Sheikh Chilli Stories in Hindi – शेख चिल्ली की कहानियाँ बेहद मजेदार और हंसी से भरपूर होती हैं। इन कहानियों का मुख्य पात्र शेख चिल्ली होता है, जो हमेशा किसी न किसी अजीब और हास्यपूर्ण स्थिति में फंस जाता है। शेख चिल्ली वह व्यक्ति है जो अपनी मूर्खता और बेवकूफी के कारण अक्सर मजाक का पात्र बनता है, लेकिन कुछ मौकों पर वह अपनी बुद्धिमानी दिखाने की कोशिश करता है, जो और भी ज्यादा हास्यजनक बन जाता है।
शेख चिल्ली का नाम भारतीय लोक साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और उनकी कहानियाँ बच्चों और वयस्कों दोनों के बीच बराबर लोकप्रिय हैं। शेख चिल्ली का चरित्र एक साधारण व्यक्ति जैसा होता है, जिसमें कई गुण होते हैं। वह कभी बेवकूफी करता है, लेकिन उसमें मासूमियत और एक अच्छा दिल भी होता है। वह अक्सर अपनी ख्याली दुनिया में खो जाता है और किसी चीज़ को पाने के लिए बड़ी कल्पनाएँ करता है, लेकिन अंत में अपनी ही बनाई मुश्किलों में फंस जाता है।
शेख चिल्ली की लोकप्रियता का कारण उसकी सरलता, हंसी और वास्तविक जीवन की परेशानियों के प्रति उसकी मासूमियत और मूर्खताएँ हैं।
इन कहानियों का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन करना ही नहीं है, बल्कि यह यह भी सिखाना है कि बेवकूफी से भरे निर्णय हंसी का कारण बनते हैं, और किसी भी कार्य को करने से पहले सोच-विचार करना बहुत जरूरी है। इस पोस्ट में आपको शेख चिल्ली की कई मजेदार और हंसी से भरपूर कहानियाँ ( Sheikh Chilli Stories in Hindi ) पढ़ने को मिलेंगी।
शेख चिल्ली की कहानी - शेखचिल्ली की खीर
शेखचिल्ली हमेशा अपनी बेवकूफी भरी बातों से दूसरों को परेशान करता था। उसकी माँ भी उसकी इस आदत से बहुत तंग आ चुकी थी।
एक दिन शेखचिल्ली ने अपनी माँ से पूछ लिया, “माँ, लोग मरते कैसे हैं?”
माँ थोड़ी देर सोचने लगी कि इस बेवकूफ़ को इस सवाल का सही जवाब कैसे दिया जाए। फिर उसने सोचा और कहा, “बस आँखें बंद हो जाती हैं और लोग मर जाते हैं।”
शेखचिल्ली ने इस बात को ध्यान से सुना और फिर सोचा, “क्या ही अच्छा हो अगर मैं खुद मर कर देखूं कि क्या सचमुच लोग मरते हैं।"
फिर वह गाँव के बाहर जाकर एक गहरा गड्ढा खोदने लगा और उसमें आँखें बंद करके लेट गया।
रात के समय उस रास्ते से दो चोर गुजर रहे थे। एक चोर ने दूसरे से कहा, “अगर हमारे पास एक और साथी होता तो कितना अच्छा होता। एक आदमी घर के सामने खड़ा रहता, दूसरा पीछे, और तीसरा आराम से घर में चोरी करता।”
शेखचिल्ली जो गड्ढे में लेटा हुआ था, यह सब सुन रहा था। वह अचानक बोल पड़ा, “भाइयों, मैं तो मर चुका हूँ, अगर जिंदा होता तो तुम्हारी मदद कर देता।”
चोरों ने उसे देखा और समझ गए कि यह आदमी बहुत बेवकूफ है। एक चोर शेखचिल्ली से बोला, “भाई, जरा इस गड्ढे से बाहर निकलकर हमारी मदद कर दो, फिर थोड़ी देर बाद मर जाना, मरने की इतनी भी क्या जल्दी है?”
शेखचिल्ली को गड्ढे में पड़े-पड़े बहुत भूख लगने लगी और ठंड भी लग रही थी। उसने सोचा, “चलो, चोरों की मदद कर देता हूँ।”
अब तीनों ने मिलकर योजना बनाई कि शेखचिल्ली घर में चोरी करेगा, जबकि एक चोर घर के आगे और दूसरा चोर घर के पीछे खड़ा रहेगा।
लेकिन शेखचिल्ली को चोरी से ज्यादा खाने-पीने की चीजें ढूंढने की चिंता थी। वह घर में घुसा और रसोई में दूध, चीनी, और चावल देखे।
"अरे वाह! क्यों न खीर बनाई जाए?" शेखचिल्ली ने सोचा और खीर बनाने में लग गया। रसोई में एक बुढ़िया ठंडी से सिकुड़ कर सो रही थी। जैसे ही बुढ़िया को चूल्हे की गर्मी महसूस हुई, उसने हाथ फैलाकर सोने की कोशिश की।
शेखचिल्ली ने यह देखा और सोचा, “यह बुढ़िया खीर मांग रही है।”
वह बोला, “अरी बुढ़िया, मैं इतनी सारी खीर बना रहा हूँ, सब अकेला थोड़े ही खाऊँगा! शांति रख, तुझे भी खिलाऊँगा।”
लेकिन बुढ़िया को जैसे-जैसे गर्मी महसूस हो रही थी, वह और भी फैलकर सोने लगी। शेखचिल्ली को लगा कि बुढ़िया खीर के लिए हाथ फैला रही है।
वह झुंझला कर बुढ़िया के हाथ पर गरम खीर रख दिया। बुढ़िया का हाथ जल गया और वह जोर-जोर से चिल्लाते हुए उठ बैठी।
बुढ़िया की चीख सुनकर शेखचिल्ली पकड़ा गया। शेखचिल्ली बोला, “मुझे पकड़ कर क्या करोगे? असली चोर तो बाहर हैं। मुझे बहुत भूख लग रही थी, मैं तो बस अपने लिए खीर बना रहा था।”
इस तरह शेखचिल्ली ने अपनी बेवकूफी के कारण असली चोरों को भी पकड़वा दिया और खुद भी मुश्किल में पड़ गया।
शेख चिल्ली की कहानी - मेहमान जो जाने को तैयार न था
शेखचिल्ली की माँ और उसकी पत्नी फौजिया एक महीने के लिए कहीं जा रही थीं, लेकिन दोनों को ही शेखचिल्ली को अकेले घर में छोड़ने की बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही थी।
“पिछली बार जब हमने तुम्हें सिर्फ एक दिन के लिए अकेला छोड़ा था, तो तुमने घर को आग लगाकर लगभग राख कर दिया था!” फौजिया ने कहा।
“अगर हम तुम्हें पूरे महीने के लिए अकेले छोड़कर गए, तो फिर तो अल्लाह ही मालिक है!”
शेखचिल्ली ने हिम्मत बढ़ाते हुए कहा, “बेगम, तुम बेवजह परेशान हो रही हो। मैं पूरी तरह से घर की देखभाल करने के लिए सक्षम हूं। और तुम्हारी तसल्ली के लिए मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि मैं इस दौरान अपने पुराने दोस्त और चचेरे भाई इरफान से मिलने जाऊंगा।”
“ठीक है,” फौजिया को अब कुछ शांति मिली। “हमारे लौटने के बाद तुम भी जल्दी घर आ जाना।”
शेखचिल्ली का चचेरा भाई इरफान पास के गाँव में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। उसकी एक छोटी सी कपड़े की दुकान थी। बचपन में शेख और उसकी माँ ने कई कठिनाईयों के बावजूद इरफान का हमेशा ख्याल रखा था। अब, शेख के इरफान के घर जाने पर इरफान को बहुत खुशी हुई। यह उसके लिए अपने पुराने कर्ज चुकाने का अच्छा मौका था।
शेखचिल्ली का पहला हफ्ता इरफान के घर आराम से बीता, लेकिन जब उसने जाने का नाम नहीं लिया, तो इरफान की पत्नी थोड़ी नाराज हो गई।
“तुम्हारा भाई यहां कितने और दिन रहेगा?” उसने इरफान से पूछा।
“जैसा वह चाहे, रहेगा। तुम क्यों परेशान हो रही हो?” इरफान ने जवाब दिया। “वह दिन में मेरे साथ दुकान पर रहता है और शाम को आकर तुम्हारी और बच्चों की मदद करता है।”
“ठीक है, लेकिन वह बहुत ज्यादा खाता है! हमारे खर्चे बढ़ रहे हैं!” इरफान की पत्नी ने कुछ रूखेपन से कहा।
“तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? मेरे ऊपर इस परिवार का बड़ा कर्ज है, और इस छोटे से खर्चे की मुझे कोई चिंता नहीं है,” इरफान ने कहा। “थोड़े दिन कम खाने से तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा?”
इरफान की पत्नी गुस्से में आकर रोने लगी। “तुमसे बात करने से कोई फायदा नहीं, अब मुझे इस बारे में कुछ सोचना होगा।”
कुछ दिन बाद इरफान और शेख जब घर लौटे, तो देखा कि इरफान की बीबी और बच्चे किसी यात्रा पर जाने के लिए तैयार थे।
“भाईजान,” इरफान की बीबी ने शेख से कहा, “मुझे अभी-अभी खबर मिली कि मेरे पिता बहुत बीमार हैं, हमें तुरंत वहां जाना होगा।”
“अल्लाह उन्हें जल्दी ठीक करे, भाभीजी,” शेख ने कहा। “आप लोग चिंता न करें, मैं आपके घर की देखभाल करूंगा जब तक आप वापस नहीं आते।”
“लेकिन भाईजान,” इरफान की बीबी ने विरोध करते हुए कहा, “घर में तो खाने को कुछ नहीं है, आप कैसे रहेंगे?”
“कल सुबह मैं चला जाऊंगा,” शेख ने कहा। “मेरे घर में ताला पड़ा है, मुझे यह तय करने के लिए कि मुझे कहाँ जाना है, आज रात ही फैसला कर लूंगा।”
अगले दिन सुबह घर छोड़ने से पहले शेख ने सोचा कि घर की थोड़ी सफाई कर लेनी चाहिए। बच्चों के पलंग के नीचे उसे एक छोटी सी चाबी दिखी। यह रसोई की अलमारी की चाबी थी, जिसे इरफान की बीबी ने छिपाकर रखा था। उस अलमारी में आटा और दाल रखी हुई थी।
शेख ने सोचा, “अब अम्मी और फौजिया के आने से पहले मुझे घर जाने की जरूरत नहीं है।” फिर उसने खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी।
इस बीच, इरफान को यह पता चला कि उसकी बीबी ने पिता की बीमारी के बारे में जो बताया था, वह एक पूरी मनगढंत कहानी थी। अब वह अपनी बीबी पर गुस्से में था।
कुछ दिन बाद, इरफान का पूरा परिवार घर वापस लौटा और शेख ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
लेकिन शेख अब भी जाने का नाम नहीं ले रहा था, और इरफान की बीबी का पारा लगातार चढ़ता जा रहा था। एक शाम को वह पलंग पर पड़ी और जोर-जोर से कराहने लगी।
“हाय! हाय!” उसने इरफान से कहा, “यह दर्द मुझे लेकर ही मरेगा! मुझे वही दर्द हो रहा है जो भाईजान की अम्मी को हुआ था। उन्हें कहो कि उसी हकीम के पास जाएं जिन्होंने उनकी अम्मी को ठीक किया था और मेरे लिए भी दवाई लाकर लाएं। और भाईजान से कहो कि वह जल्दी घर लौटें!”
“भाभीजी, मैं कल सुबह यहां से चला जाऊंगा,” शेख ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा। “रात के अंधेरे में मुझे रास्ता याद नहीं रहेगा। इंशा अल्लाह, आपकी तबियत जल्दी ठीक हो जाएगी!”
इरफान की बीबी रातभर कराहती रही, और शेख को एक बुरा सपना आया। सपने में एक शेर उसका पीछा कर रहा था, और शेख उससे बचने के लिए पलंग से गिर पड़ा और लुढ़कते हुए नीचे चला गया।
अगली सुबह, इरफान ने देखा कि शेख का पलंग खाली था।
“बेगम, वह तो पहले ही जा चुका है,” इरफान ने अपनी बीबी से कहा।
बीबी दौड़ते हुए पलंग से कूदकर आई।
“मैं सच में बीमार नहीं थी!” उसने हंसते हुए अपने पति से कहा।
“और मैं भी सच में अभी गया नहीं हूँ!” शेख ने पलंग के नीचे से निकलते हुए कहा। “वैसे भी अब भाभीजी की तबियत ठीक हो गई है!”
Download Imageशेख चिल्ली की कहानी - सबसे झूठा कौन ?
झज्जर के नवाब युद्ध के लिए कई महीनों तक घर से बाहर गए थे। उनकी अनुपस्थिति में उनके छोटे भाई, छोटे नवाब, राजपाट का सारा काम संभालते थे। छोटे नवाब को शेख चिल्ली की सादगी बहुत पसंद आने लगी थी। वे उसकी मासूमियत और सरलता को लेकर खुश थे।
लेकिन छोटे नवाब शेख चिल्ली को पूरी तरह बेवकूफ और कामचोर मानते थे। एक दिन उन्होंने शेख चिल्ली को दरबार में डांटा और उसकी तौहीन की।
"तुम क्या जानते हो काम करने का तरीका! एक अच्छा आदमी कभी दिए गए काम से कहीं ज्यादा काम करता है, जबकि तुम तो सबसे सरल काम भी ठीक से नहीं कर पाते। तुम घोड़ा लेकर जाते हो और उसे बांधना भूल जाते हो। जब बोझा उठाते हो, तो या तो गिर जाते हो या फिर तुम्हारे पैर लड़खड़ा जाते हैं। काम में ध्यान क्यों नहीं लगाते!"
दरबार में सभी ने इस बात पर मजे लिए और शेख चिल्ली चुपचाप सिर झुका कर खड़ा रहा।
कुछ दिनों बाद, शेख चिल्ली छोटे नवाब के घर के सामने से गुजर रहा था, तभी उसे अंदर बुलाया गया।
"जल्दी, किसी अच्छे हकीम को लाओ! बेगम बहुत बीमार हैं।" छोटे नवाब ने घबराते हुए कहा।
"जी सरकार!" शेख चिल्ली ने कहा और तुरंत आदेश पर काम करना शुरू कर दिया।
कुछ ही देर में एक हकीम, एक कफन बनाने वाला और दो मजदूर जो कब्र खोदने का काम करते थे, वहां पहुंच गए।
"यह क्या हो रहा है?" छोटे नवाब गुस्से में चिल्लाए। "मैंने सिर्फ एक हकीम बुलाने के लिए कहा था, ये बाकी लोग क्यों आए हैं?"
"सरकार, आपने ही कहा था कि एक अच्छा आदमी बताए गए काम से कहीं ज्यादा काम करता है। तो मैंने सोचा कि सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए मैं ये कदम उठाऊं। अल्लाह करें, बेगम साहिबा जल्दी ठीक हो जाएं, लेकिन बीमारियों में क्या हो सकता है, कौन जानता है!" शेख चिल्ली ने जवाब दिया।
छोटे नवाब राजपाट के कामों में ज्यादा रुचि नहीं रखते थे और अपना समय शिकार, शतरंज, और खेलों में बिताते थे। एक दिन उन्होंने एक प्रतियोगिता आयोजित की, जिसमें सबसे बड़ा झूठ बोलने वाला विजेता घोषित किया जाने वाला था। जीतने वाले को एक हजार सोने की मुहरें मिलनी थीं।
कई लोग झूठ बोलने के लिए सामने आए। एक ने कहा, "सरकार, मैंने भैंसों से भी बड़ी चींटियां देखी हैं, जो एक बार में चालीस सेर दूध देती हैं!"
"क्यों नहीं?" छोटे नवाब ने कहा, "यह संभव हो सकता है।"
एक अन्य व्यक्ति ने कहा, "सरकार, मैं हर रात चंद्रमा तक उड़ता हूं और सुबह से पहले वापस लौट आता हूं!"
"हो सकता है," छोटे नवाब ने कहा। "तुम्हारे पास कोई रहस्यमयी शक्ति हो।"
"सरकार," एक मोटा आदमी बोला, "जबसे मैंने तरबूज के बीज निगले हैं, तबसे मेरे पेट में छोटे-छोटे तरबूज पैदा हो गए हैं। जब एक तरबूज पक जाता है, तो वह फूट जाता है और उससे मुझे अपना भोजन मिल जाता है। अब मुझे और कुछ खाने की जरूरत नहीं पड़ती।"
"तुमने कोई शक्तिशाली तरबूज का बीज निगल लिया होगा!" छोटे नवाब ने बिना रुके कहा।
"सरकार, क्या मुझे भी बोलने की इजाजत है?" शेख चिल्ली ने पूछा।
"जरूर," छोटे नवाब ने ताना मारते हुए कहा। "तुमसे हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?"
"सरकार," शेख चिल्ली ने पूरे जोर से कहा, "आप इस राज्य के सबसे बड़े बेवकूफ आदमी हैं! आपको नवाब के सिंहासन पर बैठने का कोई हक नहीं है!"
पूरे दरबार में एक सन्नाटा छा गया। फिर छोटे नवाब चिल्लाए, "पहरेदारों, इस नाचीज को गिरफ्तार कर लो!"
शेख चिल्ली को पकड़कर खींचकर लाया गया। छोटे नवाब गुस्से में उबलते हुए बोले, "निकम्मे बेशर्म! तुम्हारी यह जुर्रत कैसे हुई! अगर तुमने अभी हमारे पैरों में गिरकर माफी नहीं मांगी, तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा!"
"सरकार, आपने ही तो कहा था कि आप दुनिया का सबसे बड़ा झूठ सुनना चाहते हैं!" शेख चिल्ली ने जवाब दिया। "फिर मैं यह सवाल करता हूं, जो कुछ मैंने कहा उससे बड़ा और क्या झूठ हो सकता है?"
छोटे नवाब को कुछ समझ में नहीं आया। वह कंफ्यूज हो गए, क्योंकि अब वह नहीं समझ पा रहे थे कि शेख चिल्ली झूठ बोल रहा है या पहले उनका खुद का झूठ सच था!
छोटे नवाब हलके से हंसे और फिर बोले, "शाबाश! तुम ईनाम के हकदार हो!"
सब लोग शेख चिल्ली की समझदारी को सराहने लगे। शेख चिल्ली गर्व से हजार सोने की मुहरें लेकर घर लौटे।
छोटे नवाब भले ही थोड़े बेवकूफ थे, लेकिन दिलदार थे, यह शेख चिल्ली ने मन ही मन सोचा।
शेख चिल्ली की कहानी - बुरा सपना
एक सुबह, शेख चिल्ली की चिंतित मां ने उससे पूछा, "बेटा, क्या तुमने फिर वही सपना देखा है?"
"तुम पूरी रात बेचैन रहे और बार-बार करवटें बदलते रहे," उसने कहा।
शेख चिल्ली ने सिर हिलाया और फिर अपनी बाहें अपनी मां के गले में डाल दीं। मां ही उसकी दुनिया थी, वही उसकी पूरी दुनिया थी।
"आज मैं तुम्हें हकीमजी के पास ले चलूंगी," उसकी मां ने कहा, "इंशाअल्लाह, वे तुम्हारे बुरे सपनों का इलाज करेंगे।"
हकीम ने शेख चिल्ली की परेशानी को ध्यान से सुना। कई रातों से शेख चिल्ली को एक बुरा सपना आ रहा था, जिसमें वह खुद को चूहा समझता था और गांव की सारी बिल्लियां उसका पीछा कर रही होती थीं। जागने के बाद भी, उसे यह समझने में बहुत समय लगता कि वह एक लड़का है, न कि चूहा।
"क्या कारण हो सकता है?" शेख की मां ने हकीम से पूछा, "जब शेख छोटा था, तो एक जंगली बिल्ली ने उसे मेरी जान पर खेलकर नोच लिया था। क्या उसे यही सपना बार-बार आता है?"
"शायद," हकीम ने जवाब दिया। "लेकिन आप इस पर ज्यादा ध्यान न दें। बुरे सपने जल्दी ठीक हो जाते हैं। शेख, आज से हर शाम को तुम मेरे पास दवा के लिए आओ और याद रखना, तुम चूहा नहीं, बल्कि एक सुंदर नौजवान हो।"
शेख चिल्ली का चेहरा मुस्कुराहट से खिल उठा। अब हकीम ने उसे दवाई देने के साथ-साथ उसे सही तरीके से जीवन जीने की सरल बातें भी सिखाई।
"बेटा शेख," एक दिन हकीम ने कहा, "अगर मेरा एक कान गिर जाए, तो क्या होगा?"
"हकीमजी, तब आप आधे बहरे हो जाएंगे," शेख चिल्ली ने हकीम के बड़े-बड़े कानों को घूरते हुए कहा।
"ठीक कहा," हकीम ने मुस्कराते हुए कहा, "और अगर मेरा दूसरा कान भी गिर जाए तो?"
"तो फिर आप अंधे हो जाएंगे, हकीमजी," शेख ने जवाब दिया।
"अंधा?" हकीम ने चौंकते हुए पूछा।
"हां," शेख ने कहा, "अगर आपके कान नहीं होंगे, तो फिर आपका चश्मा कहां जाएगा?"
यह सुनकर हकीमजी जोर से हंसे और बोले, "तुम ठीक कहते हो, शेख बेटा, इस बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था!"
धीरे-धीरे शेख चिल्ली के बुरे सपने खत्म हो गए और उसने खुद को फिर से एक आदमी समझना शुरू कर दिया। एक दिन, हकीम का एक पुराना दोस्त उनसे मिलने आया। शेख से बाजार से कुछ जलेबियां लाने के लिए कहा गया। वह जैसे ही घर से बाहर निकला, उसने कुछ दूर पर एक बड़ी बिल्ली देखी।
"हकीमजी, मुझे बचाइए!" शेख ने घबराते हुए कहा और हकीम के पीछे छिपने लगा।
हकीमजी मुस्कुराए और बोले, "मेरे बेटे, अब तुम चूहा नहीं हो, क्या तुम्हें यह बात नहीं पता?"
"मुझे पता है, हकीमजी," शेख ने डरते हुए कहा, "लेकिन क्या बिल्ली को यह बात किसी ने बताई है?"
हकीमजी मुस्कराते हुए बिल्ली को भगा दिया और फिर शेख को दिलासा देकर जलेबियां लाने के लिए भेज दिया।
"मैं इस लड़के के पिता को अच्छे से जानता था," हकीम के मेहमान ने शेख चिल्ली के बारे में कुछ सुनकर कहा, "क्या मैं उसकी मां से मिलकर दुआ सलाम कर सकता हूं?"
"शेख तुम्हें अपने घर ले जाएगा," हकीमजी ने कहा। कुछ देर बाद शेख और मेहमान जलेबियां खाकर चाय पीने के बाद शेख के घर की ओर चल पड़े।
"क्या यह सड़क सीधे तुम्हारे घर को जाती है?" मेहमान ने पूछा।
"नहीं," शेख ने कहा।
"मुझे लगा यह सड़क तुम्हारे घर तक जाती होगी," मेहमान ने हैरान होकर कहा।
"नहीं, यह सड़क मेरे घर तक नहीं जाती," शेख ने जवाब दिया।
"फिर कहां जाती है?" मेहमान ने पूछा।
"वह कहीं भी नहीं जाती," शेख ने शांत स्वर में उत्तर दिया।
मेहमान घूरते हुए बोले, "बेटा, इसका मतलब क्या है?"
"जनाब," शेख ने बड़ी शांति से कहा, "सड़क के पैर तो होते नहीं, तो यह कैसे जा सकती है? सड़क तो एक बेजान चीज है, वह वहीं पड़ी रहती है जहां है। हम उस सड़क से मेरे घर तक जा सकते हैं।"
शेख की सरलता और निःसंदेहता ने उस बुजुर्ग आदमी का दिल छू लिया। कुछ सालों बाद, शेख चिल्ली उसी आदमी का दामाद बन गया!
शेख चिल्ली की कहानी - बीमार दरांंती
शेख चिल्ली की मां गांव के रईस घरों में छोटे-मोटे काम करके अपनी आजीविका चलाती थीं। एक दिन सुबह, शेख की मां ने उससे कहा, "बेटा शेख, देखो, मैं फातिमा बीबी के घर उनकी बेटी की शादी की तैयारियों में मदद करने जा रही हूं। मैं रात तक लौट आऊंगी। हो सकता है कि मैं तुम्हारे लिए कुछ मिठाई भी ले आऊं। फातिमा बीबी बहुत दयालु महिला हैं।"
"बेटा, तुम दरांती लेकर जंगल में जाओ और पड़ोसी की गाय के लिए जितनी घास हो सके, काटकर ले आओ। इंशाअल्लाह, आज हम दोनों मिलकर अच्छा काम करेंगे। ध्यान रखना, वक्त बरबाद मत करना, और सपने देखना बंद कर देना। अगर तुमने ध्यान नहीं दिया तो दरांती से चोट भी लग सकती है।"
"आप फिक्र न करें, अम्मीजान," शेख ने आश्वस्त करते हुए कहा, और फिर वह खुशी-खुशी जंगल की ओर चल पड़ा। रास्ते में वह सोचता रहा कि अम्मी और फातिमा बीबी के घर से उसे कौन-कौन सी मिठाइयां मिलेंगी। क्या वे नर्म, चाशनी में डूबे गुलाब जामुन होंगे, जिन्हें उसने पहले कभी खाया था? उनका स्वाद उसे बार-बार याद आ रहा था।
"बंद करो ये बकवास!" शेख ने खुद को झिड़का, "अम्मी ने कहा था न कि दिन में सपने नहीं देखना।"
वह जंगल में पहुंचा और खूब मेहनत से घास काटने में लग गया। दोपहर तक उसने बहुत सी घास काट डाली और एक बड़ा बंडल तैयार किया। फिर वह घास लेकर पड़ोसी के घर गया और वहां से कुछ पैसे कमाए। उसके बाद घर लौट आया और मोटी रोटी के साथ चटनी खाई।
तब उसे याद आया कि वह अपनी दरांती जंगल में ही भूल आया था। वह दौड़ते हुए वापस जंगल गया। दरांती वहीं पड़ी थी, जहां उसने उसे छोड़ा था। लेकिन जब उसने दरांती को छुआ, तो उसका ब्लेड बहुत गर्म हो चुका था। उसे यह देखकर हैरानी हुई और वह सोचने लगा, "दरांती को क्या हुआ है?"
इसी बीच, पड़ोसी लल्लन वहां से गुजरा और शेख को दरांती को देखकर गौर से देखने पर हंसा। "क्या तुम अपनी दरांती की चिंता कर रहे हो? यह तो बुखार में तप रही है!" लल्लन हंसते हुए बोला, "तुम इसे हकीम के पास ले जाओ। लेकिन रुको, मुझे पता है कि तेज बुखार में हकीमजी क्या दवा देते हैं। आओ, मेरे साथ चलो।"
लल्लन ने शेख को कुएं के पास ले जाकर दरांती को एक लंबी रस्सी से बांधकर ठंडे पानी में लटका दिया। "अब तुम इसे यहीं छोड़कर घर जाओ, और रात तक आना। तब तक दरांती का बुखार उतर जाएगा," लल्लन ने कहा, और फिर चुपचाप सोचने लगा, "इससे तो शेख की दरांती भी गायब हो जाएगी और फिर उसकी मां को उसकी खोज में परेशानी होगी।"
शेख चिल्ली ने लल्लन की बात पर विश्वास किया और घर लौट आया। रात में उसकी नींद खुली तो उसने सोचा, "अब तक दरांती का बुखार उतर चुका होगा, मैं पहले ही उसे ले आता हूं।" वह कुएं की ओर चल पड़ा।
लल्लन के घर के पास से गुजरते हुए, उसने अंदर से किसी के कराहने की आवाज सुनी। शेख अंदर गया और देखा कि लल्लन की दादी खाट पर पड़ी कराह रही थीं। उनका शरीर बहुत गर्म था और उन्हें तेज बुखार था। शेख को यह देखकर डर लगा, लेकिन वह लल्लन की सलाह को याद करता हुआ दादी को इलाज के लिए कुएं ले जाने का विचार करने लगा।
"मियां, तुम लल्लन की दादी को कहां ले जा रहे हो?" एक पड़ोसी ने पूछा।
"इलाज के लिए," शेख ने जवाब दिया, "उन्हें बहुत तेज बुखार है।"
जब लल्लन और उसके पिता हकीम से दवाई लेकर घर लौटे, तो देखा कि उनकी दादी गायब हैं। वे उन्हें खोजते हुए शेख के पास पहुंचे।
"क्या तुम पागल हो? यह क्या कर रहे हो?" लल्लन के पिता ने शेख को घेरते हुए पूछा और शेख को एक ओर धकेलते हुए अपनी मां की रस्सियां खोलने लगे।
"चाचा, उन्हें बहुत तेज बुखार है!" शेख ने उत्तेजित होकर कहा, "उन्हें रस्सी से बांधकर कुएं में लटकाइए, यह बुखार का सबसे अच्छा इलाज है। लल्लन ने ही मुझे यही बताया था।"
लल्लन के पिता ने गुस्से में आकर लल्लन से पूछा, "तुमने शेख को यह क्या सलाह दी है? तुमसे मैं बाद में निपटूंगा!" और फिर उन्होंने शेख से कहा, "अगर तुम्हें अपनी जान प्यारी है तो दादी को घर वापस लेकर आओ और हकीम से इलाज कराओ!"
कुछ दिनों बाद, लल्लन की दादी ठीक हो गईं, लेकिन लल्लन को उसके पिता ने जमकर पिटाई दी।
जब शेख की अम्मी ने पूरी घटना सुनी, तो वह न तो हंसी, न रोई। वह समझ नहीं पाई कि इस पर कैसे प्रतिक्रिया दे। लेकिन शेख ने अपनी मां से कहकर जो स्वादिष्ट गुलाब जामुन खाए थे, उन्हें वह खूब आनंद लेकर खाया।
अम्मी ने फिर शेख को समझाया कि दरांती का बुखार क्यों हुआ था और क्यों कुएं में किसी चीज को लटकाना इलाज का सही तरीका नहीं था!
शेख चिल्ली की कहानी - शेख चिल्ली की “चिट्ठी”
एक बार मियां शेख चिल्ली के भाई बीमार पड़ गए। जब मियां शेख चिल्ली को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने अपने भाई का हाल-चाल पूछने के लिए एक चिट्ठी लिखने का सोचा।
उस समय डाक व्यवस्था और फोन जैसी सुविधाएं नहीं थीं, तो चिट्ठियाँ और खत लोग एक दूसरे के पास भेजने के लिए मुसाफिरों (यात्रियों) के हवाले कर देते थे। मियां शेख चिल्ली ने गाँव के नाई से चिट्ठी भेजने को कहा, लेकिन वह खुद पहले से ही बीमार था, इसलिए उसने मना कर दिया। गाँव में फसल के मौसम में दूसरे मुसाफिर भी नहीं मिल रहे थे।
इस पर मियां शेख चिल्ली ने ठान लिया कि वह खुद ही अपने भाई के पास चिट्ठी पहुँचाने जाएंगे।
अगले दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली अपने भाई के घर के लिए निकल पड़े। पूरे दिन की यात्रा के बाद वह शाम तक अपने भाई के घर पहुँच गए। दरवाजा खटखटाने पर उनके भाई ने दरवाजा खोला और मियां शेख चिल्ली ने उन्हें चिट्ठी दे दी। फिर वह उल्टे पाँव अपने गाँव लौटने लगे।
तभी उनके भाई दौड़ते हुए आए और बोले, "तू इतनी दूर से आया है, तो कम से कम घर में तो आ, मुझसे गले तो मिल। क्या नाराज है मुझसे?"
मियां शेख चिल्ली ने अपने भाई से दूरी बनाते हुए कहा, "भाईजान, मैं आपसे बिल्कुल नाराज नहीं हूँ। लेकिन देखिए, मुझे चिट्ठी पहुँचाने वाला नाई ही नहीं मिल रहा था, इसलिए मुझे खुद आपके पास चिट्ठी देने आना पड़ा।"
उनके भाई ने कहा, "अब तुम आ ही गए हो तो दो-चार दिन रुक कर जाओ।"
यह सुनकर मियां शेख चिल्ली का पारा चढ़ गया। उन्होंने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, "भाईजान, आप तो बहुत अजीब इंसान हो। आपको यह समझ नहीं आता कि मैं यहाँ नाई का काम करने आया हूँ। अगर मुझे आपसे मिलना होता, तो मैं खुद आपके पास आता, नाई के बदले क्या आता!"
निष्कर्ष –
शेख चिल्ली की कहानियों ( Sheikh Chilli Stories in Hindi ) के माध्यम से हमें यह सीखने को मिलता है कि जीवन में सिर्फ ख्याली पुलाव पकाने या बिना सोचे-समझे फैसले लेने से सफलता नहीं मिलती। शेख चिल्ली अपनी कल्पनाओं और बिना विचार किए किए गए कामों के कारण अक्सर उलझन में फंस जाता है, जिससे वह हास्यपूर्ण और अजीब परिस्थितियों का सामना करता है। इन कहानियों से यह महत्वपूर्ण संदेश मिलता है कि किसी भी कार्य को करने से पहले सोच-समझकर निर्णय लेना आवश्यक है, ताकि हम किसी भी समस्या में न फंसे।( Sheikh Chilli Stories in Hindi )
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