Tenali Rama Stories in Hindi – तेनाली रामकृष्णा की कहानियाँ भारतीय लोककथाओं का एक अहम हिस्सा मानी जाती हैं। तेनाली रामकृष्णा, विजयनगर साम्राज्य के महान सम्राट कृष्णदेवराय के दरबार में एक बुद्धिमान और चतुर मंत्री थे। उनका जन्म कर्नाटका राज्य के तेनाली नामक गाँव में हुआ था। वे अपनी विशेष चतुराई और हास्यपूर्ण बुद्धि के लिए प्रसिद्ध थे।
तेनाली रामकृष्णा अपनी तीव्र बुद्धि से दरबार की जटिल समस्याओं का हल बहुत आसानी से निकाल लेते थे, और अक्सर अपने विरोधियों को अपनी चतुराई से हैरान कर देते थे। उनके द्वारा सुनाई गईं कई कहानियाँ आज भी प्रसिद्ध हैं, जो जीवन के मूल्य और सरलता को समझाती हैं। तेनाली रामकृष्णा हमेशा यह संदेश देते थे कि किसी भी समस्या का समाधान समझदारी और चतुराई से निकाला जा सकता है। उनकी सोच और हास्यपूर्ण समाधान ने उन्हें केवल दरबार में ही नहीं, बल्कि भारतीय लोककथाओं में भी एक विशिष्ट स्थान दिलाया।
तेनाली रामकृष्णा की कहानियाँ ( Tenali Rama ki Kahaniyan) आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं और हमें जीवन में अपने विवेक और बुद्धिमत्ता का उपयोग करने की शिक्षा देती हैं। उनकी ये कहानियाँ न केवल मनोरंजन का स्रोत हैं, बल्कि कठिन परिस्थितियों में सही मार्गदर्शन भी प्रदान करती हैं। अब इस पोस्ट में आप तेनाली रामकृष्णा की कई मजेदार और हंसी से भरी कहानियाँ ( Tenali Rama Stories in Hindi ) पढ़ सकते हैं।
तेनालीराम की कहानी - लाल मोर
Tenali Raman Story - Lal Mor
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय को अद्भुत और दुर्लभ वस्तुएं इकट्ठा करने का बहुत शौक था। उनके दरबार के सभी मंत्री और दरबारी इस प्रयास में रहते थे कि किसी भी तरह से उन्हें ऐसी अनोखी चीज़ें लाकर राजा को खुश किया जाए, जिससे उनका आदर बढ़े और साथ ही कुछ धन भी कमाया जा सके।
एक दिन एक दरबारी ने एक चाल चली। उसने एक मोर को रंग विशेषज्ञ से लाल रंगवा लिया और उसे लेकर राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पेश हो गया। दरबारी ने राजा से कहा, "महाराज, मैंने मध्य प्रदेश के घने जंगलों से आपके लिए एक अद्भुत और अनोखा मोर मंगाया है।"
राजा कृष्णदेव राय ने मोर को बड़े ध्यान से देखा। वह उस मोर को देखकर चकित हो गए और बोले, "लाल मोर... वास्तव में आपने हमारे लिए कुछ बहुत ही अद्भुत मंगाया है। हम इसे राष्ट्रीय उद्यान में बड़ी हिफाज़त से रखवाएंगे। पर एक बात बताओ, इसे लाने में तुम्हें कितना खर्च आया?"
राजा की प्रशंसा सुनकर दरबारी प्रसन्न हो गया और विनम्रता से जवाब दिया, "महाराज, इसे लाने के लिए मैंने अपने दो सेवकों को देश भर में भेजा था। वे कई सालों तक इस अद्भुत मोर की खोज में रहे। तब जाकर, मध्य प्रदेश के जंगलों में यह लाल मोर मिला। मैंने इन सेवकों पर करीब पच्चीस हजार रुपये खर्च किए हैं।"
दरबारी की बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय ने मंत्री से कहा, "मंत्री जी, इन सज्जन को पच्चीस हजार रुपये राज-कोष से दे दिए जाएं।"
मंत्री को यह आदेश देने के बाद राजा ने दरबारी से कहा, "यह रकम तो आपको इस मोर को लाने के लिए दी जा रही है, और एक सप्ताह बाद आपको उचित पुरस्कार भी मिलेगा।"
दरबारी को इससे ज्यादा क्या चाहिए था? वह तेनालीराम की ओर कुटिल दृष्टि से मुस्कराया, समझते हुए कि उसने राजा से पच्चीस हजार रुपये निकाल लिए हैं। तेनालीराम ने उसकी मुस्कान को समझा, लेकिन अभी चुप रहना ठीक समझा, क्योंकि उसे पूरी सच्चाई का अहसास हो गया था। तेनालीराम जानता था कि कोई भी लाल रंग का मोर कभी नहीं पाया गया। वह जानता था कि यह सब दरबारी की चाल है।
अगले ही दिन तेनालीराम ने उस रंग विशेषज्ञ को ढूंढ लिया, जिसने मोर को लाल रंग से रंगा था। तेनालीराम ने चार और मोर लेकर उस चित्रकार के पास भेजे और उन्हे लाल रंग से रंगवाया। फिर वह उन्हे लेकर राजा के दरबार में पहुंचे और बोले, "महाराज, हमारे मित्र दरबारी ने पच्चीस हजार में केवल एक लाल मोर मंगवाया था, जबकि मैंने पचास हजार में इससे भी सुंदर चार लाल मोर लाए हैं।"
राजा ने मोरों को देखा और सचमुच तेनालीराम के चारों मोर उन मोरों से कहीं ज्यादा सुंदर और चमकीले थे। राजा ने तेनालीराम से कहा, "तेनालीराम को राज-कोष से पचास हजार रुपये तुरंत दे दिए जाएं।"
लेकिन तेनालीराम ने उस चित्रकार की ओर इशारा करते हुए राजा से कहा, "महाराज, इन पुरस्कारों का असली हकदार यह चित्रकार है, मैं नहीं। यह चित्रकार किसी भी वस्तु का रंग बदलने में माहिर है, और इन्हीं की कला से ही ये मोर लाल हुए हैं।"
राजा कृष्णदेव राय को सब कुछ समझते देर नहीं लगी। वह समझ गए कि पहले दिन दरबारी ने उन्हें मूर्ख बना कर रुपये निकाल लिए थे। राजा ने तुरंत उस दरबारी को पच्चीस हजार रुपये लौटाने और पांच हजार रुपये जुर्माना देने का आदेश दिया। वहीं, चित्रकार को पुरस्कार दिया गया।
दरबारी अब क्या कर सकता था? वह सिर्फ अपना सिर झुकाकर खड़ा रह गया। राजा कृष्णदेव राय को खुश करने के चक्कर में वह न केवल पच्चीस हजार रुपये खो बैठा, बल्कि पांच हजार रुपये का जुर्माना भी भुगतना पड़ा।
Download Imageतेनालीराम की कहानी - राजगुरु की चाल
Tenali Raman Story - Rajguru Ki Chaal
तेनालीराम की ईमानदारी से जलने वाले कुछ ब्राह्मण एक दिन राजगुरु के पास गए। उन्हें यह अच्छे से मालूम था कि राजगुरु तेनालीराम के कट्टर विरोधी हैं और तेनालीराम से बदला लेने के लिए वह उनका साथ देंगे। दोनों ने मिलकर एक चाल चली, जिसमें तेनालीराम को शिष्य बनाने का बहाना बनाया गया। उनका योजना था कि तेनालीराम को दागा जाएगा और फिर राजगुरु उसे निम्न श्रेणी का ब्राह्मण बताकर शिष्य बनाने से इंकार कर देंगे, जिससे उनका बदला पूरा हो जाएगा।
अगले दिन राजगुरु ने तेनालीराम को अपने घर बुलाया और कहा, “मैं तुम्हें इस मंगलवार को अपना शिष्य बना लूंगा। उस दिन तुम स्नान करके मेरे द्वारा दिए गए नए वस्त्र पहनकर मेरे पास आ जाना। फिर तुम्हें सौ स्वर्ण मुद्राएँ भी दी जाएंगी और विधिपूर्वक मैं तुम्हें अपना शिष्य स्वीकार करूंगा।”
तेनालीराम ने बिना किसी शक के कहा, “ठीक है, मैं उस दिन आपके पास आ जाऊंगा।” घर लौटने पर उसने अपनी पत्नी को पूरी बात बताई। पत्नी ने कहा, "राजगुरु के साथ किसी भी बात में धोखा हो सकता है। वह बिना किसी कारण कुछ नहीं करता, कोई न कोई चाल जरूर होगी।" तेनालीराम हंसते हुए बोला, "राजगुरु को तो मैं देख लूंगा। अगर वह शेर है तो मैं सवा शेर हूँ।"
तेनालीराम ने अपनी पत्नी की चिंता को नजरअंदाज करते हुए सोचा कि कुछ दिन पहले राजगुरु के यहां एक सभा हुई थी, जिसमें सोमदत्त नामक ब्राह्मण भी मौजूद था। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए तेनालीराम ने उसे दस स्वर्ण मुद्राएं देकर राजगुरु की सभा के बारे में जानकारी ली। सोमदत्त ने तेनालीराम को बताया कि राजगुरु ने तेनालीराम को शिष्य बनाने का बहाना बनाया है, ताकि उसे शास्त्रों के अनुसार दागा जाए और फिर उसे अस्वीकृत कर दिया जाए।
मंगलवार का दिन आया और तेनालीराम सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद राजगुरु के घर की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने राजगुरु द्वारा दिए गए वस्त्र पहन लिए। राजगुरु ने उसे सौ स्वर्ण मुद्राएं दी और फिर शंख और लौह चक्र से दागने की प्रक्रिया शुरू की। जैसे ही तेनालीराम तपने के बाद पूरी तरह तैयार हुआ, उसने अचानक पचास स्वर्ण मुद्राएं राजगुरु की ओर फेंकते हुए कहा, "आधी मुद्राएं तो बहुत हैं, बाकी आधी आप रख लीजिए।"
इतना कहकर वह भाग खड़ा हुआ। राजगुरु और ब्राह्मणों ने शंख और लौह चक्र लेकर तेनालीराम का पीछा करना शुरू कर दिया। रास्ते में बड़ी भीड़ जमा हो गई, क्योंकि यह दृश्य बहुत ही अजीब था। तेनालीराम दौड़ते हुए राजा के पास पहुंचा और बोला, "महाराज, न्याय करें! मुझे राजगुरु का शिष्य बनाना था, लेकिन मुझे याद आया कि मैं तो निम्न कोटि का ब्राह्मण हूं, और केवल वैदिकी ब्राह्मण ही शिष्य बन सकते हैं। इसलिए मैंने आधी विधि होने पर पचास स्वर्ण मुद्राएं रख लीं और बाकी वापस कर दीं। अब वे मुझे दगवाने के लिए मेरे पीछे दौड़ रहे हैं।"
राजगुरु और बाकी ब्राह्मण भी वहां आ पहुंचे। राजा ने राजगुरु से पूछा और उसने झिझकते हुए यह स्वीकार किया कि तेनालीराम उनका शिष्य नहीं बन सकता। राजगुरु ने असली कारण छिपाते हुए कहा, "मुझे यह याद नहीं रहा कि तेनालीराम निम्न कोटि का ब्राह्मण है।" राजा कृष्णदेव राय मुस्कराए और बोले, "तेनालीराम की ईमानदारी के लिए उसे इनाम मिलना चाहिए।"
राजा ने तेनालीराम को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम के रूप में दीं। इस प्रकार राजगुरु और ब्राह्मणों का बदला लेने की योजना नाकाम रही और तेनालीराम की ईमानदारी ने उसे शाही इनाम दिलवाया।
तेनालीराम की कहानी - रंग-बिरंगे नाखून
Tenali Raman Story - Rang-Birange Nakhun
राजा कृष्णदेव राय को पशु-पक्षियों से बेहद प्रेम था। एक दिन एक बहेलिया अपने पास एक सुंदर और रंग-बिरंगे पक्षी को लेकर दरबार में आया। वह राजा के पास गया और बोला, "महाराज, मैंने इस सुंदर पक्षी को कल जंगल से पकड़ा है। यह न सिर्फ बहुत मीठा गाता है, बल्कि तोते की तरह बोल भी सकता है। यह मोर के जैसे रंग-बिरंगा है और मोर की तरह नाच भी सकता है। मैं इसे आपके लिए बेचने आया हूं।"
राजा ने पक्षी को देखा और कहा, "यह पक्षी सचमुच बहुत रंग-बिरंगा और विचित्र है। मैं इसके लिए उचित मूल्य दूंगा।"
राजा ने बहेलिए को 50 स्वर्ण मुद्राएं दीं और उस पक्षी को महल के बगीचे में रखने का आदेश दिया। इस बीच, तेनालीराम जो दरबार में खड़ा था, उसने हस्तक्षेप करते हुए कहा, "महाराज, मुझे नहीं लगता कि यह पक्षी बरसात में मोर की तरह नृत्य कर सकता है। मुझे तो यह भी लगता है कि इस पक्षी ने कई सालों से नहाया तक नहीं है।"
तेनालीराम की बात सुनकर बहेलिया घबरा गया और दुखी स्वर में बोला, "महाराज, मैं एक निर्धन बहेलिया हूं, और पक्षियों को पकड़कर ही अपना पेट पालता हूं। मुझे पक्षियों के बारे में पर्याप्त जानकारी है। बिना किसी प्रमाण के मुझे झूठा कहना गलत है। क्या मेरी गरीबी का मतलब यह है कि तेनालीराम को मुझे गलत कहने का अधिकार मिल गया है?"
बहेलिया की बात सुनकर राजा भी तेनालीराम से नाराज हो गए और बोले, "तेनालीराम, तुम्हें ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिए था। क्या तुम अपनी बात साबित कर सकते हो?"
तेनालीराम ने तुरंत जवाब दिया, "महाराज, मैं अपनी बात साबित करना चाहता हूं।" यह कहते हुए तेनालीराम ने पक्षी के पिंजरे में एक गिलास पानी डाल दिया। जैसे ही पानी पक्षी पर गिरा, उसकी रंगीन plumage पर लगे रंग ने रंग बदल लिया और हल्का भूरा हो गया। सभी दरबारी हैरान होकर पक्षी को देखने लगे। राजा भी तेनालीराम को हैरान हो कर देख रहे थे।
तेनालीराम ने राजा से कहा, "महाराज, यह कोई विचित्र पक्षी नहीं है, बल्कि यह एक जंगली कबूतर है।"
राजा ने हैरान होकर पूछा, "तेनालीराम, तुम कैसे जान सकते हो कि यह पक्षी रंगा गया है?"
तेनालीराम मुस्कराते हुए बोला, "महाराज, यह पक्षी रंगा हुआ है, और उसके नाखूनों का रंग भी उसी रंग से मेल खाता है, जो उसके पंखों पर था। बहेलिया के नाखूनों पर रंग की तरह रंगा हुआ था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उसने इस पक्षी को रंगा है।"
अपनी धोखाधड़ी की पोल खुलते ही बहेलिया भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन राजमहल के सैनिकों ने उसे पकड़ लिया। राजा ने बहेलिया को धोखा देने के आरोप में जेल में डालने का आदेश दिया और उसे जो 50 स्वर्ण मुद्राएं दी गई थीं, वह तेनालीराम को पुरस्कार स्वरूप दे दीं।
राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम की चतुराई से बेहद प्रभावित हुए और उन्हें अपनी ईमानदारी और समझदारी के लिए पुरस्कृत किया।
तेनालीराम की कहानी - बेशकीमती फूलदान
Tenali Raman Story - Beshkeemti Phooldan
विजयनगर के वार्षिक उत्सव में हर बार की तरह इस बार भी धूमधाम से उत्सव मनाया गया। आसपास के राज्यों के राजा-महाराजाओं ने भी महाराज के लिए बेशकीमती उपहार भेजे। उन उपहारों में सबसे अधिक आकर्षण महाराज को चार सुंदर रत्नजड़ित रंग-बिरंगे फूलदानों ने आकर्षित किया। महाराज ने उन फूलदानों को अपने विशेष कक्ष में रखवाया और उनकी सुरक्षा के लिए एक सेवक, रमैया को नियुक्त किया। रमैया को यह स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इन फूलदानों की कोई क्षति हुई तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ सकती है।
एक दिन रमैया फूलदानों की सफाई कर रहा था, तभी अचानक उसके हाथ से एक फूलदान गिरकर टूट गया। जैसे ही महाराज को इस बारे में पता चला, उन्होंने चार दिन बाद रमैया को फांसी देने का आदेश दे दिया। महाराज का आदेश सुनकर तेनालीराम तुरंत महाराज के पास गए और कहा, "महाराज, एक फूलदान टूट जाने पर आप अपने इतने पुराने और विश्वासपात्र सेवक को मृत्युदंड कैसे दे सकते हैं? यह तो बिल्कुल नाइंसाफी है।"
महाराज गुस्से में थे, और उन्होंने तेनालीराम की बात पर ध्यान नहीं दिया। जब महाराज नहीं समझे, तो तेनालीराम रमैया के पास गए और उससे कहा, "तुम चिंता मत करो, अब मैं जो कहूं, वह ध्यान से सुनो और फांसी से पहले वही करना। मैं तुम्हारी जान बचा लाऊंगा।" रमैया ने तेनालीराम की बात को ध्यान से सुना और कहा, "मैं ऐसा ही करूंगा।"
फांसी का दिन आया और महाराज भी वहां उपस्थित थे। रमैया से उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई, तो उसने कहा, "महाराज, मुझे एक बार बचे हुए तीन फूलदानों को देखने का अवसर मिलना चाहिए, जिनकी वजह से मुझे फांसी दी जा रही है।" महाराज ने उसकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए तीनों फूलदान मंगवाए।
रमैया ने जैसे ही फूलदान देखे, उसने तेनालीराम के कहे अनुसार तीनों फूलदानों को एक-एक करके ज़मीन पर गिरा कर तोड़ दिया। यह देख महाराज चिल्लाए, "यह तुमने क्या किया? तुमने इन फूलदानों को क्यों तोड़ा?"
रमैया शांत स्वर में बोला, "महाराज, जब एक फूलदान टूटने पर मुझे फांसी दी जा रही है, तो मुझे लगा जब ये तीनों फूलदान टूटेंगे तो तीन और निर्दोषों को फांसी दी जाएगी। इसलिए मैंने इन तीनों को तोड़ दिया ताकि तीन लोगों की जान बच सके। इन फूलदानों का कोई मूल्य नहीं है, इंसान की जान से ज्यादा कोई चीज कीमती नहीं हो सकती।"
रमैया की बात सुनकर महाराज का गुस्सा शांत हो गया और उन्होंने उसे तुरंत माफ कर दिया। फिर उन्होंने रमैया से पूछा, "तुमने यह सब किसकी सलाह से किया?" रमैया ने पूरी सच्चाई बता दी कि यह सब तेनालीराम के कहने पर किया था।
महाराज ने तेनालीराम को अपने पास बुलाया और कहा, "तुमने आज एक निर्दोष की जान बचाई और हमें यह सिखाया कि गुस्से में लिए गए फैसले हमेशा गलत होते हैं। तेनालीराम, तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद!"
Download Imageतेनालीराम की कहानी - चोर और कुआं
Tenali Raman Story - Chor aur Kuaan
एक बार राजा कृष्णदेव राय जेल का निरीक्षण करने गए। वहाँ उन्होंने देखा कि दो बंदी चोर राजा से दया की भीख मांग रहे थे। दोनों ने राजा से कहा कि वे चोरी करने में माहिर थे और अगर उन्हें रिहा किया जाए, तो वे अन्य चोरों को पकड़ने में राजा की मदद कर सकते हैं।
राजा ने उन दोनों की बातों पर विचार किया और अपनी दयालुता दिखाते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया, लेकिन एक शर्त के साथ। राजा ने कहा, "मैं तुम्हें रिहा कर दूंगा और तुम्हें जासूस नियुक्त करूंगा, लेकिन अगर तुम मेरे सलाहकार तेनालीराम के घर में घुसकर वहाँ से कीमती सामान चुराने में सफल हो गए, तभी तुम्हें रिहाई मिलेगी।" चोरों ने राजा की चुनौती स्वीकार कर ली।
रात के समय, दोनों चोर तेनालीराम के घर के पास पहुंचे और झाड़ियों में छिप गए। रात का खाना खाने के बाद, जब तेनालीराम बाहर टहलने गए, तो उन्हें झाड़ियों में हलचल सुनाई दी। उन्हें समझ में आ गया कि उनके बगीचे में चोर घुसे हुए हैं।
थोड़ी देर बाद, तेनालीराम अंदर गए और अपनी पत्नी को कहा, "हमें अपने कीमती सामान के बारे में बहुत सतर्क रहना होगा, क्योंकि दो चोर हमारे पास भागते हुए आ सकते हैं।" उन्होंने अपनी पत्नी को सोने, चांदी के सिक्कों और आभूषणों को एक बक्से में जमा करने के लिए कहा। चोरों ने तेनालीराम और उनकी पत्नी की बातें सुनीं और यह समझ लिया कि तेनालीराम के घर में कीमती सामान मौजूद है।
कुछ समय बाद, तेनालीराम ने बक्से को उठाया और घर के पीछे मौजूद कुएं में फेंक दिया। चोरों ने यह सब देखा और समझ गए कि बक्से में जरूर कुछ कीमती होगा। जैसे ही तेनालीराम घर के अंदर गए, दोनों चोर कुएं के पास पहुंचे और उसमें से पानी निकालने लगे। वे पूरी रात कुएं से पानी खींचते रहे, यह उम्मीद करते हुए कि बक्सा उनके हाथ लगेगा।
कई घंटों बाद, भोर के समय, दोनों चोर उस बक्से को बाहर निकालने में सफल हो गए, लेकिन जैसे ही उन्होंने बक्सा खोला, उन्हें उसमें केवल भारी पत्थर ही मिले। चोरों का चेहरा देख तेनालीराम बाहर आए और हंसते हुए कहा, "तुम दोनों का बहुत धन्यवाद, क्योंकि तुम्हारी वजह से मेरी पौधों को पानी मिला और मुझे अच्छी नींद आई।"
यह सुनकर चोरों को समझ में आ गया कि तेनालीराम ने उन्हें पूरी तरह से बेवकूफ बना दिया। वे तेनालीराम से माफी मांगते हुए वहाँ से चले गए।
राजा कृष्णदेव राय को जब यह सब पता चला, तो उन्होंने तेनालीराम की चतुराई की सराहना की और चोरों को सजा देने के बजाय उन्हें चेतावनी दी।
निष्कर्ष –
तेनाली रामकृष्णा की कहानियाँ ( Tenali Rama Stories in Hindi ) केवल मनोरंजन का स्रोत नहीं हैं, बल्कि वे जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी देती हैं। उनकी चतुराई, बुद्धिमत्ता और हास्यपूर्ण दृष्टिकोण यह सिखाते हैं कि किसी भी समस्या का समाधान विवेक और समझदारी से किया जा सकता है। तेनाली रामकृष्णा का जीवन यह सिद्ध करता है कि सच्ची सफलता मानसिक क्षमता और सही दिशा में सोचने से प्राप्त होती है। उनकी कहानियाँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और एक अमूल्य धरोहर के रूप में जीवित रहती हैं।( Tenali Rama Story in Hindi )
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