहांपनाह! घोड़ा तो मिल गया है, लेकिन उसके मालिक ने दो शर्तें रखी हैं।”
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अकबर ने उत्सुक होकर पूछा, “क्या शर्तें हैं?”
बीरबल ने जवाब दिया, “पहली शर्त तो यह है कि आपको खुद घोड़ा लेने जाना होगा।”
अकबर ने कहा, “यह तो आसान शर्त है। दूसरी शर्त क्या है?”
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बीरबल मुस्कुराते हुए बोले, “दूसरी शर्त यह है कि घोड़ा खास रंग का है, इसलिए उसे लाने का दिन भी खास होगा। घोड़े के मालिक का कहना है कि आप उसे सप्ताह के सात दिनों के अलावा किसी भी दिन ले जा सकते हैं।”
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बीरबल की यह बात सुनकर अकबर चुप रह गए। वे समझ गए कि बीरबल उन्हें मूर्ख नहीं बना सकता है। बीरबल ने हंसते हुए कहा, “जहांपनाह! हरे रंग का घोड़ा लाना हो तो उसकी शर्तें भी माननी पड़ेंगी।”
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अकबर जोर से हंस पड़े और बीरबल की चतुराई से बहुत खुश हुए। उन्हें एहसास हुआ कि बीरबल को आसानी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।
निष्कर्ष –
अकबर-बीरबल की कहानियाँ बच्चों के लिए न केवल मजेदार और हास्यपूर्ण होती हैं, बल्कि इनमें गहरे नैतिक संदेश भी छुपे होते हैं, जो उनकी कल्पना को प्रोत्साहित करती हैं। ये कहानियाँ बच्चों के लिए सोने से पहले सुनने के लिए आदर्श होती हैं। कुल मिलाकर, ये कहानियाँ आपको और आपके बच्चों को पढ़ने और सीखने का एक बेहतरीन अनुभव प्रदान करेंगी। (Akbar Birbal Story in Hindi)
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