Tenali Rama ki Kahaniyan – तेनाली राम की कहानियाँ भारतीय लोककथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध कवि, विद्वान और चतुर व्यक्ति थे, जो कृष्ण देव राय के दरबार में मंत्री थे। उनका असली नाम “रामकृष्ण” था, लेकिन वे “तेनाली राम” के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए। उनकी कहानियाँ न केवल मनोरंजन का स्रोत हैं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण पाठ भी सिखाती हैं। वे अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता से कई समस्याओं को हल करते थे और राज दरबार में अपनी समझदारी के लिए प्रसिद्ध थे।
तेनाली राम की जन्मतिथि और स्थान के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि वे लगभग 16वीं शताब्दी में जीवित थे। वे पहले एक साधारण व्यक्ति थे, लेकिन अपनी चतुराई, बुद्धिमत्ता और हास्यपूर्ण अंदाज के कारण वे कृष्ण देव राय के दरबार में शामिल हुए। उनकी कहानियों में न केवल हास्य होता है, बल्कि वे जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को भी उजागर करते हैं जैसे कि न्याय, बुद्धिमत्ता, और नैतिकता।
तेनाली राम की कहानियाँ आज भी बच्चों और बड़ों द्वारा समान रूप से पसंद की जाती हैं और उन्हें जीवन के कई महत्वपूर्ण मूल्य सिखाती हैं। अब इस पोस्ट में आप तेनाली रामकृष्णा की कई मजेदार और हंसी से भरी कहानियाँ ( Tenali Rama ki Kahaniyan ) पढ़ सकते हैं।
तेनालीराम की कहानी - राजा का सपना
Tenali Raman Story - Raja ka Sapana
एक सुबह, राजा कृष्णदेवराय बहुत परेशान नजर आ रहे थे। तेनालीराम ने देखा और उनसे पूछा, "महाराज, आप इतने चिंतित क्यों हैं?" राजा ने जवाब दिया, "मैं एक सपना देखा था, और वही मुझे परेशान कर रहा है।"
तेनालीराम ने पूछा, "क्या सपना था, महाराज?"
राजा ने बताया, "मैंने बादलों में तैरते हुए एक सुंदर महल देखा। वह महल कीमती पत्थरों से बना था और उसमें शानदार बगीचे थे। लेकिन अचानक सपना खत्म हो गया, और अब मैं उस सपने को भूल नहीं पा रहा हूं।"
तेनालीराम राजा को बताने ही वाले थे कि ऐसे सपनों का कोई खास मतलब नहीं होता, तभी राजा के एक अन्य मंत्री, चतुर पंडित ने कहा, "महाराज, यह सपना आपके लिए एक संकेत हो सकता है। आपको इस सपने का पीछा करना चाहिए और इसे सच करना चाहिए।" चतुर पंडित के मन में खतरनाक ख्याल थे और वह राजा को इस महल को बनाने के लिए उकसाने लगा ताकि वह अपनी जेब भर सके।
तेनालीराम ने चतुर पंडित की नीयत को भांप लिया, लेकिन उन्होंने अपनी असहमति नहीं जताई। राजा ने अगले ही दिन चतुर को महल बनाने की योजना पर काम शुरू करने के आदेश दिए।
समय बीतता गया, और जब भी राजा चतुर से परियोजना के बारे में पूछते, चतुर कोई न कोई बहाना बना देता। वह राजा से उनके सपने के बारे में सवाल करता और फिर उनसे पैसे मांग लेता।
एक दिन एक बूढ़ा आदमी कृष्णदेवराय के दरबार में आया और न्याय की मांग करने लगा। राजा ने तुरंत वादा किया कि उसे न्याय मिलेगा।
बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मैं एक हफ्ते पहले तक एक अमीर व्यापारी था। लेकिन मुझे लूट लिया गया और मेरे परिवार के सदस्यों को मार दिया गया।" राजा ने पूछा, "क्या तुम जानते हो कि यह किसने किया?" बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "हां, मैं जानता हूं।"
राजा ने हैरान होकर पूछा, "तो फिर यह कौन था?" बूढ़ा व्यक्ति बोला, "मैंने कल रात एक सपना देखा और उस सपने में देखा कि मुझे लूट लिया गया और मेरे परिवार को मार दिया, और यह सब काम राजा और चतुर पंडित ने किया।" यह सुनकर राजा आग बबूला हो गए और बोले, "तुम कह रहे हो कि यह सपना कैसे सच हो सकता है?"
बूढ़ा व्यक्ति शांत होकर जवाब दिया, "महाराज, आप एक साम्राज्य के राजा हैं, लेकिन आप भी एक असंभव सपने का पीछा कर रहे हैं।"
राजा ने इस बात को गहराई से सोचा और उन्हें समझ में आ गया कि यह बूढ़ा व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि उनके अपने प्रिय सलाहकार तेनालीराम थे। तेनालीराम ने चतुर पंडित की चालाकी का पर्दाफाश करने के लिए यह तरकीब अपनाई थी। राजा ने तेनालीराम को गले लगाते हुए कहा, "तेनालीराम, तुमने सही समय पर मेरी आंखें खोल दीं। अब मैं चतुर पंडित की साजिश को जान चुका हूं और उसका पर्दाफाश करूंगा।"
राजा ने तेनालीराम को धन्यवाद दिया और चतुर पंडित को सजा देने का आदेश दिया।
Download Imageतेनालीराम की कहानी - कुत्ते को गाय में बदलने की तेनालीराम की इच्छा
Tenali Raman Story - Kutte ko Gaay Mein Badalane kee TenalIraam kee Ichchha
एक सुबह, राजा कृष्णदेवराय उठे और नींद में ही अपने सेवक से नाई को बुलाने का आदेश दिया। जब तक नाई आया, राजा अपनी कुर्सी पर सोते रहे।
नाई, जो राजा को परेशान नहीं करना चाहता था, चुपचाप और बड़ी सावधानी से राजा के बाल और दाढ़ी काटने लगा, बिना उन्हें जगाए। जब राजा जागे, तो उन्हें नाई कहीं दिखाई नहीं दिया। राजा ने क्रोधित होकर अपने सेवक से कहा कि नाई को तुरंत बुलाओ।
सेवक नाई को बुलाने गया, जबकि राजा ने अपनी ठुड्डी और गाल महसूस किया और पाया कि वे साफ हैं। फिर उन्होंने आईने में देखा, तो समझ गए कि नाई ने बिना उन्हें जगाए अपना काम बहुत अच्छे से किया था।
जब नाई आया, तो राजा ने उसकी तारीफ की और पूछा कि वह इनाम के रूप में क्या चाहता है। नाई ने कहा कि वह ब्राह्मण बनना चाहता था। राजा नाई की अजीब मांग सुनकर चौंक गए, लेकिन चूंकि राजा ने उससे वादा किया था, उन्होंने कुछ ब्राह्मणों को बुलाया और नाई की इच्छा के बारे में उन्हें बताया। सभी ब्राह्मण इस प्रस्ताव से सहमत हो गए क्योंकि राजा ने उन्हें धन देने का वादा किया था।
हालांकि, विजयनगर के अन्य ब्राह्मण इस मांग का विरोध कर रहे थे, लेकिन वे सजा के डर से ज्यादा विरोध नहीं कर सकते थे। तब उन्होंने तेनालीराम से मदद मांगी।
अगली सुबह, जब नाई को ब्राह्मण बनाने के लिए नदी में ले जाया जा रहा था, राजा भी उस अनुष्ठान की देखरेख के लिए वहाँ मौजूद थे। उन्होंने देखा कि तेनालीराम कुछ दूरी पर अपने कुत्ते के साथ खड़ा है। राजा तेनालीराम के पास गए और पूछा, "तेनाली, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
तेनालीराम मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "मैं कुत्ते को गाय में बदलने की कोशिश कर रहा हूँ।"
यह सुनकर राजा हंसी रोक न सके और बोले, "तुम जो करने की सोच रहे हो, वो मूर्खता है।"
तेनालीराम ने विनम्रता से उत्तर दिया, "अगर नाई ब्राह्मण बन सकता है, तो कुत्ता गाय में क्यों नहीं बदल सकता?"
राजा को तेनालीराम का तात्पर्य समझ में आ गया और उन्होंने नाई से कहा, "तुम्हारा ब्राह्मण बनना असंभव है। तुम्हें इसके बदले कुछ और मांगना चाहिए।"
राजा की बात सुनकर नाई ने अपनी मांग बदल ली और अंततः उसे उपयुक्त इनाम मिला।
तेनालीराम की कहानी - मनहूस आदमी या राजा
Tenali Raman Story - Manhoos Aadmi ya Raja
विजयनगर साम्राज्य में रामया नामक एक व्यक्ति रहता था। शहर में यह अफवाह फैली हुई थी कि अगर कोई व्यक्ति सुबह-सुबह रामया का चेहरा देख ले, तो उसे पूरे दिन खाना नहीं मिलेगा। राजा ने यह अफवाह सुनी और इसके सच होने का पता लगाने के लिए खुद ही इसकी जांच करने का निश्चय किया।
राजा ने अपने पहरेदारों को आदेश दिया और रामया के लिए विशेष व्यवस्था की। एक कमरा राजा के ठीक पास तैयार किया गया, ताकि वह स्वयं यह देख सकें कि क्या यह अफवाह सच है। अगली सुबह, राजा ने रामया के कमरे में जाकर सबसे पहले उसका चेहरा देखा, ताकि वह इस अफवाह की सच्चाई जान सके।
दिन के भोजन के समय, राजा ने देखा कि उसके भोजन में एक मक्खी गिर गई थी। उसने रसोइये से कहा कि भोजन को बदल दिया जाए। जब नया भोजन परोसा गया, तो राजा ने महसूस किया कि उसकी भूख खत्म हो चुकी थी और वह बिना खाना खाए ही संतुष्ट हो गए। अब उसे समझ में आ गया कि यह अफवाह सच थी - अगर कोई रामया का चेहरा सुबह सबसे पहले देखता है, तो उसे पूरे दिन खाना नहीं मिलता। राजा को यह जानकर बहुत गुस्सा आया और उसने रामया को सजा देने की सोच ली, लेकिन वह इसे कुछ और दिन टालना चाहता था।
रामया की पत्नी ने तेनालीराम से मदद की गुहार लगाई, क्योंकि वह अपने पति को खोना नहीं चाहती थी। तेनालीराम ने पूरी घटना को सुना और रामया की फांसी से पहले, उसे बचाने का एक तरीका सोचा।
फांसी के दिन, तेनालीराम रामया के पास गए और उसके कान में कुछ कहा। बाद में, गार्ड्स ने रामया से पूछा कि क्या उसकी कोई आखिरी इच्छा है। रामया ने कहा कि वह मरने से पहले राजा को एक चिट्ठी देना चाहता है।
रामया ने तेनालीराम द्वारा कहे गए शब्दों को कागज पर लिखा और चिट्ठी राजा को दी। चिट्ठी में लिखा था: "अगर मेरा चेहरा देखने से कोई व्यक्ति खाना नहीं खा सकता, तो राजा का चेहरा सबसे पहले देखने से उसे मौत भी मिल सकती है। तो फिर सबसे बड़ा शापी कौन है?"
राजा ने जब यह चिट्ठी पढ़ी, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने समझ लिया कि रामया पर आरोप लगाना गलत था। तेनालीराम की चतुराई ने एक निर्दोष व्यक्ति की जान बचाई, और राजा ने रामया को बख्श दिया।
तेनालीराम की कहानी - हीरों का सच
Tenali Raman Story - Heeron Ka Sach
विजयनगर साम्राज्य में एक व्यक्ति नामदेव रहता था, जो अपने मालिक से धोखा खाकर राजा कृष्णदेवराय के दरबार में न्याय की याचना करने आया। नामदेव ने महाराज से कहा, "महाराज, मुझे न्याय दीजिए। मेरे मालिक ने मुझे धोखा दिया है।" महाराज ने उससे पूछा, "तुम कौन हो और तुम्हारे साथ क्या हुआ?"
नामदेव ने उत्तर दिया, "मेरा नाम नामदेव है। कल मैं अपने मालिक के साथ एक गाँव में किसी काम से जा रहा था। रास्ते में हमें बहुत थकावट हुई और हम पास के एक मंदिर की छांव में आराम करने बैठे। वहां, मैंने एक लाल रंग की थैली देखी, जो मंदिर के कोने में पड़ी थी। मैंने मालिक से अनुमति लेकर वह थैली उठा ली। जब मैंने उसे खोला, तो उसमें दो हीरे थे। यह हीरे मंदिर में मिले थे, और इसलिए राज्य का इन पर अधिकार था। लेकिन मेरे मालिक ने मुझे यह बात किसी को न बताने के लिए कहा और कहा कि हम दोनों एक-एक हीरा रख लेंगे। मैं अपनी स्थिति से परेशान था और इसलिए मैं लालच में आ गया। लेकिन जब हम हवेली वापस लौटे, तो मालिक ने हीरे देने से इनकार कर दिया। यही कारण है कि मुझे न्याय चाहिए।"
राजा कृष्णदेवराय ने तुरन्त कोतवाल को भेजकर नामदेव के मालिक को दरबार में पेश होने का आदेश दिया। मालिक को जब राजा के सामने लाया गया, तो उसने कहा, "महाराज, हां, यह सच है कि मंदिर में हीरे मिले थे, लेकिन मैंने उन हीरों को नामदेव को देकर राजकोष में जमा करने के लिए कहा था। जब वह वापस लौटा, तो मैंने राजकोष की रसीद मांगी, लेकिन वह बहाना करने लगा। जब मैंने उसे धमकाया, तो वह यहां आकर यह मनगढ़ंत कहानी सुनाने लगा।"
राजा ने पूछा, "क्या तुम्हारे पास कोई प्रमाण है कि तुम सच बोल रहे हो?" मालिक ने कहा, "अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं है, तो आप मेरे तीनों नौकरों से पूछ सकते हैं। वे उस वक्त वहां थे।"
राजा ने तुरन्त तीनों नौकरों को दरबार में बुलवाया। तीनों ने नामदेव के खिलाफ गवाही दी। राजा ने सभी को एक जगह बिठा दिया और तेनालीराम को भी इस मामले पर चर्चा करने के लिए बुलवाया। तेनालीराम, सेनापति और महामंत्री दरबार में पहुंचे, और राजा ने उनसे पूछा, "आपको क्या लगता है, क्या नामदेव झूठ बोल रहा है?"
महामंत्री ने कहा, "महाराज, नामदेव ही झूठा है। उसके मन में लालच आ गया होगा, और उसने हीरे अपने पास रख लिए होंगे।" सेनापति ने भी यही कहा, "नामदेव सच नहीं बोल रहा।" तेनालीराम चुपचाप सबकी बातें सुनते रहे।
राजा ने तेनालीराम से पूछा, "तेनालीराम, तुम्हारा क्या विचार है?" तेनालीराम ने कहा, "महाराज, हम अभी यह तय नहीं कर सकते कि कौन झूठा है, लेकिन हमें कुछ समय के लिए पर्दे के पीछे छिपना होगा।" राजा इस बात से सहमत हो गए और पर्दे के पीछे छुप गए, ताकि वे न देख सकें।
अब तेनालीराम ने पहले गवाह को बुलवाया और पूछा, "क्या तुम्हारे सामने तुम्हारे मालिक ने नामदेव को हीरे दिए थे?" गवाह ने कहा, "जी हां।"
तेनालीराम ने कागज और कलम दिया और गवाह से कहा, "अब मुझे इन हीरों का चित्र बनाकर दिखाओ।" गवाह घबराया और बोला, "मैंने हीरे नहीं देखे, क्योंकि वे लाल रंग की थैली में थे।"
तेनालीराम ने कहा, "ठीक है, अब चुपचाप वहां खड़े हो जाओ।" फिर उसने दूसरे गवाह को बुलाया। दूसरे गवाह ने कहा, "मैंने हीरे देखे थे और उनका आकार गोल था।" तेनालीराम ने उससे कहा, "अब कागज पर दो गोल आकृतियाँ बनाओ।" गवाह ने ऐसा किया, और तेनालीराम ने उसे पहले गवाह के पास खड़ा कर दिया।
अब तीसरे गवाह को बुलाया गया, और उसने कहा, "हीरे भोजपत्र की थैली में थे, इसलिए मैं उन्हें नहीं देख पाया।"
इतना सुनते ही, राजा पर्दे के पीछे से बाहर आ गए। तीनों गवाहों ने राजा को देखकर समझ लिया कि अब उन्हें सच बोलने में ही भलाई है। वे तीनों राजा के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगे और बोले, "महाराज, हमें झूठ बोलने के लिए हमारे मालिक ने धमकाया था और नौकरी से निकालने की धमकी दी थी। इसलिए हमें झूठ बोलना पड़ा।"
राजा ने तुरंत नामदेव के मालिक के घर की तलाशी लेने का आदेश दिया। तलाशी में दोनों हीरे बरामद कर लिए गए। सजा के तौर पर, राजा ने मालिक से दस हजार स्वर्ण मुद्राएं नामदेव को देने का आदेश दिया और बीस हजार स्वर्ण मुद्राएं जुर्माना वसूल किया। दोनों हीरे राजकोष में जमा कर दिए गए।
इस प्रकार, तेनालीराम की समझदारी से नामदेव को न्याय मिला और राजा कृष्णदेवराय ने सही फैसला लिया।
Download Imageतेनालीराम की कहानी - सेठजी
Tenali Raman Story - Sethajee
सर्दी का मौसम था, और तेनालीराम शाम को राजमहल से वापस लौट रहा था। रास्ते में उसने एक भिखारी को देखा जो बैठा हुआ था। तेनालीराम ने अपनी जेब से एक चांदी का सिक्का निकाला और भिखारी के हाथ पर रख दिया। भिखारी ने उसे लेने से इंकार करते हुए कहा, "श्रीमान, मुझे भीख नहीं चाहिए। मैं जानता हूं कि आप राजदरबार के अष्टदिग्गजों में से एक हैं। मेरी एक समस्या है, और मैं आपसे उसी का समाधान चाहता हूं।"
तेनालीराम ने मुस्कराते हुए पूछा, "क्या समस्या है? बताओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगा।"
भिखारी थोड़ा हिचकते हुए बोला, "मैं एक गरीब भिखारी हूं, लेकिन मेरी एक ख्वाहिश है कि लोग मुझे 'सेठजी' कहकर पुकारें। कोई भी मुझे उस नाम से नहीं बुलाता। मैं नहीं जानता कि मुझे लोग 'सेठजी' कैसे कहें।"
तेनालीराम थोड़ी देर सोचता रहा और फिर बोला, "तुम घबराओ मत, मेरे पास इसका हल है। देखो, मैं तुम्हें एक तरीका बताता हूं। तुम इस जगह से थोड़ा दूर खड़े हो जाओ। जब भी कोई तुम्हें 'सेठजी' कहकर पुकारे, तुम उसके पीछे दौड़ पड़ना, जैसे उसे मारने के लिए आ रहे हो।"
भिखारी तेनालीराम की बात मानते हुए दूर खड़ा हो गया। इस बीच, तेनालीराम ने पास ही खेल रहे बच्चों को देखा और उन्हें पास बुलाया। तेनालीराम ने कहा, "देखो बच्चों, उस आदमी को देख रहे हो जो वहां खड़ा है? उसे 'सेठजी' कहकर पुकारो, वह बहुत गुस्से में आता है।"
बच्चों को यह सुनते ही शरारत सूझी। सभी बच्चे एक साथ 'सेठजी... सेठजी!' कहकर भिखारी के पास दौड़ पड़े। भिखारी, जैसा तेनालीराम ने कहा था, उनके पीछे ऐसे दौड़ पड़ा जैसे वह उन्हें मारने के लिए आ रहा हो। बच्चों ने और भी जोर से 'सेठजी!' कहा और भिखारी के पीछे भागते गए। यह देखकर अन्य लोग भी भिखारी को 'सेठजी' कहकर पुकारने लगे। भिखारी उनका पीछा करते हुए और ज्यादा गुस्से में आकर दौड़ा। लोग भी मजे लेते हुए 'सेठजी' कहते हुए उसके पीछे दौड़ने लगे।
कुछ दिन तक यही खेल चलता रहा। लोग भिखारी को 'सेठजी' कहकर पुकारते और भिखारी उनकी तरफ दौड़ता रहता। धीरे-धीरे, वह पूरे शहर में 'सेठजी' के नाम से मशहूर हो गया। तेनालीराम ने उसकी इच्छा पूरी कर दी थी, और अब वह भिखारी 'सेठजी' के नाम से पहचाना जाता था।
तेनालीराम की कहानी - पकड़ा गया शेर
Tenali Raman Story - Pakada Gaya Sher
तेनालीराम कुछ दिनों के बाद अपने गांव लौटे, तो उन्होंने सुना कि गांववाले एक शेर के आतंक से बहुत परेशान हैं। शेर जंगल से भागकर गांव के पास स्थित झाड़ियों में छिपकर रहने लगा था, और कई लोगों को अपना शिकार बना चुका था।
जब तेनालीराम घर पहुंचे, तो एक बुजुर्ग ने कहा, "तेनालीराम, तुम्हारी चतुराई के चर्चे तो बहुत सुने हैं। तो तुम शेर के आतंक से गांववालों को क्यों नहीं बचाते?"
तेनालीराम थोड़े चकित हुए और बोले, "शेर को तो शिकारी पकड़ेंगे, मैं इसमें क्या कर सकता हूं? हां, अगर मैं राजदरबार लौट जाऊं तो किसी अच्छे शिकारी को भेज सकता हूं जो गांववालों को शेर के आतंक से मुक्त कराए।"
बूढ़ा आदमी थोड़ा नाराज होकर बोला, "तब तक तो शेर और लोगों को शिकार बना चुका होगा। जो तुमसे हो सकता है, करो। तुम्हारे लिए तो यह कोई मुश्किल काम नहीं है।"
इसी दौरान गांव का एक युवक, जो तेनालीराम से जलता था, तीखे शब्दों में बोला, "इनकी चतुराई तो महल में ही चलती है, गांव में तो ये कुछ नहीं कर सकते। यह क्या करेंगे और क्यों करेंगे?"
तेनालीराम कुछ नहीं बोले, बस चुप रहे। अगले दिन तेनालीराम ने गांववालों से पूछा और पता चला कि शेर अक्सर गांव की बाहरी सीमा से पूर्व से पश्चिम की दिशा में जाता था। वह अक्सर उसी रास्ते पर अपने पंजों के निशान छोड़ जाता था। गांव के ज्यादातर लोग अब उस रास्ते पर नहीं जाते थे, लेकिन अनजान लोग अक्सर शिकार बन जाते थे। हर दिन कोई न कोई हादसा होता रहता था।
तेनालीराम ने सोचा और फिर गांव के कुछ नौजवानों को लाठी, रस्सी और फावड़ा लेकर उसके साथ चलने को कहा। वह खुद देखना चाहता था कि वह स्थान कहां है। तेनालीराम की बात सुनकर सब मुस्कराए, क्योंकि उन्हें नहीं लगता था कि तेनालीराम कुछ कर पाएंगे।
तेनालीराम और उसके साथी उस जगह पहुंचे जहां शेर ने कई लोगों को शिकार बनाया था। तेनालीराम ने चारों ओर नज़र दौड़ाई और फिर आदेश दिया कि वहां एक गड्ढा खोदा जाए। गड्ढा खोदने के बाद, उसे झाड़ियों और घास से अच्छे से ढक दिया गया। फिर उस गड्ढे के पास एक बकरी बांध दी गई। सभी लोग एक ऊंचे मचान पर चढ़ गए और शेर का इंतजार करने लगे।
कुछ देर में ही शेर की आहट सुनकर बकरी मिमियाने लगी। बकरी की आवाज सुनकर शेर तेजी से उसकी ओर बढ़ा, लेकिन जैसे ही शेर गड्ढे के पास आया, उसका एक पैर गड्ढे में फंस गया और वह गिरकर उसमें गिर पड़ा। तुरंत ही गांव के युवक लाठियां लेकर वहां पहुंचे और शेर को बांधकर एक घने जंगल में छोड़ आए। इसके बाद जंगल और गांव के बीच कंटीले तारों का बाड़ा लगवा दिया गया, ताकि शेर फिर से गांव में न आ सके।
कुछ दिनों बाद, तेनालीराम अपनी छुट्टियां खत्म करके राजदरबार लौटे। तब तक शेर को पकड़ने का किस्सा पूरे विजयनगर में फैल चुका था। राजा कृष्णदेवराय ने तेनालीराम से पूछा, "सुना है तुमने गांव में शेर पकड़ा है, तुम्हें डर नहीं लगा?"
तेनालीराम हंसते हुए बोले, "महाराज, यहां दरबार में तो ऐसे-ऐसे महान शूरवीरों के व्यंग्य बाण झेलता हूं और उन्हें भी सहता हूं। तो फिर एक जंगल के शेर से मुझे क्या डर?" यह सुनकर राजा हंसी से लोट-पोट हो गए, लेकिन मंत्री और दरबारी थोड़े झेंप गए।
निष्कर्ष –
तेनाली राम की कहानियाँ ( Tenali Rama ki Kahaniyan ) न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि ये जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी प्रदान करती हैं। उनकी चतुराई, बुद्धिमत्ता और हास्यपूर्ण अंदाज ने उन्हें न केवल कृष्ण देव राय के दरबार में प्रमुख स्थान दिलाया, बल्कि उन्हें भारतीय लोककथाओं में एक अमूल्य व्यक्तित्व भी बना दिया। तेनाली राम ने अपनी कहानियों के माध्यम से यह सिखाया कि कठिन परिस्थितियों का समाधान समझदारी, धैर्य और बुद्धिमत्ता से किया जा सकता है। उनका जीवन और उनके कार्य आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। ( Tenali Rama ki Kahaniyan )
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें। और ऐसी और बेहतरीन कहानियों का आनंद लेने के लिए ShaleelBlog से जुड़ें, ताकि आप भविष्य में और भी शानदार कहानियों का अनुभव कर सकें।














