Sheikh Chilli ki Kahani – शेख चिल्ली की कहानियाँ मजेदार और हंसी से भरपूर होती हैं। ये कहानियाँ अक्सर एक मजेदार पात्र शेख चिल्ली के इर्द-गिर्द घूमती हैं, जो किसी न किसी अजीब और हास्यपूर्ण स्थिति में फंस जाता है। शेख चिल्ली एक ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो अक्सर अपनी मूर्खता और बेवकूफी के कारण मजाक का पात्र बनते हैं, लेकिन उनकी स्थिति ऐसी होती है कि वे खुद भी कभी-कभी किसी बुद्धिमान व्यक्ति जैसा कुछ करने की कोशिश करते हैं, जो उन्हें और भी ज्यादा हंसी का कारण बना देती है।
शेख चिल्ली का नाम भारतीय लोक साहित्य में एक प्रमुख स्थान रखता है और उनकी कहानियाँ आमतौर पर बच्चों और वयस्कों दोनों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं। शेख चिल्ली के चरित्र में एक आम आदमी की तरह कई गुण होते हैं, जैसे कि वह बेवकूफ हो सकता है, लेकिन साथ ही उसमें एक मासूमियत और अच्छा दिल भी होता है। वह अपनी अजीबोगरीब कल्पनाओं में खोया रहता है, जैसे वह किसी चीज़ को पाने के लिए ख्याली दुनिया में खो जाता है, लेकिन अंत में वह हमेशा अपने ही बनाये गए जाल में फंस जाता है।
शेख चिल्ली की लोकप्रियता का कारण उसकी सरलता, हंसी, और वास्तविक जीवन के संघर्षों के प्रति उसकी मासूमियत और बेवकूफी को दिखाना है।
शेख चिल्ली कहानियों का उद्देश्य न केवल मनोरंजन है, बल्कि यह यह भी सिखाती हैं कि बेवकूफी से भरे निर्णय अक्सर हंसी का कारण बनते हैं, और हमेशा कुछ करने से पहले सोच-विचार करना चाहिए।अब आपको इस पोस्ट में शेख चिल्ली की कई मजेदार और हंसी से भरपूर कहानियां ( Sheikh Chilli ki Kahani ) पढ़ने को मिलेगा।
शेख चिल्ली की कहानी - शेखचिल्ली और कुएं की परियां
एक छोटे से गांव में एक आलसी और कामचोर आदमी रहता था, जिसका नाम शेखचिल्ली था। वह कामकाजी जीवन से हमेशा दूर रहता और सिर्फ बातें बनाने में माहिर था। इसलिए गांववाले उसे शेखचिल्ली कहकर पुकारते थे।
शेखचिल्ली के घर की हालत इतनी खराब थी कि महीने में 20 दिन चूल्हा भी नहीं जल पाता था। उसकी बीवी को उसकी आलसी आदतों के कारण अक्सर भूखा रहना पड़ता। एक दिन बीवी को गुस्सा आ गया और उसने शेखचिल्ली से कहा, "अब मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी। अगर तुम काम नहीं करोगे और पैसे नहीं कमाओगे तो घर में घुसने नहीं दूंगी।"
यह सुनकर शेखचिल्ली को मजबूर होकर नौकरी की तलाश में निकलना पड़ा। बीवी ने उसे चार रूखी रोटियां भी दीं, क्योंकि घर में साग-सालन कुछ था ही नहीं। शेखचिल्ली अपनी बेवकूफी और आलस्य के कारण यह तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करें। वह एक गांव से दूसरे गांव भटकते रहे, लेकिन घर लौटना उनके लिए मुमकिन नहीं था, क्योंकि बीवी ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक नौकरी न मिल जाए, घर में पैर न रखें।
थककर एक दिन शेखचिल्ली कुएं के पास बैठ गए। भूख तो लगी थी, लेकिन उन्होंने चार रोटियां बचाकर रखने का सोचा, ताकि भविष्य में काम आएं। इसी उधेड़बुन में उन्होंने कुएं के देवता से मदद मांगी और पूछा, "हे बाबा, क्या करूं? चार रोटियां खाऊं या बचाकर रखूं?"
कुएं में रहने वाली चार परियों ने यह सुना और उन्हें लगा कि कोई दानव आया है जो इन रोटियों को खाने की सोच रहा है। इसलिए परियों ने बाहर आकर शेखचिल्ली से कहा, "हे दानवराज, आप हमें छोड़ दीजिए, हम आपको कुछ ऐसी चीजें दे सकती हैं जो आपके काम आएंगी।"
परियों ने शेखचिल्ली को एक कठपुतला और एक जादुई कटोरा दिया। परियों ने कहा, "यह कठपुतला आपके लिए काम करेगा, और यह कटोरा किसी भी प्रकार का खाना दे देगा।"
शेखचिल्ली खुशी-खुशी इन चीजों को लेकर घर लौटने का मन बनाने लगे। रास्ते में एक गांव में उन्होंने एक आदमी से रात ठहरने की विनती की। बदले में वह आदमी और उसके परिवार को अच्छे पकवान और मिठाइयां देने का वादा किया।
जब रात को खाना खाया गया, तो शेखचिल्ली ने जादुई कटोरे से स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था की और कठपुतले से बर्तन धोने का काम करवाया। यह देखकर उस आदमी और उसकी बीवी के मन में लालच आ गया। वे दोनों चुपके से कटोरा और कठपुतला चुराकर चले गए।
सुबह शेखचिल्ली घर लौटे और बीवी को बताया कि अब घर में किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी। कटोरा और कठपुतला जादुई काम करेंगे। लेकिन जब उन्होंने इन चीजों को आजमाया, तो वे काम नहीं आए, क्योंकि वे नकली थे। बीवी और भी गुस्से में आ गई और शेखचिल्ली को ताने देने लगी।
बेबस और निराश शेखचिल्ली फिर से उसी कुएं के पास गए और अपना दुख सुनाया। परियों ने उनकी मदद की और उन्हें एक जादुई रस्सी और डंडा दिया। यह रस्सी और डंडा किसी को भी बांध और सजा सकते थे।
शेखचिल्ली फिर उसी आदमी के घर पहुंचे और उन्हें नई जादुई चीजें दिखाने का वादा किया। इस बार जब वह आदमी और उसकी बीवी लालच में आकर शेखचिल्ली को ठहराने लगे, तो शेखचिल्ली ने रस्सी से उन्हें बांध लिया और डंडे से उनकी पिटाई शुरू कर दी।
वह दोनों माफी मांगने लगे और शेखचिल्ली ने कहा, "अगर तुम मेरे चीज़ें वापस करोगे, तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।" उन्होंने जल्दी से कटोरा और कठपुतला वापस कर दिया, और शेखचिल्ली ने रस्सी और डंडे को रोका।
अब शेखचिल्ली अपनी जादुई चीजों के साथ घर वापस लौटे। लेकिन जब बीवी ने उन्हें देखा, तो वह गुस्से में और भी ज्यादा बढ़ गई। उसने शेखचिल्ली को घर में घुसने नहीं दिया। शेखचिल्ली ने रस्सी और डंडे से हुक्म दिया और दोनों ने बीवी को बांधकर पिटाई करना शुरू कर दिया।
बीवी ने अब सबक सीखा और वादा किया कि वह कभी शेखचिल्ली से बुरा बर्ताव नहीं करेगी। इसके बाद शेखचिल्ली ने कठपुतले और कटोरे से घर के सारे काम करवाए। भोजन, बर्तन धोने और घर की अन्य चीजें अपने आप सही होने लगीं।
अब शेखचिल्ली की जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी। बीवी ने भी समझ लिया कि आलस्य और कामचोरी से कोई फायदा नहीं होता, और उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर मेहनत करने का निर्णय लिया।
Download Imageशेख चिल्ली की कहानी - चोरी और इनाम
झज्जर राज्य लंबे समय से भय के माहौल में जी रहा था। चोरियों का सिलसिला लगातार जारी था, और हर बार चोर आसानी से भागने में सफल हो जाते थे। चोरियां रईसों के महलों से लेकर गरीबों के घरों तक हो रही थीं।
जब राजकोश से चोरी हुई, तब नवाब साहब ने स्थिति को गंभीरता से लिया। उन्होंने एक राजसी फरमान जारी किया कि जो भी चोर को पकड़ लेगा, उसे नवाब साहब सम्मानित करेंगे और उसे इतना धन देंगे कि वह अपनी बाकी जिंदगी आराम से बिता सके।
शेख चिल्ली इस पूरी घबराहट से अछूते थे। उनके घर में चोरी के लिए कुछ था ही नहीं। नवाब साहब से अच्छी तनख्वाह मिलने के बावजूद, शेख चिल्ली और उनकी पत्नी की स्थिति बहुत खास नहीं थी। वह अक्सर अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा फालतू के सपनों और बिना सोचे-समझे कामों में गंवा देते थे। जब भी उनके पास पैसे होते, वह खुशी-खुशी उन्हें खर्च कर देते और गरीबों की मदद करना नहीं भूलते थे।
एक दिन शेख चिल्ली ने सोचा कि वह पड़ोसी राज्य में एक प्रसिद्ध फकीर से दुआ लेने जाएंगे। इसका मतलब था कि उन्हें घर से चार दिनों के लिए बाहर रहना होगा।
“हाय अल्लाह! तुम मुझे इस डर के माहौल में इतने दिनों के लिए अकेला छोड़ने की सोच रहे हो?” शेख चिल्ली की पत्नी फौजिया ने कहा। “अगर इस बीच में घर में चोर आ गया तो क्या होगा?”
“बेगम, कोई समझदार चोर हमारे घर पर समय नहीं गवाएगा!” शेख चिल्ली ने उसे दिलासा देते हुए कहा। “जब तक मैं वापस नहीं आता, हमारी पड़ोसी तुम्हारे पास रात को सोने के लिए आ जाएंगी। और कौन जानता है, शायद मैं कोई अच्छा सौभाग्य लेकर वापस लौटूं!”
अगली सुबह शेख चिल्ली निकल पड़े और कुछ दिन बाद फकीर से एक तावीज लेकर वापस लौटे।
“फकीर ने कहा है कि इस तावीज से हमारे घर में सुख और शांति बनी रहेगी,” शेख चिल्ली ने बताया।
फौजिया ने तावीज को आंखों और ओठों से छुआ और प्रार्थना के स्वर में कहा, “इंशाअल्लाह!”
भोजन के बाद शेख चिल्ली छत पर टहलने गए। रात के अंधेरे में हजारों सितारे आकाश में चमक रहे थे। छत पर चलते हुए शेख चिल्ली को अपनी पुरानी यादें याद आने लगीं। वह अपनी प्यारी मां और दिवंगत पिता को याद करने लगे। जब वह छोटे थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था।
शेख चिल्ली को अपने बचपन के मुक्त दिनों की याद आई, जब वह अपनी पतंग उड़ाते थे, जो आसमान को छूने की कोशिश करती थी, जैसे कोई जीवित प्राणी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा हो।
शेख चिल्ली अपनी यादों में खो गए और चलते-चलते वह छत से गिर गए। लेकिन वह सौभाग्यशाली थे, क्योंकि उन्हें कोई गंभीर चोट नहीं आई। वह कच्ची सड़क पर गिरने की बजाय पुराने कपड़ों की एक गठरी पर गिरे थे।
कुछ समय बाद पड़ोसियों ने लालटेन के साथ मौके पर आकर देखा और देखा कि एक आदमी तेज़ी से भागते हुए जा रहा था। उन्होंने उसे पकड़ लिया और उसकी पहचान की। वह वही चोर था, जिसने राज्य भर में आतंक मचाया था। चोर ने शेख चिल्ली के घर में चोरी करने की योजना बनाई थी, क्योंकि उसे लगता था कि शेख चिल्ली के घर में कुछ धन जरूर छिपा होगा।
अगले दिन, नवाब साहब ने सभा में शेख चिल्ली को बधाई दी और यह घोषणा की कि अब से शेख चिल्ली के परिवार का पूरा खर्च राजकोष वहन करेगा।
इस तरह से तावीज़ का आशीर्वाद साकार हुआ और शेख चिल्ली की किस्मत पलट गई।
शेख चिल्ली की कहानी - ससुराल की यात्रा
आखिरकार शेख चिल्ली की माँ ने उसके लिए एक चाँद जैसी सुंदर दुल्हन ढूंढ ही ली। उसका नाम फौजिया था। फौजिया के पिता शेख के पिता को पहले से जानते थे, और कई साल पहले जब शेख हकीमजी के घर गए थे, तो शेख को वह पसंद आ गए थे।
शादी के कुछ महीनों बाद, शेख चिल्ली को ससुराल जाने का निमंत्रण मिला। वह अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनकर सुबह-सुबह ससुराल के लिए निकल पड़ा। वहां पहुंचने पर उसकी पत्नी के माता-पिता, भाई-बहन सभी ने उसे बहुत आदर-सम्मान दिया। अच्छे से भोजन करने के बाद, उसके साले ने उसे पान खाने के लिए दिया।
शेख ने पहले कभी पान नहीं खाया था, फिर भी उसने पान मुँह में डाला और चबाने लगा। पान चबाते हुए जब उसने अपने मुंह में देखा, तो उसकी नजरें उस लाल रस पर पड़ीं जो उसके मुंह से बहकर बाहर निकल रहा था। उसे खून समझकर वह डर गया। उसने सोचा, "मैं मर रहा हूँ! मेरे अंदर कुछ टूट गया है, या फिर मुझे जहर दे दिया गया है!" इस डर के साथ उसकी आँखें भर आईं और वह बिना कुछ कहे सीधा अपने कमरे में चला गया।
यह देख उसके साले को समझ में नहीं आया कि शेख अचानक इतना क्यों घबराया। वह भी उसके पीछे-पीछे कमरे में गया। शेख पलंग पर पड़ा हुआ था, चुपचाप रो रहा था। उसे देखकर ससुर भी कमरे में आ गए।
“बेटा, क्या हुआ तुम्हें?” ससुर ने पूछा। “क्या तुम कहीं दर्द महसूस कर रहे हो?”
“अब्बू, मैं मर रहा हूं!” शेख ने कहा। “मेरा खून बाहर आ रहा है!” और उसने पान के लाल रस की तरफ इशारा किया।
ससुर ने हंसी दबाते हुए कहा, “क्या! सिर्फ इतनी सी बात है? तुम घबराए क्यों हो?”
शेख को अब समझ में आ गया कि वह किसी गंभीर समस्या में नहीं था, बल्कि वह सिर्फ पान का लाल रस था। फिर उसने गहरी राहत की साँस ली। अब वह आराम से उठकर अपने साले के साथ शहर की सैर करने निकल पड़ा।
दिन का समय था, और जब वे लौटे, तो अंधेरा हो चुका था। शेख ने पलंग पर लेटते ही गहरी नींद ले ली। रात में एक मच्छर का भिनभिनाना उसकी नींद तोड़ दी। शेख ने उसे मारने की बहुत कोशिश की, लेकिन मच्छर का पीछा नहीं छुड़ पाया। अंत में उसने अंधेरे में अपनी चप्पल फेंकी, जो मच्छर को मारने में कामयाब हो गई। लेकिन चप्पल का एक और काम हुआ! वह एक शहद से भरे बर्तन से टकराई और वह बर्तन शहद से लटकने लगा।
शेख को लगा कि वह मीठे सपने देख रहा है, लेकिन सुबह उठने पर उसे पूरा शरीर शहद से सना हुआ मिला। उसे नहाने के लिए पास की नदी तक जाना पड़ा।
शेख अपने घर से बिना किसी को जगाए चुपके से नदी जाने के लिए निकला। रास्ते में एक भंडार कक्ष था जहां शेख घुसा और गलती से रूई के ढेर में गिर गया। रूई उसके शरीर और बालों में चिपक गई। अंधेरे में वह पीछे का दरवाजा तलाश रहा था, तभी उसकी साली वहां आई और चिल्लाते हुए भागी, “भूत! भूत!”
शेख ने किसी तरह पिछला दरवाजा पाया और नदी की ओर दौड़ पड़ा। रास्ते में उसने देखा कि एक चोर शेख पर कंबल डालकर उसे उठाकर ले जा रहा था। शेख ने चोर से कहा, “तुम क्या कर रहे हो! मैं कोई भेड़ नहीं हूं!” चोर डर के मारे कंबल और शेख को फेंककर भाग गया। शेख ने नदी में कूदकर शहद और रुई को साफ किया और फिर कंबल ओढ़कर घर लौट आया।
ससुराल में सभी लोग शेख को देखकर हैरान रह गए। उसके साले ने पूछा, “आप कहाँ गए थे? हम तो भूत को भगाने के लिए किसी को बुलाने वाले थे!”
शेख ने मुस्कराते हुए कहा, “अब मुझे भूत से निपटने की कोई जरूरत नहीं है।” फिर वह झाड़ू से रूई को साफ करता और झूठे मंत्र पढ़ते हुए भंडार कक्ष से बाहर निकला।
ससुराल में शेख ने अपनी बाकी ज़िंदगी मजे में बिताई। उसकी प्रसिद्धि परिवार और पड़ोसियों के बीच बढ़ती ही चली गई, और वह हर किसी की प्रशंसा का पात्र बना रहा।
Download Imageशेख चिल्ली की कहानी - शेख की नयी नौकरी
अब शेख चिल्ली को दूसरी नौकरी ढूंढने का समय आ गया था। काजी से मिले पैसे धीरे-धीरे खत्म हो गए थे और अब उसे कुछ काम ढूंढना था। एक दिन सुबह-सुबह वह पास के शहर की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक छोटे कद का आदमी दिखाई दिया, जो सिर पर एक बड़ा पीपा रखे हुए पसीने-पसीने चल रहा था।
“सुनो,” उस आदमी ने शेख से पास जाते हुए कहा, “अगर तुम यह घी का पीपा शहर तक ले जाओगे तो मैं तुम्हें दो आने दूंगा।”
शेख ने सोचा, कुछ पैसे तो मिलेंगे ही। खुशी-खुशी उसने पीपे को सिर पर रखा और चलने लगा। वह सोचने लगा, “इन दो आनों से मैं कुछ मुर्गी के चूजे खरीदूंगा। जब वे बड़े होंगे, तो मुझे मुर्गियां और अंडे मिलेंगे। इन अंडों को बेचकर मैं मालामाल हो जाऊँगा! फिर मैं बड़ा सा घर खरीदूंगा और सबसे सुंदर लड़की से शादी करूंगा। फिर अम्मी को काम करने की ज़रूरत नहीं होगी, वह और मेरी बीवी आराम से रानियों की तरह बैठेंगी और उनके लिए चालीस नौकरानियां होंगी। मैं पूरे दिन पतंग उड़ाऊँगा, बड़ी-बड़ी रंग-बिरंगी पतंगे। सारे गाँव वाले मुझे पतंग उड़ाते हुए देखने के लिए इकट्ठा होंगे।”
इतना सोचते-सोचते शेख पूरी तरह से अपने ख्यालों में खो गया और उसने अपने हाथों से काल्पनिक पतंग को हवा में उड़ाना शुरू कर दिया। लेकिन अचानक, घी का पीपा उसके सिर से गिरकर ज़मीन पर गिर पड़ा और सारा घी बह गया!
“क्या बेवकूफी की है तुमने?” उस छोटे आदमी ने गुस्से में आकर कहा, “तुमने तीस रुपये का घी पानी की तरह बहा दिया!”
“तीस रुपये तो क्या बड़ी रकम है,” शेख ने दुखी होकर कहा, “लेकिन मेरी तो पूरी किस्मत ही लुट गई। अब मैं तो पूरी तरह तबाह हो गया!”
गुस्से में वह आदमी शेख को गालियाँ देते हुए चला गया। शेख भी चलते-चलते एक बड़े घर के गेट के पास पहुँच गया, जहाँ एक घोड़ा-गाड़ी खड़ी थी।
“कोचवान जी,” शेख ने घोड़ा-गाड़ी के चालक से पूछा, “क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मुझे कहां नौकरी मिल सकती है? मैं कोई भी काम करने को तैयार हूँ।”
कोचवान ने जवाब दिया, “तुम अंदर जाकर देखो, शायद रसोइए को एक सहायक की ज़रूरत हो।”
शेख घर के चक्कर लगाकर रसोइए से मिला और उसे नौकरी मिल गई। वह पूरे दिन सब्जियाँ काटता और बर्तन धोता रहा। दिन भर की मेहनत के बाद वह थक कर चूर हो गया और उसे बहुत भूख लगी।
“यह लो,” रसोइए ने शेख को दो सूखी रोटियाँ और कुछ अचार दे दिए। “तुम चाहो तो मेरे कमरे के बाहर सो सकते हो, लेकिन सुबह होने से पहले उठ जाना, यहाँ सुबह जल्दी काम शुरू हो जाता है।”
शेख लेटकर खर्राटे भरने लगा, लेकिन आधी रात को भूख के कारण उसकी नींद टूट गई। उसने सोने की बहुत कोशिश की, लेकिन भूख उसे सोने नहीं दे रही थी। आखिरकार, उसने रसोइए के कमरे में झांक कर देखा। रसोइए का कमरा खाली था, लेकिन बाग से कुछ आवाजें आ रही थीं। शेख चुपके से आवाज के करीब गया और देखा कि रसोइया और माली आपस में कुछ बातें कर रहे थे। उनके पास नींबू का ढेर पड़ा हुआ था।
“इस बार मुझे एक अच्छा खरीदार मिल गया है,” माली ने कहा, “जो हमें पहले मिलने वाली कीमत से कहीं ज्यादा देगा!”
“फिकर मत करो,” रसोइया ने कहा, “बूढ़ी औरत को कुछ भी शक नहीं होगा।”
शेख ने उनका ध्यान खींचने के लिए गले से आवाज निकाली। दोनों चोर घबराए और जल्दी से शांत हो गए।
“मुझे बहुत भूख लगी है,” शेख ने कहा, “भूख के मारे मैं सो नहीं सका।”
रसोइया को शेख की बात समझ में नहीं आई, तो उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और शेख को दे दिए। “कोई बात नहीं, बस चुप रहना!” रसोइया ने गुस्से में कहा, “अब जाओ!”
शेख सिक्के लेकर बाहर निकला, लेकिन रात का समय था, और वह क्या खाता? वह दरवाजे की ओर बढ़ते हुए सोते हुए कोचवान से टकरा गया। कोचवान जाग गया और शेख से पूछा, “तुम क्या कर रहे हो, रात को बाहर?”
शेख ने पूरी कहानी सुनाई। “तो ये दोनों चोर थे!” कोचवान ने कहा। “मुझे पहले ही शक था। सुबह मैं बीबीजी को बता दूँगा कि उन्होंने घर में चोर पाले हैं। मैं पक्का करूंगा कि वे दोनों को निकाल दें।”
अगले दिन यही हुआ! शेख ने चोरों को रंगे हाथ पकड़वाया और उन्हें निकाल दिया। बदले में शेख को पचास रुपये का इनाम मिला और उसे रसोइए की मददगार की जगह कोचवान का सहायक बना दिया गया।
कुछ ही दिनों में शेख ने घोड़ा-गाड़ी चलाना सीख लिया। जब भी कोचवान छुट्टी पर जाता, शेख घोड़ा-गाड़ी चला लेता। वह बीबीजी को जहां भी कहतीं, घुमाने ले जाता।
लेकिन एक दिन बीबीजी का बेटा घर लौट आया और शेख की मुश्किलें फिर से शुरू हो गईं।
“सीधे बैठो!” बीबीजी के जवान बेटे ने शेख को आदेश दिया। “गाड़ी संभाल कर चलाओ और अपना मुंह बंद रखो। मुझे ढीले-ढाले, बातूनी ड्राइवर बिल्कुल नापसंद हैं।”
“जी, सरकार!” शेख ने कहा और आदेश का पालन करने लगा।
एक दिन वह बीबीजी को बाजार ले गया। गलती से रास्ते में महिला ने अपना बटुआ गिरा दिया। शेख ने बटुआ गिरते हुए देखा, लेकिन उसे चुप रहने का आदेश था, तो उसने कुछ नहीं कहा।
“गधे, बेवकूफ!” मालिक चीखा जब उसे पता चला कि शेख ने बटुआ गिरते हुए देखा था। “जब भी कोई चीज गिरती हो, तुम उसे उठाओ, समझे?”
“जी, सरकार,” शेख ने कहा।
कुछ दिनों बाद, शेख अपने मालिक के पास एक बंडल लेकर गया और कहा, “सरकार, यह सड़क पर गिरा हुआ था, तो मैंने इसे उठाकर आपके पास लाया है।”
मालिक ने बंडल खोला और उसमें घोड़े की गंदी लोद देखी! मालिक ने उसे अपमानित करते हुए चिल्लाया, “तुम मेरे घर से तुरंत निकल जाओ!”
एक और नौकरी का अंत – बिना कोई गलती किए! शेख ने सोचा, लेकिन फिर भी उसके पास चार महीने की तनख्वाह थी, और बीबीजी ने उसे पचास रुपये का इनाम दिया।
“अम्मी जरूर खुश होंगी!” यह सोचते हुए शेख घर की ओर रवाना हुआ। उसके पास अब पैसे थे, जिनसे वह चूजे खरीद सकता था। जल्दी ही वे मुर्गियां बन जाएंगी और उसका सपना सच होगा।
शेख चिल्ली की कहानी - तेल का गिलास
शेख चिल्ली इस समय अपने पसंदीदा काम—पतंगबाजी—में मस्त था। वह अपने घर की छत पर खड़ा होकर आसमान में उड़ती लाल और हरी पतंगों का आनंद ले रहा था। उसकी कल्पना भी उड़ने लगी थी। वह सोचने लगा, “काश मैं इतना छोटा होता कि पतंग पर बैठकर हवा में उड़ पाता।”
तभी उसकी माँ की आवाज़ आई, “बेटा, तुम कहाँ हो?”
आँखों को धूप से बचाते हुए उसकी माँ छत की ओर देख रही थी।
“बस अभी आता हूँ, अम्मी,” शेख ने कहा, और थोड़ा दुखी होते हुए अपनी उड़ती पतंग को नीचे उतारा। फिर वह दौड़ते हुए नीचे गया।
शेख अपनी माँ का इकलौता बेटा था। उसके पिता की मृत्यु के बाद शेख ही उसकी माँ का एकमात्र सहारा था, इसलिए उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी।
“बेटा, जल्दी से आठ आने का सरसों का तेल ले आओ,” माँ ने कहा, और शेख के हाथ में एक सिक्का और गिलास थमा दिया।
“सावधानी से तेल लाना और जल्दी आना। रास्ते में सपने नहीं देखना, क्या तुम मेरी बात सुन रहे हो?”
“हाँ, अम्मी,” शेख ने कहा। “आप फिक्र मत करें, जब आप फिक्र करती हैं, तो आप कम सुंदर लगती हैं।”
“क्या कहा तुमने?” माँ ने हताश होते हुए कहा। “मेरे पास सुंदर दिखने के लिए न तो पैसे हैं, न समय! अच्छा, अब चापलूसी बंद करो और तेल जल्दी ले आओ!”
शेख दौड़ते हुए बाजार की ओर बढ़ा। आमतौर पर वह आराम से बाजार जाता, लेकिन माँ ने उसे जल्दी जाने को कहा था, इसलिए वह जल्दी-जल्दी दौड़ रहा था।
“लालाजी, अम्मी को आठ आने का सरसों का तेल चाहिए,” शेख ने दुकानदार लाला तेलीराम से कहा, और सिक्का और गिलास उसे दे दिए।
लाला तेलीराम ने बड़े पींपे से आठ आने का तेल निकाला और गिलास में उंडेलने लगा।
“यह गिलास तो सात आने का तेल ही ले पाएगा,” उसने शेख से कहा। “बाकी तेल का क्या करूँ?”
शेख थोड़ी देर तक सोचता रहा। उसकी अम्मी ने दूसरा गिलास तो नहीं दिया था, और न ही पैसे वापस लाने को कहा था। फिर अचानक उसे एक तरकीब सूझी।
गिलास के नीचे एक छोटा सा गड्डा था, जैसे एक छोटी कटोरी। शेख ने खुश होकर तेल से भरे गिलास को उल्टा किया। सारा तेल बह गया, और फिर उसने गिलास के नीचे बने छोटे गड्डे की ओर इशारा करते हुए कहा, “बाकी तेल यहाँ डाल दो।”
लाला तेलीराम को यकीन नहीं हुआ, लेकिन वह सिर हिलाकर शेख की बात मान गया। उसने तेल को गिलास के नीचे के गड्डे में डाला। शेख ने गिलास उठाया और खुशी-खुशी घर की ओर बढ़ गया।
लोगों ने इस पर कमेंट किए, लेकिन शेख पर उनका कोई असर नहीं हुआ।
जब शेख घर पहुंचा, तो उसकी माँ कपड़े धो रही थी। गिलास में तेल देख कर उसने पूछा, “बाकी तेल कहाँ है?”
शेख गिलास को सीधा करने की कोशिश करने लगा, और साथ ही बाकी का तेल भी बहा दिया।
“बाकी तेल यहीं था, अम्मीजान,” शेख ने कहा। “मैंने लाला तेलीराम से देखा था कि वह इस गिलास में तेल डाल रहा था। फिर वो कहाँ गया?”
“जमीन में, तुम्हारी बेवकूफी के साथ!” उसकी माँ ने गुस्से में कहा। “क्या तुम्हारी बेवकूफी का कोई अंत है?”
शेख ने खुद को अपमानित महसूस किया और बोला, “मैंने वही किया जो आपने मुझसे कहा था। आपने मुझे यह गिलास लाने को कहा, और मैंने वही किया। गिलास छोटा होने की बात आपने नहीं बताई थी, अब आप मुझसे गुस्सा हो रही हैं।”
“चुप रहो!” माँ ने गुस्से में कहा, “अगर तुम मेरे सामने से तुरंत हटे नहीं तो मैं तुम्हारी सुंदरता का भी पता लगा दूँगी!”
शेख अपनी पतंग लेकर छत पर भाग गया, और उसकी माँ कपड़े धोने में व्यस्त हो गई। अब उसे खुद बनिये की दुकान पर जाकर तेल लाना पड़ेगा। शेख ने ना केवल अपना बहुमूल्य समय खो दिया, बल्कि बेशकीमती पैसे भी गंवा दिए।
फिर कुछ देर बाद दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई। लाला तेलीराम का छोटा लड़का तेल की बोतल लिए खड़ा था।
“बुआजी, यह आपके लिए है,” उसने कहा, “मेरे पिताजी ने भेजा है। जब शेख भैया तेल से भरे गिलास को उल्टा कर रहे थे, तो वह किस्मत से पींपे में वापस चला गया! भैया कहाँ हैं? उन्होंने मुझे पतंग उड़ाना सिखाने का वादा किया था।”
“वह ऊपर हैं,” शेख की माँ ने मुस्कुराते हुए कहा और छोटे लड़के के गाल को थपथपाते हुए बोली, “तुम ऊपर जाओ, बेटा। शेख वहीं है।”
फिर वह मुस्कुराती हुई अपने काम में लग गई।
अल्लाह उस गरीब विधवा को कभी नहीं भूलेगा!
निष्कर्ष –
शेख चिल्ली की कहानियों ( Sheikh Chilli ki Kahani ) के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में केवल ख्याली पुलाव पकाने से या बिना सोचे-समझे फैसले लेने से कभी सफलता नहीं मिलती। शेख चिल्ली हमेशा अपनी कल्पनाओं और बिना विचार किए कामों के कारण उलझ जाता है, जिससे वह हास्यपूर्ण और अजीब स्थितियों में फंसता है। इन कहानियों से यह संदेश मिलता है कि किसी भी काम को करने से पहले सोच-विचार करना बेहद जरूरी है, ताकि हम किसी समस्या में न फंसे।
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