Tenali Rama Story in Hindi – तेनाली रामकृष्णा की कहानियाँ भारतीय लोककथाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। तेनाली रामकृष्णा, विजयनगर साम्राज्य के सम्राट कृष्णदेवराय के दरबार में एक प्रमुख और बुद्धिमान मंत्री थे। उनका जन्म कर्नाटका राज्य के तेनाली गाँव में हुआ था। तेनाली रामकृष्णा अपनी असाधारण चतुराई और हास्य के लिए प्रसिद्ध थे।
वे अपनी बुद्धिमत्ता से दरबार में होने वाली समस्याओं का हल सरलता से निकालते थे और हमेशा अपने विरोधियों को अपनी चतुराई से चौंका देते थे। उनके द्वारा की गई कई कहानियाँ आज भी प्रसिद्ध हैं, जो जीवन के मूल्य और सरलता को समझाती हैं। तेनाली रामकृष्णा ने हमेशा यह सिखाया कि किसी भी समस्या का समाधान सोच-समझ कर और चतुराई से किया जा सकता है। उनके तेज दिमाग और हास्यपूर्ण समाधान ने उन्हें न केवल दरबार में बल्कि भारतीय लोककथाओं में भी एक खास स्थान दिलाया।
उनकी कहानियाँ ( Tenali Rama Stories ) आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और हमें जीवन में अपने विवेक और बुद्धिमत्ता का प्रयोग करने की शिक्षा देती हैं। तेनाली रामकृष्णा की कहानियाँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि जीवन के कठिन समय में सही मार्गदर्शन भी देती हैं। अब आपको इस पोस्ट में तेनाली राम की कई मजेदार और हंसी से भरपूर कहानियाँ ( Tenali Rama Story in Hindi ) पढ़ने को मिलेंगी।
तेनालीराम की कहानी - हीरों का सच
Tenali Raman Story -Heeron ka sach
एक बार राजा कृष्णदेवराय अपने दरबार में मंत्रियों के साथ विचार विमर्श कर रहे थे, तभी एक व्यक्ति उनके सामने आकर बोला, “महाराज, मेरे साथ न्याय करें। मेरे मालिक ने मुझे धोखा दिया है।” यह सुनकर राजा ने उस व्यक्ति से पूछा, “तुम कौन हो और तुम्हारे साथ क्या हुआ है?”
वह व्यक्ति बोला, “महाराज, मेरा नाम नामदेव है। कल मैं अपने मालिक के साथ किसी काम से एक गाँव जा रहा था। चलते-चलते हम दोनों थक गए और पास के एक मंदिर की छांव में बैठ गए। वहीं मेरी नजर एक लाल रंग की थैली पर पड़ी जो मंदिर के एक कोने में रखी थी। मैंने अपने मालिक की अनुमति लेकर वह थैली उठा ली और खोलने पर पाया कि उसमें दो हीरे थे, जो बेर के आकार के थे। चूंकि ये हीरे मंदिर में मिले थे, इसलिए उन पर राज्य का अधिकार था। लेकिन मेरे मालिक ने मुझे इन हीरों के बारे में किसी को न बताने का आदेश दिया और कहा कि हम दोनों एक-एक हीरा रख लेंगे। मैं अपने मालिक की गुलामी से परेशान था और मुझे काम करने की स्वतंत्रता चाहिए थी, इसलिए मेरे मन में लालच आ गया। जब हम वापस आए तो मालिक ने हीरे देने से इनकार कर दिया, और मुझे न्याय चाहिए।”
राजा कृष्णदेवराय तुरंत कोतवाल को भेजकर नामदेव के मालिक को महल में बुलवा लिया। जब मालिक सामने आया, तो राजा ने उससे हीरों के बारे में पूछा। मालिक बोला, “महाराज, यह सच है कि मंदिर में हीरे मिले थे, लेकिन मैंने उन हीरों को नामदेव को देने के बाद उसे राजकोष में जमा करने को कहा था। जब वह वापस आया, तो मैंने उससे राजकोष की रशीद मांगी, लेकिन वह आनाकानी करने लगा। जब मैंने इसे धमकाया, तो यह आपके पास आकर झूठी कहानी सुनाने लगा।” राजा ने कहा, “क्या तुम्हारे पास इसका कोई सबूत है?” मालिक ने जवाब दिया, “अगर आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करते तो आप मेरे तीनों नौकरों से पूछ सकते हैं, जो उस वक्त वहाँ मौजूद थे।”
राजा ने उन तीनों नौकरों को बुलवाया। तीनों ने नामदेव के खिलाफ गवाही दी। अब राजा ने उन्हें बिठा दिया और अपने विश्राम कक्ष में सेनापति तेनालीराम और महामंत्री को बुलाया। तेनालीराम ने गहरी सोच में डूबकर राजा से कहा, “महाराज, मुझे नहीं लगता कि नामदेव झूठ बोल रहा है।” फिर राजा ने तेनालीराम से पूछा कि वह इस मामले को कैसे सुलझाएंगे। तेनालीराम बोला, “महाराज, सच और झूठ का पता तभी चलेगा जब आप सब कुछ पर्दे के पीछे छुप कर देखेंगे।” राजा ने उसकी बात मानी और सभी पर्दे के पीछे छुप गए।
अब विश्राम कक्ष में तेनालीराम अकेला था। उसने पहले गवाह को बुलवाया और उससे पूछा, “क्या तुम्हारे सामने तुम्हारे मालिक ने नामदेव को हीरे दिए थे?” गवाह ने जवाब दिया, “जी हाँ।” तेनालीराम ने पूछा, “क्या तुम हीरों के रंग और आकार के बारे में जानते हो?” गवाह बोला, “नहीं, क्योंकि वे लाल थैली में थे।” तेनालीराम ने उसे चुपचाप खड़ा कर दिया और दूसरे गवाह को बुलवाया। दूसरे गवाह ने हीरों के रंग और आकार के बारे में जानकारी दी और कागज पर गोल आकृतियाँ बनाई। तेनालीराम ने उसे भी पहले गवाह के पास खड़ा कर दिया। फिर तीसरे गवाह को बुलाया और उसने कहा कि हीरे भोजपत्र की थैली में थे, इस कारण उसने उन्हें नहीं देखा था।
यह सुनकर राजा पर्दे के पीछे से बाहर आ गए। तीनों गवाहों को घबराया हुआ देख उन्होंने तुरंत सच बोलने का निर्णय लिया। तीनों गवाहों ने स्वीकार किया कि उन्हें मालिक ने धमकाया था और नौकरी से निकालने की धमकी दी थी, इसलिए वे झूठ बोल रहे थे। राजा ने तुरंत मालिक के घर की तलाशी लेने का आदेश दिया, और वहाँ दोनों हीरे बरामद कर लिए गए। सजा के रूप में मालिक को दस हजार स्वर्ण मुद्राएं नामदेव को देनी पड़ी और बीस हजार स्वर्ण मुद्राएं जुर्माने के तौर पर भरनी पड़ी। दोनों हीरे राजकोष में जमा कर लिए गए। इस प्रकार तेनालीराम की चतुराई से राजा ने नामदेव के पक्ष में न्याय दिया।
Download Imageतेनालीराम की कहानी - दूध न पीने वाली बिल्ली
Tenali Raman Story - Dodh na peene valee billee
एक बार महाराज कृष्णदेवराय ने सुना कि उनके नगर में चूहों ने आतंक मचाया हुआ है। चूहों से निजात पाने के लिए उन्होंने एक हजार बिल्लियाँ पालने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद, एक हजार बिल्लियाँ मंगवाकर नगरवासियों में वितरित कर दी गईं। हर बिल्ली के साथ एक गाय भी दी गई ताकि उसका दूध पिलाकर बिल्लियों को पाला जा सके।
चूहों से सभी लोग परेशान थे, इसलिए बिल्लियाँ मिलने के समय लोगों की लंबी-लंबी कतारें लग गई थीं। तेनालीराम भी इस समय एक कतार में खड़ा था। जब उसकी बारी आई, तो उसे भी एक बिल्ली और एक गाय दी गई। तेनालीराम ने बिल्लियों को घर ले जाकर उसे गर्मागर्म दूध पिलाने की कोशिश की। लेकिन बिल्ली इतनी भूखी थी कि जैसे ही उसने दूध पीने की कोशिश की, गर्म दूध से उसका मुंह जल गया। इसके बाद, चाहे दूध ठंडा हो या गर्म, बिल्ली कभी भी दूध नहीं पीती थी और उसे देखकर भाग जाती। अब, गाय का सारा दूध तेनालीराम और उसके परिवार के सदस्य पी जाते थे। बिल्ली भी कमजोर हो गई और तीन महीने में इतनी लाचार हो गई कि चूहे पकड़ने की ताकत भी नहीं रही।
तीन महीने बाद महाराज ने बिल्लियों की स्थिति का निरीक्षण करने का आदेश दिया। देखा गया कि गाय का दूध पीकर बाकी सारी बिल्लियाँ मोटी-तगड़ी हो गई थीं, लेकिन तेनालीराम की बिल्ली बहुत कमजोर हो गई थी और कांटे जैसी दिखाई दे रही थी। महाराज ने जब तेनालीराम की बिल्ली की हालत देखी, तो वह गुस्से में आ गए। उन्होंने तेनालीराम को तुरंत दरबार में बुलवाया और गरजते हुए कहा, "तुमने इस बिल्ली का क्या हाल बना दिया है? क्या तुम इसे दूध नहीं पिलाते?"
तेनालीराम ने शांतिपूर्वक जवाब दिया, "महाराज, मैं तो रोज इसके सामने दूध का कटोरा रखता हूँ, लेकिन यह दूध पीती ही नहीं है। इसमें मेरा क्या दोष है?"
महाराज को तेनालीराम की बात पर विश्वास नहीं हुआ और वे क्रोधित होकर बोले, "क्या तुम झूठ बोल रहे हो? बिल्ली दूध नहीं पीती? मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला।"
तेनालीराम ने फिर से कहा, "महाराज, यही सच है। यह बिल्ली दूध नहीं पीती।" महाराज ने गुस्से में कहा, "ठीक है, अगर तुम्हारी बात सच निकली तो तुम्हें सौ स्वर्ण मुद्राएँ मिलेंगी। अगर यह झूठ निकला, तो तुम्हें सौ कोड़े लगेंगे।"
तेनालीराम ने बिना हिचकिचाए कहा, "मुझे मंजूर है।" फिर महाराज ने तुरंत दूध से भरा हुआ कटोरा मंगवाया। जब कटोरा आ गया, तो महाराज ने तेनालीराम की बिल्ली को उठाया और उसके सिर को सहलाते हुए कटोरे के पास छोड़ते हुए कहा, "बिल्ली रानी, दूध पियो!"
लेकिन जैसे ही बिल्ली ने दूध को देखा, वह म्याऊं करती हुई कटोरे से दूर भाग गई। तेनालीराम ने महाराज से कहा, "महाराज, अब तो आपको यकीन हो गया होगा कि मेरी बिल्ली दूध नहीं पीती। अब कृपया मुझे सौ स्वर्ण मुद्राएँ दें।"
महाराज थोड़ी देर सोचते हुए बोले, "ठीक है, लेकिन मैं एक बार इस बिल्ली को अच्छे से देखना चाहता हूँ।" उन्होंने एक सेवक को आदेश दिया और बिल्ली को पकड़ा लिया। जब महाराज ने बिल्ली का अच्छी तरह से निरीक्षण किया, तो उन्होंने देखा कि उसके मुंह पर जलने का एक बड़ा निशान था। यह देखकर उन्हें समझ में आ गया कि बिल्ली गर्म दूध से जलने के डर से दूध नहीं पीती थी।
महाराज गुस्से में बोले, "तुमने इस बेचारी बिल्ली को जानबूझकर गर्म दूध पिलाया ताकि वह दूध न पी सके। तुम्हें इस कृत्य पर शर्म नहीं आई?"
तेनालीराम ने शांत रहते हुए जवाब दिया, "महाराज, यह देखना तो आपके कर्तव्य का हिस्सा है कि आपके राज्य में बिल्लियों से पहले मनुष्य के बच्चों को दूध मिलना चाहिए।" यह सुनकर महाराज हंस पड़े और बोले, "तुम्हारा कहना सही है, लेकिन मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में तुम बेजुबान जानवरों के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं करोगे।"
महाराज ने तेनालीराम को तुरंत एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ भेंट दीं और कहा, "तुम्हारी बातों ने मुझे सिखाया है, लेकिन आगे से बेजुबान जानवरों के प्रति दयालु रहना।"
तेनालीराम की कहानी - रंग-बिरंगी मिठाइयां
Tenali Raman Story - Rang-Birangi Mithaiyan
वसंत ऋतु का मौसम छाया हुआ था और राजा कृष्णदेवराय बहुत खुश थे। वह तेनालीराम के साथ बाग में टहलते हुए सोच रहे थे कि एक ऐसा उत्सव मनाया जाए, जिसमें उनके राज्य के सभी लोग शामिल हो सकें और पूरे राज्य में खुशियों का माहौल हो। इस विचार पर तेनालीराम ने उनकी सराहना की, और राजा ने तुरंत विजयनगर में राष्ट्रीय उत्सव मनाने का आदेश दे दिया।
राजा के आदेश पर नगर को पूरी तरह से साफ करवाया गया, सड़कों और इमारतों में रोशनी की व्यवस्था की गई, और नगर को सुंदर फूलों से सजाया गया। उत्सव का माहौल छा गया। इसके बाद राजा ने यह घोषणा की कि राष्ट्रीय उत्सव के अवसर पर हलवाई की दुकानों पर रंग-बिरंगी मिठाइयाँ बेची जाएं। इस घोषणा के बाद नगर के सभी हलवाई रंगीन मिठाइयाँ बनाने में व्यस्त हो गए।
इसके बाद कई दिन बीत गए, लेकिन तेनालीराम का कहीं कुछ पता नहीं चला। राजा कृष्णदेवराय ने सिपाहियों को तेनालीराम को ढूंढ़ने का आदेश दिया, लेकिन वे भी तेनालीराम का पता नहीं लगा पाए। यह सुनकर राजा और अधिक चिंतित हो गए और उन्होंने सिपाहियों को फिर से आदेश दिया कि तेनालीराम को हर हाल में ढूंढ़कर लाओ।
कुछ दिनों बाद सैनिकों ने तेनालीराम को ढूंढ़ निकाला। वे वापस आए और राजा को बताया, "महाराज, तेनालीराम ने कपड़ों की रंगाई की दुकान खोल ली है और वह सारा दिन उसी काम में व्यस्त रहते हैं। जब हमने उन्हें हमारे साथ चलने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया।"
राजा को यह सुनकर गुस्सा आ गया। उन्होंने सैनिकों से कहा, "मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि तेनालीराम को तुरंत पकड़कर दरबार में ले आओ। अगर वह अपनी मर्जी से न आए, तो उसे बलपूर्वक ले आओ।"
सैनिकों ने तेनालीराम को पकड़कर दरबार में पेश किया। राजा ने गुस्से में पूछा, "तेनालीराम, जब मैंने तुम्हें दरबार में बुलाने के लिए सैनिक भेजे, तो तुमने शाही आदेश का पालन क्यों नहीं किया? हमारे दरबार में तुम्हारा बहुत अच्छा स्थान है, और तुम अपनी सभी आवश्यकताएं पूरी कर सकते हो। फिर क्यों तुमने रंगरेज की दुकान खोली?"
तेनालीराम शांतिपूर्वक बोले, "महाराज, दरअसल, मैं राष्ट्रीय उत्सव के लिए अपने कपड़े रंगवाना चाहता था। नगर में बहुत से लोग अपने कपड़े रंगवाने के लिए आ रहे हैं, और इस काम से अच्छी कमाई हो रही है। इससे पहले कि सारे रंग बिक जाएं, मैंने सोचा कि मैं अपना काम पहले कर लूं।"
राजा ने हैरान होकर पूछा, "सारे रंगों का इस्तेमाल करने से तुम्हारा क्या मतलब है? क्या नगर के सारे लोग अपने कपड़े रंगवा रहे हैं?"
तेनालीराम ने जवाब दिया, "नहीं महाराज, आपके आदेश के बाद नगर के ज्यादातर हलवाई मिठाइयों को रंगने के लिए रंग खरीदने में व्यस्त हो गए हैं। अगर वे सारे रंग खरीद लेंगे, तो मैं अपने कपड़े कैसे रंगवाऊँगा?"
राजा को अब अपनी गलती का अहसास हो गया। उन्होंने कहा, "तो तुम यह कहना चाहते हो कि मेरा आदेश गलत था। मिठाई बनाने वाले, जो रंग-बिरंगी मिठाइयाँ बना रहे हैं, वे हानिकारक रासायनिक रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि उन्हें केवल खाने योग्य रंगों का ही प्रयोग करना चाहिए।"
राजा ने गंभीर होकर आदेश दिया कि जो हलवाई हानिकारक रासायनिक रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें कड़ी सजा दी जाए। इस प्रकार, तेनालीराम ने अपनी समझदारी से विजयनगर के नागरिकों को हानिकारक रंगों से होने वाली बीमारियों से बचा लिया।
तेनालीराम की कहानी - तेनालीराम मटके में
Tenali Raman Story - Tenaliram Matke Mein
एक बार महाराज कृष्णदेवराय तेनालीराम से इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने उसे अपनी शक्ल न दिखाने का आदेश दे दिया और कहा, "अगर तुम मेरे आदेश की अवहेलना करते हो, तो तुम्हें कोड़े लगाए जाएंगे।"
महाराज उस समय बहुत गुस्से में थे, इसलिए तेनालीराम ने यह समझा कि वह वहां से चले जाएं। अगले दिन, जब महाराज राजदरबार की ओर आ रहे थे, एक दरबारी जो तेनालीराम से चिढ़ा हुआ था, महाराज को तेनालीराम के खिलाफ भड़काने लगा। वह महाराज से बोला, "आज तो तेनालीराम ने आपके आदेश की पूरी अवहेलना की है। आपके मना करने के बावजूद वह दरबार में आया है और वहाँ ऊल-जलूल हरकतें करके सबको हंसा रहा है।"
दरबारी की बात सुनकर महाराज के कदम तेज़ी से राजदरबार की ओर बढ़ने लगे। जब महाराज राजदरबार पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि तेनालीराम ने अपने चेहरे पर एक मटका पहन रखा है, जिसमें आँखों के स्थान पर दो छेद बने हुए थे। यह देखकर महाराज और भी अधिक क्रोधित हो गए और तेनालीराम पर गरजते हुए बोले, "तुमने हमारा आदेश नहीं माना और अब ये अजीबो-गरीब हरकतें कर रहे हो। अब तुमको कोड़े खाने के लिए तैयार रहना चाहिए।"
तेनालीराम के विरोधी खुशी से झूम रहे थे, लेकिन तभी तेनालीराम शांति से बोला, "महाराज, मैंने तो आपका कोई आदेश नहीं तोड़ा है। आपका आदेश था कि मुझे अपना चेहरा नहीं दिखाना है। तो क्या आपको कहीं से मेरा चेहरा दिखाई दे रहा है? अगर ऐसा है, तो जरूर उस कुम्हार ने मुझे फूटा हुआ मटका दे दिया है।"
तेनालीराम की बात सुनते ही महाराज का गुस्सा तुरंत शांत हो गया और वे हंस पड़े। उन्होंने कहा, "सच कहा गया है कि मूर्खों और विदूषकों पर गुस्सा करना व्यर्थ है। अब इस मटके को हटाओ और अपने आसन पर बैठ जाओ।"
तेनालीराम की बुद्धिमानी से महाराज को समझ आ गया, और तेनालीराम के विरोधी फिर से चुप हो गए।
Download Imageतेनालीराम की कहानी - अंगूठी चोर
Tenali Raman Story - Angoothi Chor
महाराजा कृष्णदेव राय एक कीमती रत्नजड़ित अंगूठी पहना करते थे। जब भी वह दरबार में होते, उनकी नज़र अक्सर अपनी सुंदर अंगूठी पर चली जाती थी। राजमहल में आने वाले मेहमानों और मंत्रीगणों से भी वह बार-बार अपनी उस अंगूठी का जिक्र करते थे।
एक दिन राजा कृष्णदेव राय उदास बैठे थे। तेनालीराम ने उनकी उदासी का कारण पूछा। राजा ने बताया कि उनकी पसंदीदा अंगूठी खो गई है, और उन्हें शक है कि इसे उनके अंगरक्षकों में से किसी ने चुराया है।
चूंकि राजा कृष्णदेव राय का सुरक्षा घेरा इतना सख्त था कि कोई भी आम आदमी या चोर उनके पास नहीं पहुंच सकता था, तेनालीराम ने तुरंत कहा, "मुझे चोर का पता बहुत जल्दी चल जाएगा।" यह सुनकर राजा प्रसन्न हुए और उन्होंने तुरंत अंगरक्षकों को बुलवा लिया।
तेनालीराम ने कहा, "राजा की अंगूठी आप सब में से किसी एक ने चुराई है। लेकिन मैं इसे आसानी से पता लगा लूंगा। जो सच्चा है, उसे डरने की कोई जरूरत नहीं और जो चोर है, वह दंड भुगतने के लिए तैयार हो जाए।" तेनालीराम ने फिर कहा, "आप सब मेरे साथ काली माँ के मंदिर चलिए।"
राजा ने आश्चर्यचकित होकर कहा, "तेनालीराम, हम चोर का पता लगाना चाहते हैं, मंदिर दर्शन करने नहीं जा रहे हैं!"
तेनालीराम मुस्कराते हुए बोले, "महाराज, धैर्य रखें, चोर का पता तो बहुत जल्द चल जाएगा।"
मंदिर पहुंचकर तेनालीराम ने पुजारी से कुछ निर्देश दिए। फिर उन्होंने अंगरक्षकों से कहा, "आप सभी को बारी-बारी से मंदिर में जाकर माँ काली के पैरों को छूना है और फिर तुरंत बाहर आना है। ऐसा करने से माँ काली मुझे स्वप्न में चोर का नाम बता देंगी।"
सभी अंगरक्षक बारी-बारी से मंदिर में जाकर माँ के पैरों को छूने लगे। जैसे ही कोई अंगरक्षक बाहर आता, तेनालीराम उसका हाथ सूंघते और एक कतार में खड़ा कर देते। कुछ देर बाद सभी अंगरक्षक एक कतार में खड़े हो गए।
राजा ने पूछा, "चोर का पता तो कल सुबह लगेगा, तब तक इनका क्या किया जाए?"
तेनालीराम ने शांत भाव से कहा, "नहीं, महाराज, चोर का पता तो अब ही चल चुका है। सातवें स्थान पर खड़ा अंगरक्षक ही चोर है।"
यह सुनते ही वह अंगरक्षक भागने लगा, लेकिन वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया।
राजा और बाकी सभी लोग हैरान थे कि तेनालीराम ने बिना स्वप्न देखे कैसे जान लिया कि चोर वही है।
तेनालीराम ने सभी की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा, "मैंने पुजारी जी से कहकर काली माँ के पैरों पर तेज़ सुगंधित इत्र छिड़कवा दिया था। जिस कारण जिनका हाथ माँ के पैरों से छूकर बाहर आया, उनके हाथों में वही सुगंध आई। लेकिन सातवें अंगरक्षक का हाथ महकता हुआ नहीं था। इसका मतलब है कि उसने माँ के पैरों को नहीं छुआ था, क्योंकि उसने पकड़े जाने के डर से ऐसा किया था। इसलिए वही चोर था।"
राजा कृष्णदेव राय एक बार फिर तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के कायल हो गए और उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से सम्मानित किया।
निष्कर्ष –
तेनाली रामकृष्णा की कहानियाँ ( Tenali Rama Story in Hindi ) न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण पाठ भी सिखाती हैं। उनकी चतुराई, बुद्धिमत्ता और हास्यपूर्ण दृष्टिकोण हमें यह सिखाते हैं कि समस्याओं का समाधान समझदारी और विवेक से किया जा सकता है। तेनाली रामकृष्णा का जीवन यह दर्शाता है कि सच्ची सफलता जीवन में अपनी मानसिक क्षमता और सही दिशा में सोचने से मिलती है। उनकी कहानियाँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और एक अमिट धरोहर के रूप में जीवित हैं। ( Tenali Rama ki Kahaniyan )
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