Akbar and Birbal Stories in Hindi | अकबर और बीरबल की कहानियां

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Akbar and Birbal Stories in Hindi

Akbar and Birbal Stories in Hindi – अकबर और बीरबल के नाम से जुड़ी अनेक कहानियाँ लोकप्रिय हैं, जो समय-समय पर सुनाई जाती रही हैं। इन कहानियों में अकबर के दरबार के बुद्धिमान मंत्री बीरबल की चतुराई और हाजिरजवाबी को दर्शाया जाता है। हालांकि, इन कहानियों की सच्चाई को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है, क्योंकि इनमें से कुछ घटनाएँ वास्तविक हो सकती हैं, जबकि कुछ पूरी तरह काल्पनिक भी हो सकती हैं। हम यह नहीं कह सकते कि इनमें से कौन सी कहानी सच्ची है और कौन सी मनगढ़ंत, लेकिन यह निश्चित है कि इनसे प्राप्त होने वाली शिक्षा अत्यधिक मूल्यवान है।

इन कहानियों के माध्यम से हमें बीरबल की तीव्र बुद्धि, समझदारी और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता के बारे में पता चलता है। उनके द्वारा दिए गए उत्तर और समाधान अकबर को भी प्रभावित करते थे, और उनके हाजिरजवाबी से अकबर जैसे महान सम्राट भी अक्सर चकित हो जाते थे। इन कहानियों में जीवन के कई महत्वपूर्ण पाठ छिपे हुए हैं, जैसे धैर्य, न्याय, समझदारी और कार्यों में चतुराई की महत्ता।( Akbar and Birbal Stories in Hindi )

आज भी इन कहानियों ( Akbar-Birbal Story ) की प्रासंगिकता बरकरार है, क्योंकि वे समय की कसौटी पर खरी उतरती हैं। चाहे शिक्षा, समाज या किसी अन्य संदर्भ में इनका महत्व कभी कम नहीं होगा। इनसे हमें जीवन को समझने, सही मार्ग पर चलने और हर परिस्थिति में सही निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है।

एक किसान बहुत परेशान था, क्योंकि उसे अपने खेतों को सींचने के लिए पानी की आवश्यकता थी। वह कई दिनों से अपने खेतों के पास कुएं की तलाश में था। एक दिन उसकी तलाश खत्म हुई और उसने एक कुआं देखा जो उसके खेतों के बहुत पास था। किसान बहुत खुश हुआ और सोचा कि अब उसकी परेशानी खत्म हो गई। यह सोचकर वह खुशी-खुशी घर लौट आया।

अगले दिन, जब वह कुएं से पानी लेने पहुंचा, तो एक आदमी वहां आया और बोला, “यह कुआं मेरा है। तुम इससे पानी नहीं ले सकते। अगर तुम्हें पानी चाहिए तो इस कुएं को खरीदना होगा।”

यह सुनकर किसान कुछ समय तक सोचता रहा और फिर उसने मन में सोचा कि अगर वह यह कुआं खरीद लेता है, तो उसे पानी के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं होगी। इस सोच के साथ दोनों ने एक कीमत तय की। हालांकि किसान के पास उतने पैसे नहीं थे, फिर भी उसने यह अवसर खोने का मन नहीं बनाया। उसने उस आदमी से वादा किया कि वह अगले दिन पैसे दे देगा और घर लौट गया।

किसान ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहा, इसलिए उसने अपने परिवार और दोस्तों से पैसे जुटाने की कोशिश की। बहुत मेहनत और भागदौड़ के बाद, उसने वह रकम जुटा ली। अब वह पूरी तरह से आश्वस्त था कि वह कुआं खरीदने में कोई देरी नहीं करेगा।

फिर, किसान पैसे लेकर अगले दिन उस आदमी के पास पहुंचा और कुआं खरीद लिया। जैसे ही कुआं उसके नाम हो गया, किसान ने पानी निकालने के लिए बाल्टी डाली, लेकिन वह आदमी फिर आया और बोला, “तुम इस कुएं से पानी नहीं निकाल सकते। मैंने तुम्हें कुआं तो बेचा है, लेकिन पानी नहीं।” यह सुनकर किसान बहुत मायूस हो गया और उसने इस मामले में न्याय पाने के लिए राजा के दरबार में शिकायत की।

राजा अकबर ने किसान की पूरी कहानी सुनी और उसे न्याय देने के लिए वह आदमी भी दरबार में बुलवाया। राजा ने उस आदमी से पूछा, “तुमने किसान को कुआं बेचा था, तो फिर इसे पानी क्यों नहीं लेने दे रहे हो?”

आदमी बोला, “महाराज, मैंने कुआं बेचा है, पानी नहीं।” यह सुनकर राजा थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गए और फिर कहा, “यह तो सही कह रहा है, कुआं बेचा है, पानी नहीं।” वह इस समस्या को सुलझा नहीं पाए, तो उन्होंने बीरबल को बुलाया।

बीरबल, जो बहुत ही बुद्धिमान थे, ने इस मामले को सुना और फिर उस आदमी से पूछा, “ठीक है, तुमने कुआं बेचा, पानी नहीं। फिर तुम्हारा पानी किसान के कुएं में क्या कर रहा है? कुआं अब किसान का है, और तुम अपने पानी को बाहर निकालो।”

बीरबल की बात सुनकर वह आदमी समझ गया कि अब उसकी चालाकी का कोई फायदा नहीं होने वाला। उसने तुरंत राजा से माफी मांगी और माना कि कुएं और उसके पानी पर किसान का पूरा हक है।

राजा अकबर ने बीरबल की समझदारी की सराहना की और उस आदमी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाकर जुर्माना लगाया।

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Akbar and Birbal Story in Hindi

एक दिन अकबर और बीरबल शाही बाग में सैर कर रहे थे, तभी अकबर ने पेड़ पर कौओं का एक झुंड देखा।

“बीरबल, यह सोचकर आश्चर्य होता है कि हमारे राज्य में कितने कौवे होंगे?”

“महाराज, हमारे राज्य में पंचानबे हजार चार सौ तिरसठ कौवे हैं,” बीरबल ने बड़े आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया।

अकबर हैरान होकर बीरबल की ओर देखा और पूछा, “तुम्हें यह कैसे पता?”

“मुझे पूरी तरह से यकीन है, महाराज। आप कौओं की गिनती करवा सकते हैं,” बीरबल ने विश्वास के साथ कहा।

अकबर थोड़ी देर सोचते हुए बोले, “अगर कौवे कम हो जाएं तो क्या होगा?”

बीरबल मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “जहाँपनाह, इसका मतलब यह है कि कौवे पड़ोसी राज्यों में अपने रिश्तेदारों से मिलने गए हैं।”

अकबर अब और भी हैरान हो गए और पूछा, “अगर कौवों की संख्या तुम्हारी बताई हुई संख्या से ज्यादा हो जाए तो क्या होगा?”

“फिर महाराज, इसका मतलब यह है कि दूसरे राज्यों से कौवे हमारे राज्य में अपने रिश्तेदारों से मिलने आए हैं,” बीरबल ने चतुराई से जवाब दिया।

यह सुनकर अकबर मुस्कुरा पड़े और बीरबल की बुद्धिमानी की सराहना की।

एक बार शहंशाह अकबर ने यह घोषणा की कि यदि कोई व्यक्ति सर्दी के मौसम में नर्मदा नदी के ठंडे पानी में घुटनों तक डूबे रहकर सारी रात बिताए, तो उसे एक भारी-भरकम तोहफा दिया जाएगा।

एक गरीब धोबी ने अपनी गरीबी दूर करने की आशा में यह चुनौती स्वीकार की और सारी रात नदी के ठंडे पानी में खड़ा रहा। सुबह होते ही वह जहाँपनाह के पास ईनाम लेने पहुंचा।

अकबर ने उससे पूछा, “तुमने सारी रात बिना सोए, खड़े-खड़े नदी में कैसे बिताई? क्या इसका कोई सबूत है?”

धोबी ने उत्तर दिया, “जहाँपनाह, मैंने सारी रात नदी के किनारे महल में जल रहे दीपक को देखा और उसी की रोशनी में नदी के ठंडे पानी में खड़ा रहा।”

अकबर ने गुस्से में आकर कहा, “तो इसका मतलब है कि तुम महल के दिए की गरमी लेकर ही सारी रात पानी में खड़ा रहे और अब ईनाम चाहते हो। सिपाही, इस धोबी को जेल में डाल दो।”

बीरबल, जो दरबार में मौजूद थे, ने देखा कि अकबर नाहक ही उस गरीब धोबी पर जुल्म कर रहे थे। बीरबल को यह देख बहुत बुरा लगा और वह अगले दिन दरबार की एक महत्वपूर्ण बैठक में नहीं पहुंचे। अकबर ने एक खादिम को बीरबल को बुलाने भेजा। खादिम लौटकर बोला, “बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं, वह खिचड़ी पकते ही आ जाएंगे।”

जब बीरबल बहुत देर तक नहीं आए, तो अकबर को कुछ शक हुआ और वह खुद तफ्तीश करने पहुंचे। उन्होंने देखा कि एक लंबे डंडे पर एक घड़ा लटका हुआ था और नीचे बहुत हल्की सी आग जल रही थी। पास ही बीरबल आराम से खटिए पर लेटे हुए थे।

अकबर ने गुस्से में आकर पूछा, “यह क्या तमाशा है? क्या खिचड़ी इस तरह पकती है?”

बीरबल ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “माफ करें, जहाँपनाह, यह खिचड़ी वैसी ही पकेगी जैसी धोबी को महल के दिए की गरमी मिली थी।”

राजा को बात समझ में आ गई और उन्होंने बीरबल को गले लगाते हुए धोबी को रिहा करने और उसे ईनाम देने का आदेश दिया।

एक दिन अकबर ने अपने दरबार में ऐलान किया, “मेरे पास एक समस्या है और मैं इसका तुरंत समाधान चाहता हूँ।”

“कल शाम को किसी ने मेरी मूंछ का एक बाल उखाड़ दिया। उस व्यक्ति को क्या सज़ा दी जानी चाहिए?”

दरबार में शोर-गुल मच गया। प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, “उसे कोड़े मारे जाने चाहिए!”

राजकोष मंत्री ने कहा, “नहीं, उसे राज्य से निर्वासित कर दिया जाना चाहिए।”

सभी दरबारी अपराधी को कठोरतम सजा देने की मांग कर रहे थे। इस हलचल के बीच बीरबल चुप रहे।

अकबर ने पूछा, “क्या तुम्हारे पास कोई राय नहीं है, बीरबल?”

बीरबल मुस्कुराते हुए बोले, “जहाँपनाह, मैं उस व्यक्ति को कुछ मिठाई देने की सलाह दूँगा।”

दरबार में सन्नाटा छा गया। बीरबल का यह जवाब सभी को चौंका गया।

अकबर ने हैरान होकर पूछा, “बीरबल, मैं आश्चर्यचकित हूँ! तुम मुझसे उम्मीद करते हो कि मैं उस व्यक्ति को इनाम दूँ, जिसने मेरी मूंछ खींची?”

“महाराज, मूंछों को छूने की हिम्मत केवल आपके पोते की हो सकती है। मुझे पूरा यकीन है कि आप उसे मिठाई खिलाने में कोई आपत्ति नहीं करेंगे,” बीरबल ने हंसते हुए जवाब दिया।

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Akbar and Birbal Story

एक व्यापारी कुछ दिनों के लिए किसी काम से प्रदेश से बाहर गया था। जब वह घर वापस लौटा, तो देखा कि उसकी तिजोरी खाली थी। सारी कमाई चोरी हो चुकी थी। व्यापारी घबराया और उसने अपने घर के पांच नौकरों को बुलाया।

व्यापारी ने उनसे पूछा, “तुम लोग कैसे थे, जब चोर ने तिजोरी से सब कुछ चुरा लिया? तुम कहां थे?” एक नौकर ने कहा, “मालिक, हमें नहीं पता चोरी कब हुई, हम तो सो रहे थे।” यह सुनकर व्यापारी को गुस्सा आ गया और बोला, “मुझे लगता है तुम पांच में से कोई एक चोर है। अब तुम्हारा हिसाब बादशाह अकबर ही करेंगे।” व्यापारी महल की ओर चल पड़ा।

महल में बादशाह अकबर अपने दरबार में जनता की समस्याएं सुन रहे थे, तभी व्यापारी वहां पहुंचा और बोला, “हुजूर, न्याय दीजिए! मेरी सारी कमाई लूट ली गई है। मैं बर्बाद हो गया हूँ।” बादशाह ने व्यापारी से पूछा, “क्या हुआ? कौन हो तुम?” व्यापारी ने सारी कहानी बताई। बादशाह ने कुछ सवाल किए, जैसे चोरी का सामान क्या था, और क्या किसी पर शक है? जवाब मिलने के बाद अकबर ने मामले को बीरबल को सौंपा और चोर पकड़ने के लिए उनकी मदद मांगी।

अगले दिन बीरबल व्यापारी के घर पहुंचे और सभी नौकरों से पूछा कि उस रात वे कहां थे। सभी ने कहा कि वे व्यापारी के घर में ही थे और उस रात भी वहीं सो रहे थे। बीरबल ने सबकी बात मानते हुए कहा, “मेरे पास पांच जादुई लकड़ियां हैं। मैं हर एक को एक लकड़ी दूंगा। जो चोर होगा, उसकी लकड़ी रात भर बढ़ जाएगी। हम सब कल फिर मिलेंगे।” यह कहकर बीरबल सभी को लकड़ी दे कर वहां से चले गए।

अगले दिन बीरबल फिर से व्यापारी के घर आए और नौकरों से उनकी लकड़ियां दिखाने को कहा। बीरबल ने देखा कि एक नौकर की लकड़ी दो इंच छोटी हो गई थी। बीरबल ने तुरंत सिपाही भेजकर उस नौकर को पकड़वाया। व्यापारी चौंक गया और बीरबल की चतुराई समझ नहीं पाया। बीरबल ने व्यापारी को समझाया कि लकड़ी में कोई जादू नहीं था, लेकिन चोर को यह डर था कि उसकी लकड़ी बढ़ जाएगी, इसीलिए उसने अपनी लकड़ी को दो इंच काट दिया। और इस तरह वह पकड़ा गया। व्यापारी बीरबल की चतुराई से बहुत प्रभावित हुआ और उसे धन्यवाद दिया।

एक बार एक अमीर आदमी ने बीरबल को अपने घर खाने पर बुलाया। जब बीरबल वहां पहुंचे, तो देखा कि पहले से ही कई लोग मौजूद थे।

बीरबल ने कहा, “मुझे नहीं पता था कि आपने इतने सारे मेहमानों को बुलाया है।”

मेजबान मुस्कुराते हुए बोला, “नहीं बीरबल, ये लोग मेरे कर्मचारी हैं जो आज रात मेरे साथ खाना खा रहे हैं। लेकिन उनमें से एक व्यक्ति आपकी तरह मेहमान है। आप बताइए, कौन है?”

बीरबल ने कहा, “कृपया इन्हें एक चुटकुला सुनाइए, फिर मैं आपको बताऊंगा कि असली मेहमान कौन है।”

मेजबान ने चुटकुला सुनाया और वहां मौजूद सभी लोग हंसने लगे।

बीरबल ने एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा, “वह आदमी असली मेहमान है।”

मेजबान हैरान होकर बोला, “यह आपने कैसे जान लिया?”

बीरबल मुस्कुराते हुए बोला, “आपका चुटकुला इतना मजेदार नहीं था, फिर भी सभी लोग हंसी में झूम उठे। लेकिन असली मेहमान वही था, जिसने सिर्फ मुस्कुराया। इससे मैं पहचान सका कि वह असली मेहमान है।”

एक बार बादशाह अकबर को पान की तलब हुई। उन्होंने अपने एक ख़ास पान वाले को पान लगाने के लिए कहा। उसने पान बनाकर बादशाह को दे दिया। बादशाह ने चुपचाप पान खाया और उस पान वाले को अगले दिन आधा किलो चूना दरबार में लेकर आने को कहा। वह नहीं जानता था कि बादशाह ने उसे ऐसा क्यों कहा।



एक दिन बादशाह अकबर को पान खाने का मन हुआ। उन्होंने अपने खास पान वाले को पान तैयार करने के लिए कहा। पान वाले ने पान तैयार किया और बादशाह को दे दिया। बादशाह ने चुपचाप पान खाया और अगले दिन पान वाले से कहा कि वह आधा किलो चूना दरबार में लेकर आए। पान वाला परेशान हो गया क्योंकि उसे समझ में नहीं आया कि बादशाह ने ऐसा क्यों कहा.

वह चुपचाप बाजार गया और दुकानदार से आधा किलो चूना मांगा। दुकानदार ने पूछा, “इतना चूना क्यों खरीद रहे हो?” पान वाले ने बताया कि उसने बादशाह को पान दिया था और बादशाह ने उसे चूना लाने का आदेश दिया था। दुकानदार ने समझ लिया कि कुछ गड़बड़ है और पान वाले को समझाया, “अगर तुम दरबार में चूना लेकर जाओ, तो पहले बहुत सारा घी पीकर जाना।” पान वाला समझ गया और दुकानदार की सलाह मानकर खूब सारा घी पी लिया।

दरबार में पहुंचने पर बादशाह ने पान वाले से कहा, “सारा चूना खाओ।” पान वाला हैरान रह गया, क्योंकि वह इस बात की उम्मीद नहीं कर रहा था, लेकिन फिर भी उसने सारा चूना खा लिया। इसके बावजूद उसे कुछ भी नुकसान नहीं हुआ, तो बादशाह ने उससे कारण पूछा। पान वाले ने अपनी और दुकानदार की बातचीत के बारे में बादशाह को सब बता दिया। अब बादशाह को जानने की जिज्ञासा हुई कि वह दुकानदार कौन था, जिसने उनकी मंशा पहले ही जान ली थी।

अगले दिन बादशाह ने आदेश दिया कि उस दुकानदार को दरबार में लाया जाए। जब दुकानदार दरबार में आया, तो बादशाह ने उससे पूछा, “तुमने हमारी मन की बात कैसे जान ली?” दुकानदार ने जवाब दिया, “हुज़ूर, जब यह व्यक्ति चूना खरीदने आया था, तो मैंने उससे पूछा कि वह इतना चूना क्यों खरीद रहा है। उसने बताया कि उसने आपको पान खिलाया था और आपने उसे चूना लाने को कहा था। मुझे समझ में आ गया कि उसने पान में शायद चूना ज़्यादा लगा दिया होगा, जिससे आपके मुँह में छाले हो गए होंगे। इसलिए आपने उससे चूना मंगवाया। मैंने उसे सलाह दी कि दरबार में जाने से पहले घी पीकर जाए, ताकि अगर उसे चूना खाना पड़े, तो उसका असर कम हो जाए।”

यह दुकानदार और कोई नहीं, बल्कि बीरबल थे, जिनकी सूझबूझ और चतुराई ने इस पूरी घटना को हल कर दिया।

अकबर बीरबल की चतुराई और हाज़िर जवाबी के बड़े प्रशंसक थे। एक दिन दरबार में खुश होकर उन्होंने बीरबल को कुछ पुरस्कार देने की घोषणा की थी। लेकिन कई दिन बीत जाने के बावजूद बीरबल को पुरस्कार नहीं मिला, जिससे वह थोड़े असमंजस में थे कि महाराज को कैसे याद दिलाएं।

एक दिन महाराज अकबर यमुना नदी के किनारे शाम की सैर पर निकले और बीरबल उनके साथ था। अकबर ने वहां एक ऊँट को देखा और बीरबल से पूछा, “बीरबल, बताओ तो सही, इस ऊँट की गर्दन मुड़ी हुई क्यों है?”

बीरबल को यह एक अच्छा मौका लगा, और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, यह ऊँट किसी से किया हुआ वादा भूल चुका है, और इस कारण इसकी गर्दन मुड़ गई है। कहते हैं कि जो लोग अपने वादों को भूल जाते हैं, भगवान उनकी गर्दन को ऊँट की तरह मोड़ देते हैं। यह एक तरह की सजा है।”

अकबर ने यह सुना और अचानक उनकी याददाश्त ताजगी से भर गई। उन्हें याद आया कि उन्होंने बीरबल से किया हुआ वादा भूल चुके हैं। वह तुरंत बीरबल से बोले, “जल्दी महल चलो!”

महल पहुँचते ही अकबर ने सबसे पहले बीरबल को पुरस्कार की राशि दी और कहा, “मैं अपनी गर्दन ऊँट की तरह नहीं मुड़ने दूँगा, बीरबल!” यह कहकर अकबर हंसी नहीं रोक पाए।

इस प्रकार, बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना कुछ कहे ही अपना पुरस्कार प्राप्त किया।

एक बार एक लोहार ने अपने पड़ोसी किसान से एक कुआं खरीदा। लेकिन बेचने के बाद भी किसान ने कुएं से पानी निकालना जारी रखा। इससे लोहार बहुत नाराज हुआ और दोनों न्याय के लिए अकबर के दरबार में पहुंचे।

अकबर ने किसान से पूछा, “तुमने कुआं बेच दिया है, फिर तुम उससे पानी क्यों निकाल रहे हो?”

चालाक किसान ने जवाब दिया, “महाराज, मैंने केवल कुआं बेचा है, उसका पानी नहीं।”

अकबर ने बीरबल से राय ली।

बीरबल ने किसान से पूछा, “तो तुम कह रहे हो कि कुआं लोहार का है, लेकिन पानी तुम्हारा है?”

किसान ने कहा, “जी हां, सर।”

बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो फिर तुम्हें अपने पानी को लोहार के कुएं में रखने का किराया देना होगा।”

किसान चुप हो गया और उसकी चालाकी उल्टी पड़ गई।

एक बार एक लोहार ने अपने पड़ोसी किसान से एक कुआं खरीदा। लेकिन खरीदी के बाद भी किसान उस कुएं से पानी निकालता रहा। यह देखकर लोहार बहुत नाराज हुआ और दोनों अकबर के दरबार में न्याय की गुहार लगाने पहुंचे।

अकबर ने किसान से पूछा, “तुमने कुआं तो बेच दिया है, फिर क्यों उससे पानी निकाल रहे हो?”

चालाक किसान ने उत्तर दिया, “महाराज, मैंने सिर्फ कुआं बेचा है, उसका पानी नहीं।”

अकबर ने बीरबल से इस पर राय ली।

बीरबल ने किसान से पूछा, “तो तुम यह कहना चाहते हो कि कुआं अब लोहार का है, लेकिन पानी तुम्हारा है?”

किसान ने गर्व से कहा, “जी हां, महाराज।”

बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो फिर तुम्हें अपने पानी को अब लोहार के कुएं में रखने के लिए उसे किराया देना होगा।”

किसान की चालाकी अब खुद उसके लिए समस्या बन गई।

बादशाह अकबर को पहेलियाँ सुनने और सुनाने का बहुत शौक था। वे हमेशा दूसरों से नई पहेलियाँ सुनते और समय-समय पर अपनी भी सुनाया करते थे। एक दिन अकबर ने बीरबल को एक पहेली सुनाई, “ऊपर ढक्कन, नीचे ढक्कन, मध्य-मध्य खरबूजा। मौं छुरी से काटे आपहिं, अर्थ तासु नाहिं दूजा।”

बीरबल ने कभी ऐसी पहेली नहीं सुनी थी और वह समझ नहीं पा रहा था कि इसका अर्थ क्या है। उसने बादशाह से थोड़ी मोहलत मांगी ताकि वह इसका सही अर्थ समझ सके। अकबर ने उसकी बात मान ली और उसे कुछ दिन का समय दे दिया।

बीरबल पहेली का उत्तर खोजने के लिए एक गाँव में गया। रास्ते की थकान और गर्मी के कारण वह एक घर में दाखिल हो गया, जहाँ एक लड़की भोजन बना रही थी।

बीरबल ने पूछा, “बेटी! तुम क्या कर रही हो?”

लड़की ने कहा, “मैं बेटी को पकाती और माँ को जलाती हूँ।”

बीरबल ने आगे पूछा, “अच्छा, और तुम्हारा बापू कहाँ है और क्या कर रहा है?”

लड़की ने कहा, “वह मिट्टी में मिट्टी मिला रहा है।”

बीरबल हैरान होकर पूछे, “तेरी माँ क्या कर रही है?”

लड़की ने कहा, “एक को दो कर रही है।”

बीरबल को यह जवाब सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। इस समय लड़की के माता-पिता भी घर में आ गए। बीरबल ने उनसे सारी बात साझा की। लड़की के पिता ने कहा, “मेरी बेटी ने आपको सही जवाब दिया है। अरहर की दाल अरहर की सूखी लकड़ी से पक रही है। मैं अपने बिरादरी के एक मृतक को जलाने गया था और मेरी पत्नी मसूर की दाल दल रही थी।”

बीरबल लड़की के जवाब से बहुत प्रभावित हुआ और उसने सोचा कि शायद यहाँ बादशाह की पहेली का उत्तर मिल जाए। उसने लड़की के पिता से पहेली का अर्थ पूछा। लड़की के पिता ने बताया, “यह एक सरल पहेली है। इसका अर्थ यह है कि धरती और आकाश दो ढक्कन हैं। उनके अंदर रहने वाला मनुष्य खरबूजा है, जो मृत्यु के समय उसी तरह मर जाता है जैसे गर्मी में मोम पिघल जाती है।”

बीरबल ने उस किसान की बुद्धिमानी की सराहना की और उसे दिल्ली लौटने से पहले पुरस्कार दिया। दिल्ली लौटकर बीरबल ने बादशाह को पूरी कहानी और पहेली का सही अर्थ बताया। बादशाह ने बीरबल की समझदारी की सराहना की और उसे ढेर सारे पुरस्कार दिए।

निष्कर्ष –

अकबर-बीरबल की कहानियाँ बच्चों के लिए मजेदार, हास्यपूर्ण और प्रेरक नैतिकता से भरी होती हैं, जो उनकी कल्पना को बढ़ावा देती हैं और सोने से पहले सुनने के लिए आदर्श हैं। कुल मिलाकर, ये कहानियाँ आपको और आपके बच्चों को पढ़ने और सीखने का एक शानदार अनुभव ज़रूर देंगी।( Akbar and Birbal Stories in Hindi )

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